कानपुर: जिले में संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के तहत हुए विकास कार्यों में दस साल पहले करोड़ों का घोटाला हुआ था. जांच के बाद अब इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई है. यह घोटाला जिला पंचायत विभाग में हुआ था.
आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज
- संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना घोटाले में किसी नेता या ठेकेदार का नाम सामने नहीं आया क्यों कि इसे विभागीय लोगों ने अंजाम दिया था.
- तत्कालीन अभियंता अवर अभियंता, मुख्य अभियंता, अपर मुख्य अधिकारी और कैशियर ने घालमेल किया था.
- दस साल तक चली विजिलेंस की जांच में अफसरों की कारगुजारी का खुलासा हुआ है.
- घोटाले के मामले पर विजिलेंस विभाग के इंस्पेक्टर ने जांच के बाद कानपुर की शहर कोतवाली में खाधड़ी, साजिश रचने और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कराया है.
यह है घोटाले की पूरी कहानी...
- शहर के ग्रामीण इलाकों के विकास और ग्रामीणों को रोजगार मुहैया कराने के लिए सन 2003-04 में यह योजना शुरू की गई थी.
- इस योजना के तहत जिला पंचायत विभाग को विकास कार्य कराना था.
- जिला पंचायत विभाग में राज कमल सक्सेना और विनोद कुमार मखीजा अभियंता थे जबकि योगेन्द्र कुमार द्विवेदी, चितरंजन त्रिपाठी अवर अभियंता, नरेश कुमार अपर मुख्य अधिकारी और रमाशंकर त्रिपाठी कैशियर थे.
- योजना के तहत हुए विकास कार्यों में महज 30 फीसदी काम ग्रामीणों से कराया गया और बाकी काम जेसीबी और दूसरी मशीनों से कराया गया था.
- इतना ही नहीं, बड़े ही शातिराना अंदाज में ग्रामीण मजदूरों के फर्जी हस्ताक्षरों के आधार पर बिल पास करा कर रुपए हड़प लिए गए.
शासन ने घोटाले की जांच 2009 में विजिलेंस विभाग को सौंपी थी. दस साल की विजिलेंस इंस्पेक्टर संजय कुमार की लंबी जांच के बाद कोतवाली में अब जाकर चार इंजीनियरों सहित छह लोगों पर एफआईआर दर्ज कराई गई है.