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दिव्यांग बच्चे ने अपनी कमजोरी को बनाया ताकत, हाथ नहीं थे तो पैरों से शुरू की पेंटिंग और पढ़ाई-लिखाई

Writing Painting with Feet : चार साल की उम्र में खेलते वक्त ट्रांसफार्मर के पास से गेंद उठाते समय गोपाल 11 हजार वोल्टेज के करंट की चपेट में आ गए थे. बिजली के तार उसके शरीर में चिपक गए थे. उसको हटाने में गोपाल के दोनों हाथ झुलस गए. जिसकी वजह से उसके दोनों हाथ काटने पड़े थे.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 31, 2023, 2:02 PM IST

दिव्यांगता को मात दे रहे कन्नौज के गोपाल दीक्षित की कहानी पर संवाददाता नित्या मिश्रा की खास रिपोर्ट.

कन्नौज: कहते हैं हौसले मजबूत हों तो मुश्किल से मुश्किल राह भी आसान हो जाती है. इसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के एक छोटे से कस्बे जलालाबाद में देखने को मिला है. यहां जिंदादिली की मिसाल बनकर सामने आए हैं दोनों हांथो से दिव्यांग 18 साल के गोपाल दीक्षित. जो हताश लोगों के लिए एक प्रेरणा बन चुके हैं.

गोपाल जब 4 साल के थे, तब एक हादसे का शिकार हो गए थे, जिसमे गोपाल के दोनों हाथ कट गए थे. अपनी कमजोरी को ताकत बनाकर आज गोपाल 18 साल का हो गया और बिना किसी की मदद लिए उसने अपने पैरो को दोनों हाथ बना लिए. आज गोपाल अपने दोनों पैरो से दिनचर्या के सभी काम के साथ-साथ पेंटिंग पढ़ाई व खेलकूद स्वयं करता है. गोपाल का हौसला इतना मजबूत है कि जो एक आम व्यक्ति अपने हाथ से कार्य कर सकता है, गोपाल उसे पैरों से कर लेता है.

इत्र नगरी कन्नौज मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर जलालाबाद कस्बे में 18 वर्षीय दिव्यांग गोपाल दीक्षित अपने माता-पिता, भाई-बहनों के साथ एक मंदिर में रहता है. गोपाल के दोनों हाथ नहीं है. लेकिन, वह समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनके सामने आया है. गोपाल ने बताया कि 4 साल की उम्र में खेलते वक्त ट्रांसफार्मर के पास गेंद उठाने चले गए और 11 हजार वोल्टेज के करंट की चपेट में आ गया था.

बिजली के तार उसके शरीर में चिपक गए थे. उसको हटाने में गोपाल के दोनों हाथ झुलस गए. इलाज के दौरान डॉक्टरों ने बताया कि गोपाल की जान बचाने के लिए उसके दोनों हाथ काटने पड़ेंगे. गोपाल के इलाज में खेत घर सब बिक गया. माता पिता कर्जदार हो गए. गोपाल के पिता मुकेश दीक्षित एक कोल्ड स्टोर में काम करते थे. हादसे के वक्त अपना सब कुछ बेचकर गोपाल के पिता बड़े संघर्ष के बाद बेटे की जान बचा पाए.

धीरे-धीरे समय बीता और गोपाल ने अपने दोनों हाथों को देखे बिना दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ना शुरू किया. आज गोपाल ऐसा कोई काम नहीं जो अपने पैरों से नहीं कर सकते. जो काम आम आदमी अपने हाथों से करता है वह गोपाल अपने पैरों से कर लेते हैं. सुबह उठते ही गोपाल मंदिर में साफ सफाई शुरू करते हैं. उसके बाद स्नान पूजन और फिर स्कूल की तरफ अपना बैग लेकर खुद चल पड़ते हैं.

मोबाइल पर गोपाल के पैर ऐसे चलते हैं जैसे मानो कोई व्यक्ति हाथों से मोबाइल को चला रहा हो. नंबर डायल करना, कोई वेबसाइट खोलना कोई चीज देखना, गोपाल की राइटिंग ऐसी है जो आम व्यक्ति अपने हाथों से नहीं लिख सकता. गोपाल पेंटिंग में भी बहुत माहिर हैं. एक से बढ़कर एक खूबसूरत पेंटिंग गोपाल ने बनाई हैं. विद्यालय में होने वाली पेंटिंग प्रतियोगिता में भी गोपाल ने कई बार प्रथम स्थान पाया है.

