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79 साल की डॉक्टर सरोज आईआईटी कानपुर से अपने अधूरे शोध को करेंगी पूरा, जानिए छोड़ने की वजह - आईआईटी कानपुर

79 साल की उम्र में डॉ. सरोज (Dr. Saroj Phd) आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) से पीएचडी करेंगी. आईआईटी कानपुर के इतिहास में अभी तक इतनी अधिक उम्र में किसी ने पीएचडी नहीं की है. डॉ. सरोज साल 2013 में पद्मश्री अवार्डी से भी सम्मानित हो चुकी है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 14, 2024, 6:28 PM IST

कानपुर: आपने खूब सुना होगा कि जो शोधार्थी होते हैं, उनका शोध जब तक पूरा नहीं हो जाता, तब तक वह काफी परेशान रहते हैं. औसतन 40 से 50 साल तक की उम्र में पीएचडी करने वालों की जानकारियां भी खूब सामने आती हैं. लेकिन, आईआईटी कानपुर में तो अब एक ऐसा इतिहास बन गया, जो सालों तक यादगार रहेगा. आईआईटी कानपुर में वाराणसी निवासी डॉ. सरोज चुड़ामणि गोपाल ने कुछ दिनों पहले पीएचडी में इसलिए दाखिला लिया है. क्योंकि, वह 12 साल पहले अपने अधूरे शोध कार्य को पूरा करना चाहती हैं.

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसरों का दावा है कि डॉ. सरोज देश की सबसे अधिक उम्र वाली ऐसी महिला हैं, जो पीएचडी कर रही हैं. डॉ. सरोज को आईआईटी कानपुर के बायो साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग विभाग के प्रोेफेसर डॉ. अशोक ही आईआईटी लेकर आए. प्रो. अशोक बताते हैं कि डॉ. सरोज को अब आईआईटी कानपुर में विजिटिंग प्रोफेसर का भी जिम्मा मिल गया है. डॉ. सरोज मार्च 2008 से लेकर 2011 तक केजीएमयू लखनऊ में कुलपति के पद पर काम कर चुकी हैं. जबकि, साल 2013 में उनकी उपलब्धियों और उनके अकादमिक परफार्मेंस को देखते हुए सरकार ने उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया.

डॉ. सरोज बताती हैं कि वह जब केजीएमयू में कार्यरत थीं, तब उन्होंने स्पाइनल कार्ड इंजरी से पीड़ित होकर पैरालिसिस वाले मरीजों को दोबारा चलाने की ठानी थी. पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर उस पर काम किया तो 15 से 20 प्रतिशत तक सफल परिणाम मिले. डॉ. सरोज अपने इस शोध कार्य को आगे करना चाहती थीं. लेकिन, कुछ परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उन्हें यह शोध कार्य छोड़ना पड़ा. फिर 12 सालों तक वह वाराणसी में ही रह गईं और शोध कार्य वहीं का वहीं रहा. कुछ माह पहले वह एक कॉन्फ्रेंस कार्यक्रम में कानपुर आई थीं. जब उन्होंने अपने इस शोध विषय पर बोलना शुरू किया तो कार्यक्रम में मौजूद आईआईटी कानपुर के प्रो. अशोक प्रभावित हुए और फिर उन्होंने डॉ. सरोज से संवाद किया. वहीं, तय हुआ कि अब डॉ. सरोज आईआईटी कानपुर से पीएचडी करेंगी. इसी मकसद के साथ अब वह आईआईटी कानपुर कैम्पस में भी रहेंगी.

कैम्पस में छात्र बहुत अधिक प्रभावित: आईआईटी कानपुर में जब से छात्रों को पता लगा है कि डॉ. सरोज चुड़ामणि गोपाल (79) पद्मश्री अवार्डी पीएचडी कर रही हैं तो वह बहुत अधिक प्रभावित हैं. छात्रों का कहना है कि अगर आपके अंदर कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो आपको सफलता जरूर मिलती है. यह सिद्ध कर दिखाया है डॉ. सरोज चुड़ामणि ने.

