झांसी: बुंदेलखंड में जल संकट साल दर साल गहराता जा रहा है. यहां पेयजल और सिंचाई के पानी का संकट हमेशा से ही लोगों की जिंदगी पर असर डालता रहा है. पलायन से लेकर किसानों की खुदकुशी जैसी समस्याएं पानी के संकट के कारण पैदा होती रही हैं. बुंदेलखंड के यूपी के हिस्से में झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट और महोबा आते हैं. सभी जिलों में पेयजल का संकट है. परमार्थ संस्था, जल सहेली और पानी पंचायत नाम की संस्थाओं ने मिलकर एक घोषणा पत्र तैयार किया है. जिसे पिछले दिनों लखनऊ और झांसी से जारी किया गया.
घोषणा पत्र में की मांग
- बुंदेलखंड में पीने के पानी पर सार्वजनिक व्यय में बढ़ोत्तरी की जाए.
- पीने के पानी के परंपरागत स्रोतों का संरक्षण कर उन्हें विकसित करने की कोशिश की जाए.
- पानी पर खर्च होने वाले बजट को लेकर पारदर्शिता बरती जाए और लोगों को सभी तरह के खर्च की जानकारी दी जाए.
- जल सम्बन्धी योजनाओं और कार्यक्रमों के निर्माण में स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए.
- बुंदेलखंड में जल सम्बन्धी योजनाओं का सोशल आडिट कराया जाए.
बुंदेलखंड की जल समस्या स्थाई रूप से कभी नहीं बनी. राजनीतिक दल चुनाव के समय जल संकट दूर करने का वादा करते है. इन वादों का जमीन पर असर नहीं होता. एक अध्ययन के मुताबिक बुंदेलखंड में 60 प्रतिशत हैण्डपम्प खराब पड़े हैं. पेयजल की 70 प्रतिशत से अधिक परियोजनाएं काम नहीं कर रही हैं.
संजय सिंह सामाजिक कार्यकर्ता
हमारे गांव में पाइप लाइन बिछी है. उसमें पानी नहीं आता है. नेता वोट मांगने आएंगे तो हम उन्हें यह घोषणा पत्र दिखाएंगे और समस्या के समाधान का आश्वासन मांगेंगे. हमारी समस्या के समाधान की बात वे नहीं करेंगे तो हम अपना वोट उन्हें नहीं देंगे.
मायादेवी जल सहेली संस्था की सदस्य