झांसी: साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित और बुंदेली भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार लेखक डॉ. राम नारायण शर्मा ने एक बार फिर से बुंदेली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठाई है. वह इसके लिए बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, हिंदी के साहित्यकारों और बुन्देलखण्ड के जन प्रतिनिधियों की सक्रियता बढ़ाने पर जोर देते हैं. दूसरी ओर हिंदी भाषा के साहित्यकार बुंदेली को हिंदी से अलग करने की कोशिश का विरोध जताते हुए अपने तर्क रखते हैं.
बुंदेली भाषा को पहचान दिलाने का संघर्ष
साहित्यकार डॉ. राम नारायण शर्मा कहते हैं कि साल 2004 से विभिन्न भाषाई सम्मेलनों में इस बात पर चर्चा हो रही है कि किन कमियों के कारण बुंदेली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं करा पा रहे हैं. विश्वविद्यालय के योगदान की काफी आवश्यकता महसूस हो रही थी. बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में एमए और बीए में दो पेपर बुंदेली के शामिल किए गए हैं. कुछ जन प्रतिनिधियों ने इस मसले को गृह मंत्रालय और संसद में भी उठाया है.
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बुंदेली भाषा में है हर विधा का साहित्य
डॉ. राम नारायण शर्मा कहते हैं कि बुंदेली भाषा में हर गुण हैं. इस भाषा में कथा, उपन्यास, यात्रा कथाएं और अन्य विधाएं हैं. कुछ लोग कहते हैं कि यह भाषा ठीक नहीं है. कुछ लोग इसे भाषा ही नहीं मानते. अब इसे भाषा मानने लगे हैं, लेकिन हमें लड़ाई अभी लम्बी लड़नी पड़ेगी और लड़ते रहेंगे.
आठवीं अनुसूची के लिए प्रस्ताव का विरोध
बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पुनीत बिसारिया कहते हैं यदि बुंदेली आठवीं अनुसूची में शामिल होती है तो अन्य भाषाओं की भी इसी प्रकार आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की मांग उठेगी. हिंदी का अस्तित्व ही बोलियों के समुच्चय से बना हुआ है. यदि सभी बोलियां हिंदी से अलग हो जाएंगी तो हिंदी के पास कुछ नहीं बचेगा. यह सब बोलियां हिंदी का श्रृंगार हैं. साथ रहकर ही हिंदी और बुंदेली दोनों विकसित हो सकती हैं.