यह भी पढ़ें: सहायक अध्यापक भर्ती: हाईकोर्ट ने बचे हुए 12091 पदों पर काउंसलिंग कराने का दिया आदेश

यह भी पढ़ें: लखनऊ विश्वविद्यालय की 17 जनवरी की सभी परीक्षाएं स्थगित, इस वजह से रहेगा अवकाश

कानपुर: आपने खूब सुना होगा कि जो शोधार्थी होते हैं, उनका शोध जब तक पूरा नहीं हो जाता, तब तक वह काफी परेशान रहते हैं. औसतन 40 से 50 साल तक की उम्र में पीएचडी करने वालों की जानकारियां भी खूब सामने आती हैं. लेकिन, आईआईटी कानपुर में तो अब एक ऐसा इतिहास बन गया, जो सालों तक यादगार रहेगा. आईआईटी कानपुर में वाराणसी निवासी डॉ. सरोज चुड़ामणि गोपाल ने कुछ दिनों पहले पीएचडी में इसलिए दाखिला लिया है. क्योंकि, वह 12 साल पहले अपने अधूरे शोध कार्य को पूरा करना चाहती हैं.

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसरों का दावा है कि डॉ. सरोज देश की सबसे अधिक उम्र वाली ऐसी महिला हैं, जो पीएचडी कर रही हैं. डॉ. सरोज को आईआईटी कानपुर के बायो साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग विभाग के प्रोेफेसर डॉ. अशोक ही आईआईटी लेकर आए. प्रो. अशोक बताते हैं कि डॉ. सरोज को अब आईआईटी कानपुर में विजिटिंग प्रोफेसर का भी जिम्मा मिल गया है. डॉ. सरोज मार्च 2008 से लेकर 2011 तक केजीएमयू लखनऊ में कुलपति के पद पर काम कर चुकी हैं. जबकि, साल 2013 में उनकी उपलब्धियों और उनके अकादमिक परफार्मेंस को देखते हुए सरकार ने उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया.

डॉ. सरोज बताती हैं कि वह जब केजीएमयू में कार्यरत थीं, तब उन्होंने स्पाइनल कार्ड इंजरी से पीड़ित होकर पैरालिसिस वाले मरीजों को दोबारा चलाने की ठानी थी. पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर उस पर काम किया तो 15 से 20 प्रतिशत तक सफल परिणाम मिले. डॉ. सरोज अपने इस शोध कार्य को आगे करना चाहती थीं. लेकिन, कुछ परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उन्हें यह शोध कार्य छोड़ना पड़ा. फिर 12 सालों तक वह वाराणसी में ही रह गईं और शोध कार्य वहीं का वहीं रहा. कुछ माह पहले वह एक कॉन्फ्रेंस कार्यक्रम में कानपुर आई थीं. जब उन्होंने अपने इस शोध विषय पर बोलना शुरू किया तो कार्यक्रम में मौजूद आईआईटी कानपुर के प्रो. अशोक प्रभावित हुए और फिर उन्होंने डॉ. सरोज से संवाद किया. वहीं, तय हुआ कि अब डॉ. सरोज आईआईटी कानपुर से पीएचडी करेंगी. इसी मकसद के साथ अब वह आईआईटी कानपुर कैम्पस में भी रहेंगी.

कैम्पस में छात्र बहुत अधिक प्रभावित: आईआईटी कानपुर में जब से छात्रों को पता लगा है कि डॉ. सरोज चुड़ामणि गोपाल (79) पद्मश्री अवार्डी पीएचडी कर रही हैं तो वह बहुत अधिक प्रभावित हैं. छात्रों का कहना है कि अगर आपके अंदर कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो आपको सफलता जरूर मिलती है. यह सिद्ध कर दिखाया है डॉ. सरोज चुड़ामणि ने.

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