कानपुर: भारत देश मे लेखन विधा युगों युगों से चली आ रही है. इस विधा को साक्षात करने के लिए अलग उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता रहा है. पंछियों के पंखों से लेकर लकड़ी की कलम और खड़िया पाटी के माध्यम से शब्दों को पृष्ठों पर लिखा जाता रहा है. बदलते समय के साथ साथ लिखने के लिए माध्यम बने उपकरणों में भी बदलाव लाजिम था. लेखन कार्य को सरल और जल्दी पूर्ण करने के लिए पेनों का अविष्कार हुआ. सबसे पहले फाउंटेन पेन का अविष्कार हुआ. फाउंटेन पेन का अविष्कार अविष्कार फ्रेंच इन्वेंटर पेट्राचे पोएनरु (Petrache Poenaru) और रॉबर्ट विलियम थॉमसन (Robert William Thomson) ने किया था.
समय के साथ फाउंटेन पेनों में बदलावः मेनचेस्टर ऑफ ईस्ट कहा जाने वाला कानपुर भी फाउंटेन पेनों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. 1980 से 1990 के दशक में कानपुर में फाउंटेन पेन के पार्ट्स बनाने की कई फैक्ट्रियां थी. इन फैक्टरी में बनाए गए पेन दुनिया भर के अलग अलग देशों में भेजे जाते थे. लेकिन बॉल पेन और जेल पेन के मार्केट में आने के बाद फाउंटेन पेनों का बाजार ठंडा पड़ गया. जिस वजह से कई फैक्ट्रियां घाटे में चली गई. जिसकी वजह से फैक्ट्री मालिकों को फाउंटेन पेन बनाने के व्यवसाय को बंद करना पड़ा. लेकिन एक बार फिर फाउंटेन पेन की डिमांड विदेशों में बढ़ने की वजह से कानपुर के फाउंटेन पेन व्यवसायियों के चेहरे में मुस्कान लौटी है.
कानपुर के फाउंटेन पेन की निब की विदेशों में डिमांडः कानपुर शहर के दादा नगर में पेन व निब बनाने वाली फैक्ट्रियों ने देश, विदेश में एक बार फिर कानपुर को एक नई पहचान दिलवाई है. 10 से 15 साल पहले एक समय जहां बॉल पेन, रोलर पेन व जेल पेन के आ जाने से फाउंटेन पेन इंडस्ट्री को बड़ा झटका लगा था. वहीं अब शहर के व्यवसायियों ने अपने व्यापार को आगे बढाने के लिए नए लोगों के साथ नई इंडस्ट्रीज और नए मैन्युफैक्चरिंग के तरीकों से एक नया आयाम दिया है. आज उनके द्वारा बनाये जा रहे फाउंटेन पेन और 30 से 35 प्रकार की निबों को 25 से अधिक देशों में निर्यात किया जा रहा है.
फैक्ट्री में बनती है 30 प्रकार की निबः फाउंटेन पेन फैक्ट्री के मालिक संदीप अवस्थी ने कहा कि एक समय शहर में फाउंटेन पेन की कीमत 100 रुपये तक थी. बॉल पेन, रोलर पेन, जेल पेन के आ जाने से इन पेनों की कीमत गिर कर 10 रुपये तक आ गई थी. जिसके बाद आज नए तरीकों को आजमाने के बाद फाउंटेन पेनो की कीमतों में 50 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. उन्होंने बताया कि पेन इंडस्ट्रीज में दुनिया में चीन, जर्मनी और जापान का डंका बजता था. लेकिन आज चीन को इंडिया ने इस मार्केट में पीछे धकेल दिया है. उन्होंने बताया दुनिया भर में सिर्फ चार देश जर्मनी, चीन, जापान और इंडिया ही इन निबो का निर्माण करते हैं. उन्होंने बताया कि उनकी फैक्ट्री में 30 प्रकार की निबें बनती हैं. जिनमें एक्सट्रा फाइव पॉइंट निडिल, फ्लैक्स और अल्ट्रा फ्लैक्स और फाइव टाइप मेटल का इस्तेमाल किया जाता है. जिसमें स्टेनलेस स्टील, प्लेटिनम गोल्ड, चांदी का इस्तेमाल किया जाता है.
फाउंटेन पेन फैक्ट्री मालिक ने बताया कि, आज अधिकांश देशों मे सप्लाई के कारण उनका सालाना कारोबार 2.5 करोड़ रुपये का एक फैक्टरी से किया जाता है. उन्होंने बताया कि फाउंटेन पेन के व्यवसाय को बढ़ाने लिए उत्तर प्रदेश सरकार की इन्वेस्टर्स समिट में भी प्रपोजल दिया गया है. विदेशों में इस समय कानपुर में बने फाउंटेन पेन की डिमांड बढ़ती जा रही है. उन्होंने बताया कि इन पेनों को इस्तेमाल करने वालों का वर्ग ही अलग है. जिनमे हाई स्टडीज वाले स्टूडेंट, आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर्स व एक प्रबुद्ध वर्ग इन पेनों का मुरीद है.
सोने, चांदी और प्लैटिनम से तैयार हो रहे पेनः संदीप अवस्थी ने बताया कि एक बार फिर फाउंटेन पेन की डिमांड बढ़ी है. लोग फाउंटेन पेन में कीमती धातु की निब लगाकर पेन बनवाते हैं. जिसे उपहार स्वरूप लोगों को भेंट करते हैं. उपहार देने के लिए अलग-अलग डिजाइन में सोने, चांदी व प्लैटिनम धातु का प्रयोग कर फाउंटेन पेन बनाया जाता है. जिसकी कीमत 10 हजार से लेकर लाखों रुपये तक होती है. साथ ही कई बड़ी नामचीन कंपनियां भी कानपुर से इस तरह के पेन बनवाने का बड़ा ऑर्डर देती हैं
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