गोपाल को खेलकूद का भी बहुत शौक है. गोपाल फुटबॉल और रनिंग में काफी प्रतिभाशाली हैं. लेकिन, गोपाल को अभी तक किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं मिला है. दिव्यांग पेंशन से गोपाल मरहूम हैं. गोपाल पढ़ने में काफी अच्छे हैं. गोपाल खुद बताते हैं कि वह पढ़ लिखकर अपने परिवार का नाम रोशन करना चाहते हैं और अपनी दिव्यांगता के अभिशाप को वह अपनी पढ़ाई के दम पर दूर करके एक मिसाल कायम कर आईएएस बनना चाहते हैं.

दिव्यांगता के साथ-साथ आर्थिक स्थिति भी गोपाल की प्रतिभा के आड़े आ रही है. गोपाल के पिता की आर्थिक स्थिति गोपाल के इलाज के बाद से पूरी तरह से टूट चुकी है. जिससे गोपाल को अब कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. एक प्राइवेट संस्थान में कृत्रिम हाथ लगवाने के लिए गोपाल गए लेकिन वहां पर करीब साढे चार लाख रुपए का खर्च बताया जो गोपाल और उनके परिवार के लिए संभव नहीं है.

गोपाल खुद कहते हैं कि अगर उनकी मदद की जाए तो वह बहुत कुछ कर सकते हैं. गोपाल एक संदेश भी देते हैं कि किसी भी हाल में किसी भी परिस्थिति में कभी हार नहीं माननी चाहिए. मेरे दोनों हाथ नहीं है लेकिन फिर भी मैं अपने आप को दिव्यांग नहीं समझता. मैं जीवन से लड़ रहा हूं. जीवन अनमोल है और आगे कुछ कर गुजरने का जुनून मेरे अंदर है.

गोपाल के चाचा भी यही कहते हैं. गोपाल बहुत प्रतिभाशाली है अगर इसको सरकार की तरफ से मदद मिल जाए तो यह आगे चलकर अपना करियर बहुत अच्छा बना सकता है. गांव का प्रत्येक व्यक्ति गोपाल की तारीफ करते नहीं थकता. ऐसी जिंदादिली की मिसाल पूरे गांव में या यूं कहें पुर कन्नौज में नहीं मिलती. यही कारण है कि गोपाल लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं.

ये भी पढ़ेंः "हमें जेल भेज दो, ये लोग मार देंगे," सिपाही की हत्या करने वाले हिस्ट्रीशीटर ने मांगी जान की भीख

दिव्यांगता को मात दे रहे कन्नौज के गोपाल दीक्षित की कहानी पर संवाददाता नित्या मिश्रा की खास रिपोर्ट.

कन्नौज: कहते हैं हौसले मजबूत हों तो मुश्किल से मुश्किल राह भी आसान हो जाती है. इसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के एक छोटे से कस्बे जलालाबाद में देखने को मिला है. यहां जिंदादिली की मिसाल बनकर सामने आए हैं दोनों हांथो से दिव्यांग 18 साल के गोपाल दीक्षित. जो हताश लोगों के लिए एक प्रेरणा बन चुके हैं.

गोपाल जब 4 साल के थे, तब एक हादसे का शिकार हो गए थे, जिसमे गोपाल के दोनों हाथ कट गए थे. अपनी कमजोरी को ताकत बनाकर आज गोपाल 18 साल का हो गया और बिना किसी की मदद लिए उसने अपने पैरो को दोनों हाथ बना लिए. आज गोपाल अपने दोनों पैरो से दिनचर्या के सभी काम के साथ-साथ पेंटिंग पढ़ाई व खेलकूद स्वयं करता है. गोपाल का हौसला इतना मजबूत है कि जो एक आम व्यक्ति अपने हाथ से कार्य कर सकता है, गोपाल उसे पैरों से कर लेता है.

इत्र नगरी कन्नौज मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर जलालाबाद कस्बे में 18 वर्षीय दिव्यांग गोपाल दीक्षित अपने माता-पिता, भाई-बहनों के साथ एक मंदिर में रहता है. गोपाल के दोनों हाथ नहीं है. लेकिन, वह समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनके सामने आया है. गोपाल ने बताया कि 4 साल की उम्र में खेलते वक्त ट्रांसफार्मर के पास गेंद उठाने चले गए और 11 हजार वोल्टेज के करंट की चपेट में आ गया था.

