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लॉकडाउन से कानपुर लेदर इंडस्ट्री को 8 हजार करोड़ का झटका

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Published : May 17, 2020, 7:59 PM IST

उत्तर प्रदेश के कानपुर लेदर इंडस्ट्री को लॉकडाउन के चलते आठ हजार करोड़ का झटका लगा है. मजदूरों के पलायन से कानपुर का चमड़ा उद्योग ठप हो गया है. करीब 2 महीनों से सभी टेनरियों में प्रोडक्शन पूरी तरीके से बंद है.

पलायन से ठप हुआ चमड़ा उद्योग
पलायन से ठप हुआ चमड़ा उद्योग

कानपुर: पूरे विश्व में अपनी छाप छोड़ चुका कानपुर का चमड़ा उद्योग कोरोना काल में अब लॉकडाउन के दंश की मार से बेहाल हो चुका है. लॉकडाउन के दौरान कानपुर के चमड़ा उद्योग को तकरीबन 8,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इस लॉकडाउन से उपजे हालात ने लेदर इंडस्ट्री की कमर तोड़कर रख दी है.

लॉकडाउन से लेदर इंडस्ट्री को आठ हजार करोड़ का झटका

करीब 2 महीनों से सभी टेनरियों में प्रोडक्शन पूरी तरीके से बंद है. पहले सरकारी आदेश के बंदी की मार झेल रही कानपुर की चमड़ा फैक्टरियां अब लॉकडाउन के दौरान उनको और गहरी चोट लगी है. आलम यह है कि 8 हजार करोड़ के ऑर्डर कैंसिल हो चुके हैं, जिसमें से 3 हजार करोड़ के विदेशी और 5 हजार करोड़ के डोमेस्टिक ऑर्डर निरस्त हुए हैं. इतना ही नहीं नए ऑर्डर मिल नहीं रहे हैं और प्रोडक्शन पूरी तरीके से बंद है.

कच्चा माल भी टेनरियों में सड़ कर बीमारियों को दावत दे रहा है. पिछले 1 साल से भी ज्यादा समय से कानपुर की टेनरियों के संचालन पर कई बार रुकावट आ चुकी है और वहीं पिछले 2 महीनों से लॉकडाउन के चलते टेनारिया लगातार बंद हैं.

आपको बता दें कि कानपुर, उन्नाव लेदर इंडस्ट्री का सालाना टर्न ओवर 30 हजार करोड़ रुपये है, जिसमें से अब तक कानपुर लेदर इंडस्ट्री 8 हजार करोड़ रुपये की चपत लग चुकी है.

वहीं कॉउन्सिल फॉर लैदर एक्सपोर्ट के पूर्व चेयरमैन जावेद इकबाल ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में बताया कि कानपुर की लेदर इंडस्ट्री में लगभग 10 लाख मजदूर जुड़े हुए हैं, जिनमें से ज्यादातर लोग दूसरे राज्यों और जिलों के हैं, जिन्होंने कोरोना काल में पलायन भी कर लिया है.

ऐसे में जब दोबारा इंडस्ट्रियां चालू होंगी तो सबसे बड़ा संकट मजदूरों के सामने आएगा. वहीं चाइना से अगर लोगों का मोह भंग होता है तो निश्चित रूप से भारत के लेदर उद्योग को बल मिलेगा, जिसका सपना कानपुर के लेदर उद्यमी भी संजोए बैठे हुए हैं, लेकिन चिंता लगातार बरकरार है, क्योंकि लेदर इंडस्ट्री के जो प्रोडक्ट हैं. वह फैशन की दुनिया से जुड़े हुए हैं. अगर लोगों पर पैसे का आभाव हुआ तो लेदर इंडस्ट्री को अपने रास्ते पर लौटने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

इसे भी पढ़ें:- अब 31 मई तक भर सकेंगे यूपीएसईई-2020 के आवेदन पत्र

कानपुर: पूरे विश्व में अपनी छाप छोड़ चुका कानपुर का चमड़ा उद्योग कोरोना काल में अब लॉकडाउन के दंश की मार से बेहाल हो चुका है. लॉकडाउन के दौरान कानपुर के चमड़ा उद्योग को तकरीबन 8,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इस लॉकडाउन से उपजे हालात ने लेदर इंडस्ट्री की कमर तोड़कर रख दी है.

लॉकडाउन से लेदर इंडस्ट्री को आठ हजार करोड़ का झटका

करीब 2 महीनों से सभी टेनरियों में प्रोडक्शन पूरी तरीके से बंद है. पहले सरकारी आदेश के बंदी की मार झेल रही कानपुर की चमड़ा फैक्टरियां अब लॉकडाउन के दौरान उनको और गहरी चोट लगी है. आलम यह है कि 8 हजार करोड़ के ऑर्डर कैंसिल हो चुके हैं, जिसमें से 3 हजार करोड़ के विदेशी और 5 हजार करोड़ के डोमेस्टिक ऑर्डर निरस्त हुए हैं. इतना ही नहीं नए ऑर्डर मिल नहीं रहे हैं और प्रोडक्शन पूरी तरीके से बंद है.

कच्चा माल भी टेनरियों में सड़ कर बीमारियों को दावत दे रहा है. पिछले 1 साल से भी ज्यादा समय से कानपुर की टेनरियों के संचालन पर कई बार रुकावट आ चुकी है और वहीं पिछले 2 महीनों से लॉकडाउन के चलते टेनारिया लगातार बंद हैं.

आपको बता दें कि कानपुर, उन्नाव लेदर इंडस्ट्री का सालाना टर्न ओवर 30 हजार करोड़ रुपये है, जिसमें से अब तक कानपुर लेदर इंडस्ट्री 8 हजार करोड़ रुपये की चपत लग चुकी है.

वहीं कॉउन्सिल फॉर लैदर एक्सपोर्ट के पूर्व चेयरमैन जावेद इकबाल ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में बताया कि कानपुर की लेदर इंडस्ट्री में लगभग 10 लाख मजदूर जुड़े हुए हैं, जिनमें से ज्यादातर लोग दूसरे राज्यों और जिलों के हैं, जिन्होंने कोरोना काल में पलायन भी कर लिया है.

ऐसे में जब दोबारा इंडस्ट्रियां चालू होंगी तो सबसे बड़ा संकट मजदूरों के सामने आएगा. वहीं चाइना से अगर लोगों का मोह भंग होता है तो निश्चित रूप से भारत के लेदर उद्योग को बल मिलेगा, जिसका सपना कानपुर के लेदर उद्यमी भी संजोए बैठे हुए हैं, लेकिन चिंता लगातार बरकरार है, क्योंकि लेदर इंडस्ट्री के जो प्रोडक्ट हैं. वह फैशन की दुनिया से जुड़े हुए हैं. अगर लोगों पर पैसे का आभाव हुआ तो लेदर इंडस्ट्री को अपने रास्ते पर लौटने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

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