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बिना सीमेंट और सरिया के 100 साल से है खड़ा कानपुर का ये पुल, नीचे नदी और ऊपर बहती है नहर - कानपुर गुजैनी बाइपास पुल

कानपुर गुजैनी बाईपास में 100 साल पुराना पुल आज के तकनीक को फेल कर रहा है. बिना सीमेंट और और सरिया के इस पुल के देखकर इंजीनियर भी हैरान हैं.

Gujaini bypass of Kanpur
Gujaini bypass of Kanpur
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Published : Apr 8, 2023, 1:17 PM IST

पुल के तकनीक के बारे में बताते अनियंत्रण सेवा विभाग के पूर्व सहायक अभियंता अरविंद कुमार शुक्ला

कानपुरः शहर में 100 साल पुराना एक ऐसा पुल है, जिसकी तकनीक बेहद खास है. आज के समय में इसकी निर्माण शैली देखकर बड़े-बड़े इंजीनियर आश्चर्य में पड़ जाते हैं. कानपुर शहर की गंगा नहर और पांडू नदी के बीच मौजूद ब्रिटिशकाल में बने इस पुल में न तो सीमेंट का इस्तेमाल किया गया है और न ही किसी प्रकार के लोहे की सरिया का. इसे देखकर पुल से गुजरने वाले भी इसे देखकर हैरत में पड़ जाते हैं. पुल के नीचे नदी बहती है और ऊपर नहर का पानी बहता है. आज भी इस पुल की मजबूती ऐसी है कि सैकड़ों वर्षों बाद भी यह बिना किसी रखरखाव के मजबूती से खड़ा है.

शहर के गुजैनी बाईपास से बायीं ओर थोड़ी दूर पांडु नदी पर बने इस पुल के बारे में बताते हुए ग्रामीण अनियंत्रण सेवा विभाग में सहायक अभियंता रहे अरविंद कुमार शुक्ला ने कहा कि पुल में ब्रिक वर्क के निर्माण को सुर्खी और चूने के साथ तैयार किया गया था, जो बेहद मजबूत होता था. इसमें गुड़ का सीरा और अरहर दाल के पानी का मिश्रण किया गया, तभी इसकी मजबूती बनी है. पिलर का डिजाइन ऐसा है कि अभी 50 साल से अधिक समय तक यह पुल ऐसे ही खड़ा रहेगा. ऐसे पुलों को इंजीनियरिंग की भाषा में एक्वाटेक्ट कहा जाता हैं. नदी के नीचे पहले ईंटों के ही पिलर बनाए गए हैं. इसके बाद गोलाकार रूप में छह हिस्सों में पुल बंटा है. वर्तमान में पुलों का निर्माण रेनफोर्स्ड सीमेंट कांक्रीट यानी आरसीसी से हो रहा है, जिनमें सरिया या लोहे के गार्डर का प्रयोग भी होता है. पर इस प्राचीन पुल में ऐसा नहीं है.

अरविंद कुमार शुक्ला कहते है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में ऐसा पुल कहीं और नहीं देखा. ऐसे बेजोड़ तकनीकी से बने पुल से आज के इंजीनियरों को सबक लेना चाहिए. साथ ही सरकार को भी इसे संरक्षित करना चाहिए. इस पुल का संरक्षण किया जाए, तो यह शहर के पर्यटन का एक नया केंद्र बन सकता है.

ये भी पढ़ेंः गोरखपुर में कूड़े का अंबार और धुंआ हो रहा जानलेवा, दशकों से बीजेपी का राज पर कोई सामधान नहीं

पुल के तकनीक के बारे में बताते अनियंत्रण सेवा विभाग के पूर्व सहायक अभियंता अरविंद कुमार शुक्ला

कानपुरः शहर में 100 साल पुराना एक ऐसा पुल है, जिसकी तकनीक बेहद खास है. आज के समय में इसकी निर्माण शैली देखकर बड़े-बड़े इंजीनियर आश्चर्य में पड़ जाते हैं. कानपुर शहर की गंगा नहर और पांडू नदी के बीच मौजूद ब्रिटिशकाल में बने इस पुल में न तो सीमेंट का इस्तेमाल किया गया है और न ही किसी प्रकार के लोहे की सरिया का. इसे देखकर पुल से गुजरने वाले भी इसे देखकर हैरत में पड़ जाते हैं. पुल के नीचे नदी बहती है और ऊपर नहर का पानी बहता है. आज भी इस पुल की मजबूती ऐसी है कि सैकड़ों वर्षों बाद भी यह बिना किसी रखरखाव के मजबूती से खड़ा है.

शहर के गुजैनी बाईपास से बायीं ओर थोड़ी दूर पांडु नदी पर बने इस पुल के बारे में बताते हुए ग्रामीण अनियंत्रण सेवा विभाग में सहायक अभियंता रहे अरविंद कुमार शुक्ला ने कहा कि पुल में ब्रिक वर्क के निर्माण को सुर्खी और चूने के साथ तैयार किया गया था, जो बेहद मजबूत होता था. इसमें गुड़ का सीरा और अरहर दाल के पानी का मिश्रण किया गया, तभी इसकी मजबूती बनी है. पिलर का डिजाइन ऐसा है कि अभी 50 साल से अधिक समय तक यह पुल ऐसे ही खड़ा रहेगा. ऐसे पुलों को इंजीनियरिंग की भाषा में एक्वाटेक्ट कहा जाता हैं. नदी के नीचे पहले ईंटों के ही पिलर बनाए गए हैं. इसके बाद गोलाकार रूप में छह हिस्सों में पुल बंटा है. वर्तमान में पुलों का निर्माण रेनफोर्स्ड सीमेंट कांक्रीट यानी आरसीसी से हो रहा है, जिनमें सरिया या लोहे के गार्डर का प्रयोग भी होता है. पर इस प्राचीन पुल में ऐसा नहीं है.

अरविंद कुमार शुक्ला कहते है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में ऐसा पुल कहीं और नहीं देखा. ऐसे बेजोड़ तकनीकी से बने पुल से आज के इंजीनियरों को सबक लेना चाहिए. साथ ही सरकार को भी इसे संरक्षित करना चाहिए. इस पुल का संरक्षण किया जाए, तो यह शहर के पर्यटन का एक नया केंद्र बन सकता है.

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