बिजली के तार उसके शरीर में चिपक गए थे. उसको हटाने में गोपाल के दोनों हाथ झुलस गए. इलाज के दौरान डॉक्टरों ने बताया कि गोपाल की जान बचाने के लिए उसके दोनों हाथ काटने पड़ेंगे. गोपाल के इलाज में खेत घर सब बिक गया. माता पिता कर्जदार हो गए. गोपाल के पिता मुकेश दीक्षित एक कोल्ड स्टोर में काम करते थे. हादसे के वक्त अपना सब कुछ बेचकर गोपाल के पिता बड़े संघर्ष के बाद बेटे की जान बचा पाए.

धीरे-धीरे समय बीता और गोपाल ने अपने दोनों हाथों को देखे बिना दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ना शुरू किया. आज गोपाल ऐसा कोई काम नहीं जो अपने पैरों से नहीं कर सकते. जो काम आम आदमी अपने हाथों से करता है वह गोपाल अपने पैरों से कर लेते हैं. सुबह उठते ही गोपाल मंदिर में साफ सफाई शुरू करते हैं. उसके बाद स्नान पूजन और फिर स्कूल की तरफ अपना बैग लेकर खुद चल पड़ते हैं.

मोबाइल पर गोपाल के पैर ऐसे चलते हैं जैसे मानो कोई व्यक्ति हाथों से मोबाइल को चला रहा हो. नंबर डायल करना, कोई वेबसाइट खोलना कोई चीज देखना, गोपाल की राइटिंग ऐसी है जो आम व्यक्ति अपने हाथों से नहीं लिख सकता. गोपाल पेंटिंग में भी बहुत माहिर हैं. एक से बढ़कर एक खूबसूरत पेंटिंग गोपाल ने बनाई हैं. विद्यालय में होने वाली पेंटिंग प्रतियोगिता में भी गोपाल ने कई बार प्रथम स्थान पाया है.

गोपाल को खेलकूद का भी बहुत शौक है. गोपाल फुटबॉल और रनिंग में काफी प्रतिभाशाली हैं. लेकिन, गोपाल को अभी तक किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं मिला है. दिव्यांग पेंशन से गोपाल मरहूम हैं. गोपाल पढ़ने में काफी अच्छे हैं. गोपाल खुद बताते हैं कि वह पढ़ लिखकर अपने परिवार का नाम रोशन करना चाहते हैं और अपनी दिव्यांगता के अभिशाप को वह अपनी पढ़ाई के दम पर दूर करके एक मिसाल कायम कर आईएएस बनना चाहते हैं.

दिव्यांगता के साथ-साथ आर्थिक स्थिति भी गोपाल की प्रतिभा के आड़े आ रही है. गोपाल के पिता की आर्थिक स्थिति गोपाल के इलाज के बाद से पूरी तरह से टूट चुकी है. जिससे गोपाल को अब कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. एक प्राइवेट संस्थान में कृत्रिम हाथ लगवाने के लिए गोपाल गए लेकिन वहां पर करीब साढे चार लाख रुपए का खर्च बताया जो गोपाल और उनके परिवार के लिए संभव नहीं है.

गोपाल खुद कहते हैं कि अगर उनकी मदद की जाए तो वह बहुत कुछ कर सकते हैं. गोपाल एक संदेश भी देते हैं कि किसी भी हाल में किसी भी परिस्थिति में कभी हार नहीं माननी चाहिए. मेरे दोनों हाथ नहीं है लेकिन फिर भी मैं अपने आप को दिव्यांग नहीं समझता. मैं जीवन से लड़ रहा हूं. जीवन अनमोल है और आगे कुछ कर गुजरने का जुनून मेरे अंदर है.

गोपाल के चाचा भी यही कहते हैं. गोपाल बहुत प्रतिभाशाली है अगर इसको सरकार की तरफ से मदद मिल जाए तो यह आगे चलकर अपना करियर बहुत अच्छा बना सकता है. गांव का प्रत्येक व्यक्ति गोपाल की तारीफ करते नहीं थकता. ऐसी जिंदादिली की मिसाल पूरे गांव में या यूं कहें पुर कन्नौज में नहीं मिलती. यही कारण है कि गोपाल लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं.

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