झांसी: बुन्देलखण्ड में छुट्टा यानी अन्ना पशुओं के कारण एक ओर जहां किसान मुश्किल में हैं तो दूसरी ओर ये अन्ना पशु राष्ट्रीय राजमार्गों पर कब्जा जमाए दिखाई देते हैं. झांसी से लखनऊ की ओर आते समय राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे भले ही कोई गौवंश न दिखाई दे, लेकिन जगह-जगह हाइवे पर बीचोबीच गौवंश का झुंड दिखाई दे जाता है. लिहाजा यह अनुमान लगा पाना भी मुश्किल होता है कि यह हाइवे है या गौशाला.
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हाइवे पर गौवंश का झुंड
आवारा जानवरों का यह झुंड झांसी कानपुर हाइवे पर ही नहीं बल्कि झांसी से मऊरानीपुर की ओर जाने वाली सड़क पर भी दिखाई देता है. झांसी कानपुर राजमार्ग पर ग्राम बरल के निकट हाइवे पर बड़ी संख्या में गौवंश सड़क पर दिखाई दे जाते हैं. खेतों से खदेड़े जाने या फिर अंधेरे में ये सड़क पर अपना ठिकाना बनाते हैं. दूसरी ओर सड़क पर चलने वाले वाहनों की स्पीड पर ब्रेक लगता है. अक्सर दुर्घटना में गौवंश की मौत होती है. दुर्घटनाओं में इंसानों की भी जान जाती है.
हर रोज गौवंशों की मौत
बरल गांव के रहने वाले जीतेन्द्र बताते हैं कि यहां हर रोज 2 से 3 गाय मर जाती हैं. उन्हें उठाना भी हम ही लोगों को पड़ता है. ये खेतों में जाती हैं तो लोग वहां से खदेड़ते हैं. करगुवां के पास एक गौशाला बनी थी लेकिन वह बनते ही उखड़ गई.
बन रही 200 गौशालाएं
झांसी के मुख्य विकास अधिकारी निखिल टीकाराम फुण्डे बताते हैं कि अन्ना प्रथा यहां की बड़ी समस्या रही है. सरकार और जिला प्रशासन प्रयासरत है कि किस तरह से यह समस्या दूर हो. झांसी से होकर जाने वाली हाइवे पर यह समस्या हमेशा से रही है. इसके लिए हमने जनपद में 200 गौ आश्रय स्थल स्थानीय स्तर पर बनवाये हैं.
गौशालाओं में व्यवस्थाओं का दावा
सीडीओ कहते हैं कि जितने भी गौ आश्रय स्थल बनाये जा रहे हैं उनमें चारा, पानी और शेड की व्यवस्था है, ताकि जितने भी गौवंश इसमें रखें जाएं, वे सुरक्षित रहें. ये दो तरीके से नुकसान करते हैं. एक तो इनके कारण सड़क पर दुर्घटना होती है और दूसरे ये फसलों को खराब करते हैं.