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राष्ट्रपति के गृह जनपद में लाचार सिस्टम, आवास के लिए सालों से भटक रही विधवा

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात को राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के गृह जनपद के रूप में जाना जाता है. यहां के मैथा ब्लॉक की एक विधवा कई सालों से आवास के लिए भटक रही है, लेकिन डीएम के निर्देश पर भी जिम्मेदार अभी तक उसे आवास उपलब्ध नहीं करा पाए हैं. इस कारण विधवा गिरी हुई कच्ची कोठरी में जीवन गुजारने को मजबूर है. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि जब राष्ट्रपति के जनपद का यह हाल है तो अन्य जिलों का क्या होगा. देखिए यह स्पेशल रिपोर्ट..

widow has been wandering for home in Kanpur dehat for many years
राष्ट्रपति के गृह जनपद में आवास के लिए सालों से भटक रही विधवा.
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Published : Jun 21, 2020, 11:01 PM IST

कानपुर देहात: राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द का गृह जनपद कानपुर देहात है. यह जनपद राष्ट्रपति को जोड़कर देखा जाता है. ऐसे में जब उनके ही जनपद की एक बूढ़ी मां कई सालों से आवास के लिए लड़ रही हो तो सोचिए अन्य राज्यों का हाल क्या होगा. हम बात कर रहे हैं ऐसी महिला की, जिसके बच्चों के सिर पर इसलिए आज तक सेहरा नहीं बंधा क्योंकि उसका खुद का पक्का मकान नहीं है. महिला अधिकारियों की चौखट के चक्कर काट-काटकर थक चुकी है.

widow has been wandering for home in Kanpur dehat for many years
विधवा का गिरा हुआ घर.

कागजों में सिमटकर रह जाती हैं योजनाएं
कागजों में नई दिल्ली से तो सभी राज्यों तक योजनाएं बहुत सी चलती हैं, लेकिन धरातल तक आते-आते कागजों में ही सिमटकर रह जाती हैं. मजबूर लाचार लोगों के कुछ हाथ लगता है तो सिर्फ सरकार के हवाहवाई दावे.

20 साल से आवास के लिए भटक रही महिला
मैथा ब्लॉक क्षेत्र के रैपालपुर गांव सभा की रहने वाली विधवा मालती बाजपेई गिरी हुई कच्ची कोठरी में तिरिपाल डाल कर 20 साल से अधिक समय से अपना जीवन गुजार रही है. तेज धूप और बारिश होने पर उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है, लेकिन सरकारी नुमाइंदों को उनकी परेशानी नहीं दिख रही है. करीब दो साल पहले तेज बारिश के चलते जो उसकी खण्डहर कच्ची कोठरी थी, गिरकर ढह गई थी.

स्पेशल रिपोर्ट...

सिस्टम की लाचारी से नहीं मिल सका आवास
प्रदेश सरकार ने बारिश में मकान गिरने से लोगों को बेघर मानकर प्राथमिकता के आधार पर आवास देने का फरमान जारी किया था. इस पर एसडीएम मैथा ने जांच कर मालती को आवास दिए जाने का पत्र डीएम राकेश कुमार सिंह को भेजा था, जिस पर डीएम ने डीडीओ को मामले पर कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया था. एक साल बीतने पर भी आवास न मिलने पर एसडीएम ने दोबारा पत्र भेजा है, लेकिन दो साल बीतने पर भी आज तक सरकारी सिस्टम गरीब मालती को एक आवास उपलब्ध नहीं करा सका है.

widow has been wandering for home in Kanpur dehat for many years
विधवा की झोपड़ी.

इस सम्बन्ध में मैथा बीडीओ सच्चिदानंद प्रसाद ने ईटीवी भारत की टीम को बताया कि मामले की उनको पूरी जानकारी है. पिछले साल मालती को मुख्यमंत्री आवास सूची में शामिल करते हुए प्राथमिकता के आधार पर आवास दिलाने के लिए प्रयास किए थे, लेकिन शासन से बजट कम मिलने पर आवास नहीं मिल सका.

आवास न होने से बेटा अब तक है कुंवारा
वहीं सिस्टम से लाचार और हताश मालती देश के प्रधानमंत्री और सूबे के मुख्यमंत्री से हाथ जोड़ कर फरियाद लगा रही है, 'साहेब मुझे भी आवास दे दो'. आवास न होने की वजह से उसका बेटा आज तक कुंवारा है, जिसकी उम्र 40 साल से भी ज्यादा हो चुकी है.

आवास के लिए रुपये ही खत्म हो गए हैं
जब मालती की स्थिति देखते हुए ईटीवी भारत की टीम ने गांव के मुखिया से सवाल किया तो जबाब ऐसा था कि पूरे सिस्टम पर ही एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा हो गया. ग्राम प्रधान प्रदीप कुमार ने कहा, ' भले ही मेरी तरफ से बहुत प्रयास किया गया है, लेकिन क्या करें. जनपद में मालती के आवास को लेकर रुपये ही खत्म हो गए हैं.'

