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151 वर्ष पुरानी इस रामलीला में पढ़ी जाती हैं रामायण की सभी चौपाई, जानिए रोचक इतिहास...

कानपुर देहात की 151 साल पुरानी रामलीला का इतिहास बड़ा ही रोचक है. यहां लीला का मंचन अयोध्यापुरी, जनकपुरी और लंकापुरी समेत अलग-अलग स्थानों पर प्रसंग के अनुसार होता है. साथ ही इस रामलीला में रामायण की सभी चौपाइयां पढ़ी जातीं हैं. चलिए जानते हैं इस रामलीला का रोचक इतिहास.

कानपुर देहात के अकबरपुर की रामलीला 151 वर्ष पुरानी है.
कानपुर देहात के अकबरपुर की रामलीला 151 वर्ष पुरानी है.
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Published : Oct 14, 2021, 7:29 PM IST

कानपुर देहातः कानपुर देहात के अकबरपुर की रामलीला 151 वर्ष पुरानी है. इस रामलीला का इतिहास बड़ा ही रोचक है. रामायण के प्रसंग के अनुसार यहां हर लीला के लिए अलग-अलग स्थल हैं.

यहां राम जन्म की लीला का मंचन अयोध्यापुरी नामक स्थान पर किया जाता है. यहीं से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जनकपुरी. यहां पर राम विवाह की लीला का मंचन होता है. यहां मर्यादा पुरुषोत्तम द्वारा धनुष भंग की लीला को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. यहां से करीब तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित है करैयान का तालाब. यहां पर केवट द्वारा प्रभु राम, सीता और लक्ष्मण को गंगा पार कराने की लीला का मंचन होता है. यहीं से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लंकापुरी. यहां दशानन के साम्राज्य को दर्शाया जाता है. यहां अशोक वाटिका भी है, जहां पर माता सीता को रखे जाने का मंचन किया जाता है. राम और रावण की सेना के बीच इसी लंकापुरी में घमासान होता है. अंत में राम द्वारा रावण के अंत की लीला का मंचन भी यही पर होता है. यहां की रामलीला समिति के अध्यक्ष मनोज निगम का कहना है कि ये सभी स्थल समिति के हैं.

अकबरपुर की रामलीला में तैयार किए गए पुतले.

उन्होंने यह भी बताया कि इस रामलीला में रामायण की सभी चौपाइयों को पढ़ा और गाया जाता है. एक भी चौपाई छोड़ी नहीं जाती है. रामचरित मानस में जिस स्थल पर जिस लीला का बखान किया गया है उसी के अनुरूप अलग-अलग लीला स्थल बनाए गए हैं. उन्होंने बताया कि यह रामलीला 151 वर्ष पुरानी हो चुकी है.

अकबरपुर की रामलीला में तैयार किए गए पुतले.
अकबरपुर की रामलीला में तैयार किए गए पुतले.

ये भी पढ़ेंः श्रीरामलीला मंचन में दिया जा रहा सामाजिक सौहार्द का संदेश, मुस्लिम कलाकार श्रीराम के आदर्शों का कर रहे प्रसार


रामलीला समिति के अनुसार इस बार रावण और मेघनाथ के पुतले क्रमशः 65 फुट और 57 फुट के बनाए गए हैं. उन्होंने यह भी बताया कि यहां एक महीने तक मेला लगता है. यहां आयोजन के दौरान हजारों की भीड़ उमड़ती है. कई पार्टियों के नेता और मंत्री भी आते हैं. इस लीला का प्रसारण भी चैनलों पर होता है. उन्होंने बताया कि ये मेला तीन किलोमीटर दायरे में लगता है.

कानपुर देहातः कानपुर देहात के अकबरपुर की रामलीला 151 वर्ष पुरानी है. इस रामलीला का इतिहास बड़ा ही रोचक है. रामायण के प्रसंग के अनुसार यहां हर लीला के लिए अलग-अलग स्थल हैं.

यहां राम जन्म की लीला का मंचन अयोध्यापुरी नामक स्थान पर किया जाता है. यहीं से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जनकपुरी. यहां पर राम विवाह की लीला का मंचन होता है. यहां मर्यादा पुरुषोत्तम द्वारा धनुष भंग की लीला को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. यहां से करीब तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित है करैयान का तालाब. यहां पर केवट द्वारा प्रभु राम, सीता और लक्ष्मण को गंगा पार कराने की लीला का मंचन होता है. यहीं से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लंकापुरी. यहां दशानन के साम्राज्य को दर्शाया जाता है. यहां अशोक वाटिका भी है, जहां पर माता सीता को रखे जाने का मंचन किया जाता है. राम और रावण की सेना के बीच इसी लंकापुरी में घमासान होता है. अंत में राम द्वारा रावण के अंत की लीला का मंचन भी यही पर होता है. यहां की रामलीला समिति के अध्यक्ष मनोज निगम का कहना है कि ये सभी स्थल समिति के हैं.

अकबरपुर की रामलीला में तैयार किए गए पुतले.

उन्होंने यह भी बताया कि इस रामलीला में रामायण की सभी चौपाइयों को पढ़ा और गाया जाता है. एक भी चौपाई छोड़ी नहीं जाती है. रामचरित मानस में जिस स्थल पर जिस लीला का बखान किया गया है उसी के अनुरूप अलग-अलग लीला स्थल बनाए गए हैं. उन्होंने बताया कि यह रामलीला 151 वर्ष पुरानी हो चुकी है.

अकबरपुर की रामलीला में तैयार किए गए पुतले.
अकबरपुर की रामलीला में तैयार किए गए पुतले.

ये भी पढ़ेंः श्रीरामलीला मंचन में दिया जा रहा सामाजिक सौहार्द का संदेश, मुस्लिम कलाकार श्रीराम के आदर्शों का कर रहे प्रसार


रामलीला समिति के अनुसार इस बार रावण और मेघनाथ के पुतले क्रमशः 65 फुट और 57 फुट के बनाए गए हैं. उन्होंने यह भी बताया कि यहां एक महीने तक मेला लगता है. यहां आयोजन के दौरान हजारों की भीड़ उमड़ती है. कई पार्टियों के नेता और मंत्री भी आते हैं. इस लीला का प्रसारण भी चैनलों पर होता है. उन्होंने बताया कि ये मेला तीन किलोमीटर दायरे में लगता है.

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