कानपुर देहात: जनपद में एक ऐसा गांव है, जहां दैत्यराज बाणासुर ने वाणेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना की थी. कानपुर के बनीपारा जिनई में दैत्यराज बलि के पुत्र बाणासुर ने इस मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी और मंदिर के पास शिव तालाब, टीला, ऊषा बुर्ज, विष्णु और रेवंत की मूर्तियां इसकी पौराणिकता को प्रमाणित करती हैं.
भगवान शिव की पूजा त्रेता द्वापर युग से लेकर कलियुग तक की जा रही है. जहां देवता देवाधि देव महादेव को अपना आराध्य मानते थे, वहीं असुर भी महादेव को अपना पूज्यदेव मानते थे. उनका कठोर तप करके उनसे वरदान प्राप्त कर देवताओं और ऋषियों पर अत्याचार करते थे. भगवान शिव का एक प्राचीन महाभारत कालीन वाणेश्वर महादेव मंदिर आज भी रूरा क्षेत्र के बनीपारा जिनई में स्थित है. जहां शिवरात्रि जैसे महापर्व में लोगों का तांता लगता है. वहीं सावन के महीने में हजारों श्रद्धालु दर्शन कर झंडे और घंटा चढ़ाकर मन्नत मागते हैं.
मान्यता है कि महाभारत काल के समय दैत्यराज बाणासुर का एक साम्राज्य सिठऊपुरवा था. बाणासुर काफी बलवान और क्रूर दैत्य राजा था, जिससे प्रजा खौफ खाती थी. बाणासुर ने ही अपनी पुत्री ऊषा उर्फ उखा के लिए वाणेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग स्थापित की थी, इसलिए आज भी दैत्य पुत्री ऊषा भोर पहर सबसे पहले मंदिर में पूजा आराधना करती है और शिवलिंग पर पुष्प चढ़ाती है.
ऊषा ने कठोर तप कर मांगी थी वरदान
दैत्यराज की पुत्री ऊषा भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी. एक बार उसने भोलेनाथ की घोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने स्वयं दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा. इस पर ऊषा ने कहा प्रभु आप स्वयं हमारे राज्य में विराजमान हो जाए. इस पर भगवान शिव ने कहा अगर तुम्हारे पिता मेरी शिवलिंग लाएंगे और जहां स्थापित कर देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा. पुत्री के कहने पर जब बाणासुर तपस्या करके शिवलिंग लेकर कैलाश पर्वत से राज्य की तरफ लौटा तो रास्ते में बाणासुर को बहुत तेज लघुशंका लगी, भगवान शिव ने सोचा कि अगर मैं राज्य में स्थापित हो गया, तो दैत्य तप करके लोगों का संहार करेंगे. वह ब्राह्मण का भेष बदलकर पहुंच गये और बाणासुर से बोले महाराज आप परेशान क्यों हैं. दैत्यराज बोला लघुशंका जाना है और शिवलिंग हाथ में है, नीचे नहीं रख सकता.
सावन महीने में उमड़ता है श्रद्धालुओं का सैलाब
इस पर ब्राह्मण बोले लाओ मैं पकड़ लेता हूं, आप करके आ जाओ. जैसे ही दैत्यराज लघुशंका करने लगा, ब्राहमण चिल्लाए महाराज आओ, शिवलिंग छूटा जा रहा है. जब तक बाणासुर आया तब तक शिवलिंग छूट कर जमीन में समा गया. गुस्से में दैत्यराज ने खुदाई शुरू की, लेकिन उसका अंत नहीं मिला. आज यहीं पवित्र शिव स्थान वाणेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है. सावन महीने में यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है. कांवड़िए कावड़ लेकर आते हैं और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. सावन महीने में मंदिर मे शिवलिंग के दर्शन करने के बाद लोग इस पावन परिसर के समीप बने शिव तालाब का पानी ग्रहण करते हैं. वहीं बने टीला और ऊषा बुर्ज के दर्शन करते हैं. यहां प्राचीन रेवंत की मूर्तियों की नक्कासी लोगों को लुभाती है. मान्यता है कि सावन महीने में यहां भोलेनाथ का वास होता है, इसलिए यहां भारी भीड़ उमड़ती है.
70 बीघे में फैला है बाणासुर का किला
कानपुर देहात के रसूलाबाद क्षेत्र के अंतर्गत पड़ने वाले नारायणपुर सोडितपुर गांव से 70 बीघे के क्षेत्रफल में द्वापर युग के समय बाणासुर का बहुत ही ऐतिहासिक और विशाल किला था. बाणासुर का परिवार उस किले में रहा करता था. बाणासुर बेटी ऊषा का विवाह प्रद्युम्न के बेटे अनुरुद्ध के साथ हुआ, लेकिन उसी दौरान नारायणपुर में ही भगवान श्रीकृष्ण और बाणासुर के बीच भीषण युद्ध हुआ. इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने बाणासुर का वध कर दिया. सभी जानते हैं कि बाणासुर भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था, जिसके चलते वो शिव पुत्र के नाम से भी जाना जाता था. जानकारों की मानें तो बाणासुर अपनी बेटी के साथ लगभग 11 किलोमीटर लंबी सुरंग के रास्ते से पैदल चलकर वाणेश्वर शिव मंदिर जिनई बानीपारा में जलाभिषेक किया करता था.
खुदाई पर आज भी मिलते हैं अवशेष
लोगों का कहना है कि आज भी बारिश के समय में सुरंग खेतों में दिख जाती है, जहां से बाणासुर जिनई जाया करता था. बताया जाता है कि महल के आसपास उस समय लगभग सौ से अधिक कुएं थे. बारिश के मौसम में जब खुदाई होती है तो किले के खेड़े पर मानव कंकाल, बहूमूल्य मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन इत्यादि आज भी देखने को मिलते हैं. खेड़े पर आज भी किले की आधारशिला है और दीवारें भी देखने को मिलती हैं.
जमीन से निकली मूर्तियां हैं स्थापित
लोगों का कहना है कि किले के पास ही एक विशाल तालाब था, जहां पर बाणासुर की बेटी ऊषा स्नान करने के बाद जलाभिषेक करने के लिए वाणेश्वर मंदिर जाया करती थी. ग्रामीणों ने बताया कि गांव में स्थित खेड़े पर जरा सी खुदाई करने पर विभिन्न प्रकार के जीव देखने को मिल जाते हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि खेड़े से निकली हजारों साल पुरानी मूर्ति आज भी मंदिर में मौजूद हैं, जो खेड़े की खुदाई में जमीन से निकली है. हिन्दू धर्म और शिव पुराण, महाभारत के हिसाब से यह मंदिर आज भी आस्था और विश्वास का प्रतीक बना हुआ है.