कानपुर देहात: वनवास के दौरान भगवान राम इसी वृक्ष के नीचे किए थे विश्राम

ऐसे में अहम सवाल ये बनता है कि जब मजबूरों के लिए ही जिले में रुपये पैसे ही खत्म हो जाएं तो वे कहां जाएं और किससे फरियाद करें. फिलहाल इस पूरे मामले में जिले के जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं और कैमरे के सामने हकीकत बयां करने से कतरा रहे हैं.

कानपुर देहात: राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द का गृह जनपद कानपुर देहात है. यह जनपद राष्ट्रपति को जोड़कर देखा जाता है. ऐसे में जब उनके ही जनपद की एक बूढ़ी मां कई सालों से आवास के लिए लड़ रही हो तो सोचिए अन्य राज्यों का हाल क्या होगा. हम बात कर रहे हैं ऐसी महिला की, जिसके बच्चों के सिर पर इसलिए आज तक सेहरा नहीं बंधा क्योंकि उसका खुद का पक्का मकान नहीं है. महिला अधिकारियों की चौखट के चक्कर काट-काटकर थक चुकी है.

widow has been wandering for home in Kanpur dehat for many years
विधवा का गिरा हुआ घर.

कागजों में सिमटकर रह जाती हैं योजनाएं
कागजों में नई दिल्ली से तो सभी राज्यों तक योजनाएं बहुत सी चलती हैं, लेकिन धरातल तक आते-आते कागजों में ही सिमटकर रह जाती हैं. मजबूर लाचार लोगों के कुछ हाथ लगता है तो सिर्फ सरकार के हवाहवाई दावे.

20 साल से आवास के लिए भटक रही महिला
मैथा ब्लॉक क्षेत्र के रैपालपुर गांव सभा की रहने वाली विधवा मालती बाजपेई गिरी हुई कच्ची कोठरी में तिरिपाल डाल कर 20 साल से अधिक समय से अपना जीवन गुजार रही है. तेज धूप और बारिश होने पर उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है, लेकिन सरकारी नुमाइंदों को उनकी परेशानी नहीं दिख रही है. करीब दो साल पहले तेज बारिश के चलते जो उसकी खण्डहर कच्ची कोठरी थी, गिरकर ढह गई थी.

स्पेशल रिपोर्ट...

सिस्टम की लाचारी से नहीं मिल सका आवास
प्रदेश सरकार ने बारिश में मकान गिरने से लोगों को बेघर मानकर प्राथमिकता के आधार पर आवास देने का फरमान जारी किया था. इस पर एसडीएम मैथा ने जांच कर मालती को आवास दिए जाने का पत्र डीएम राकेश कुमार सिंह को भेजा था, जिस पर डीएम ने डीडीओ को मामले पर कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया था. एक साल बीतने पर भी आवास न मिलने पर एसडीएम ने दोबारा पत्र भेजा है, लेकिन दो साल बीतने पर भी आज तक सरकारी सिस्टम गरीब मालती को एक आवास उपलब्ध नहीं करा सका है.

widow has been wandering for home in Kanpur dehat for many years
विधवा की झोपड़ी.

इस सम्बन्ध में मैथा बीडीओ सच्चिदानंद प्रसाद ने ईटीवी भारत की टीम को बताया कि मामले की उनको पूरी जानकारी है. पिछले साल मालती को मुख्यमंत्री आवास सूची में शामिल करते हुए प्राथमिकता के आधार पर आवास दिलाने के लिए प्रयास किए थे, लेकिन शासन से बजट कम मिलने पर आवास नहीं मिल सका.

आवास न होने से बेटा अब तक है कुंवारा
वहीं सिस्टम से लाचार और हताश मालती देश के प्रधानमंत्री और सूबे के मुख्यमंत्री से हाथ जोड़ कर फरियाद लगा रही है, 'साहेब मुझे भी आवास दे दो'. आवास न होने की वजह से उसका बेटा आज तक कुंवारा है, जिसकी उम्र 40 साल से भी ज्यादा हो चुकी है.

आवास के लिए रुपये ही खत्म हो गए हैं
जब मालती की स्थिति देखते हुए ईटीवी भारत की टीम ने गांव के मुखिया से सवाल किया तो जबाब ऐसा था कि पूरे सिस्टम पर ही एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा हो गया. ग्राम प्रधान प्रदीप कुमार ने कहा, ' भले ही मेरी तरफ से बहुत प्रयास किया गया है, लेकिन क्या करें. जनपद में मालती के आवास को लेकर रुपये ही खत्म हो गए हैं.'

कानपुर देहात: वनवास के दौरान भगवान राम इसी वृक्ष के नीचे किए थे विश्राम

ऐसे में अहम सवाल ये बनता है कि जब मजबूरों के लिए ही जिले में रुपये पैसे ही खत्म हो जाएं तो वे कहां जाएं और किससे फरियाद करें. फिलहाल इस पूरे मामले में जिले के जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं और कैमरे के सामने हकीकत बयां करने से कतरा रहे हैं.

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