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स्कंद पुराण में वर्णित है जौनपुर का त्रिलोचन महादेव मंदिर

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में त्रिलोचन महादेव मंदिर की महिमा अपरमपार है. सावन के महीने में त्रिलोचन महादेव के मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है. वहीं यहां हजारों की संख्या में कांवड़िए जल भी चढ़ाते हैं.

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Published : Jul 16, 2019, 11:31 AM IST

Updated : Jul 16, 2019, 1:28 PM IST

भगवान शिव की दुर्लभ मूर्ति

जौनपुरः 12 ज्योतिर्लिंगों में त्रिलोचन महादेव मंदिर का नाम शामिल नहीं है, फिर भी यह मंदिर अटूट आस्था के साथ तमाम रहस्य गाथाओं को अपने में समेटे हुए हैं. मान्यता है कि त्रिलोचन महादेव मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति सात पाताल भेदकर प्रकट हुई थी. यह भगवान शिव की दुर्लभ मूर्ति है, जिसपर उनका पूरा चेहरा खुदा हुआ है.

यहां विराजित है भगवान शिव की दुर्लभ मूर्ति.

इस मूर्ति पर आंख, नाक, मुंह, मस्तक आदि बना हुआ है. जिसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. यहां के पुजारियों का कहना है कि तीसरी नेत्र खोलकर बाबा भोले शंकर ने यहीं से भस्मासुर को भस्म किया था.

कैसे प्रकट हुई मूर्ति-
त्रिलोचन महादेव मंदिर की प्राचीनता का जिक्र स्कंद पुराण के 674 नंबर पेज पर मिलता है. मंदिर के पुजारी दिनेश गिरी ने बताया कि पूरा इलाका आनंदवन के नाम से जाना जाता था. जहां गाय चराने वाले यादव लोग रोज आनदवन में आते थे. एक गाय एक शिला पर खड़ी होकर रोज अपना दूध अर्पित करती थीं. यह देख लोगों ने उस स्थान की खुदाई की तो वहां से एक पाताल भेदी शिव धड़ प्रकट हुआ है, जिस पर भगवान शिव का रूप खुदा हुआ था. जिसके बाद मंदिर की स्थापना करके पूजा-अर्चना शुरू की गई.

मंदिर का रहस्य-
मंदिर की स्थापना के बाद दो गांव के बीच में विवाद हो गया. लहंगपुर और रेहटी गांव के बीच में मंदिर को लेकर विवाद शुरू हुआ. विवाद के चलते मंदिर पर ताला लगा दिया गया और भगवान पर ही यह फैसला छोड़ दिया गया कि वह अपनी शक्ति के द्वारा बताए कि वह किस गांव में स्थित है. सुबह जब मंदिर का कपाट खोला गया तो भगवान शिव की मूर्ति एक तरफ टेढ़ी थी. जिसे रेहटी गांव में मान लिया गया. भगवान के इस चमत्कार की चर्चा दूर तक फैल गई. तब से यह मंदिर पूरे देश में मशहूर हो गया. इस मंदिर की प्राचीनता का वर्णन स्कंद पुराण में 674 नंबर पेज पर मिलता है.

यह अनोखा मंदिर है क्योंकि इस शिव मंदिर में शिवलिंग न होकर शिव धड़ है. इस शिला पर भगवान शिव का पूरा रूप खुदा हुआ है.
-दिनेश गिरी, पुजारी

जौनपुरः 12 ज्योतिर्लिंगों में त्रिलोचन महादेव मंदिर का नाम शामिल नहीं है, फिर भी यह मंदिर अटूट आस्था के साथ तमाम रहस्य गाथाओं को अपने में समेटे हुए हैं. मान्यता है कि त्रिलोचन महादेव मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति सात पाताल भेदकर प्रकट हुई थी. यह भगवान शिव की दुर्लभ मूर्ति है, जिसपर उनका पूरा चेहरा खुदा हुआ है.

यहां विराजित है भगवान शिव की दुर्लभ मूर्ति.

इस मूर्ति पर आंख, नाक, मुंह, मस्तक आदि बना हुआ है. जिसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. यहां के पुजारियों का कहना है कि तीसरी नेत्र खोलकर बाबा भोले शंकर ने यहीं से भस्मासुर को भस्म किया था.

कैसे प्रकट हुई मूर्ति-
त्रिलोचन महादेव मंदिर की प्राचीनता का जिक्र स्कंद पुराण के 674 नंबर पेज पर मिलता है. मंदिर के पुजारी दिनेश गिरी ने बताया कि पूरा इलाका आनंदवन के नाम से जाना जाता था. जहां गाय चराने वाले यादव लोग रोज आनदवन में आते थे. एक गाय एक शिला पर खड़ी होकर रोज अपना दूध अर्पित करती थीं. यह देख लोगों ने उस स्थान की खुदाई की तो वहां से एक पाताल भेदी शिव धड़ प्रकट हुआ है, जिस पर भगवान शिव का रूप खुदा हुआ था. जिसके बाद मंदिर की स्थापना करके पूजा-अर्चना शुरू की गई.

मंदिर का रहस्य-
मंदिर की स्थापना के बाद दो गांव के बीच में विवाद हो गया. लहंगपुर और रेहटी गांव के बीच में मंदिर को लेकर विवाद शुरू हुआ. विवाद के चलते मंदिर पर ताला लगा दिया गया और भगवान पर ही यह फैसला छोड़ दिया गया कि वह अपनी शक्ति के द्वारा बताए कि वह किस गांव में स्थित है. सुबह जब मंदिर का कपाट खोला गया तो भगवान शिव की मूर्ति एक तरफ टेढ़ी थी. जिसे रेहटी गांव में मान लिया गया. भगवान के इस चमत्कार की चर्चा दूर तक फैल गई. तब से यह मंदिर पूरे देश में मशहूर हो गया. इस मंदिर की प्राचीनता का वर्णन स्कंद पुराण में 674 नंबर पेज पर मिलता है.

यह अनोखा मंदिर है क्योंकि इस शिव मंदिर में शिवलिंग न होकर शिव धड़ है. इस शिला पर भगवान शिव का पूरा रूप खुदा हुआ है.
-दिनेश गिरी, पुजारी

Intro:जौनपुर।। 12 ज्योतिर्लिंगों में त्रिलोचन महादेव का मंदिर शामिल नहीं है फिर भी यह मंदिर अटूट आस्था के साथ तमाम रहस्य गाथाओं को अपने में समेटे हुए हैं। त्रिलोचन महादेव का मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति सात पाताल भेद कर प्रकट हुई थी। यह भगवान शिव की दुर्लभ मूर्ति है जिस पर उनका पूरा चेहरा खुदा हुआ है । इस मूर्ति पर आंख, नाक,मुह,मस्तक आदि बना हुआ है जिसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है ।यह कोई शिवलिंग नहीं बल्कि शिव धड़ है। यहां के पुजारियों का कहना है कि तीसरी नेत्र खोलकर बाबा भोले शंकर ने यहीं से भस्मासुर को भस्म किया था।Body:वीओ।।

कैसे प्रकट हुई मूर्ति-

त्रिलोचन महादेव मंदिर की प्राचीनता का जिक्र स्कंद पुराण के 674 नंबर पेज पर मिलता है। मंदिर के पुजारी दिनेश गिरी ने बताया कि पूरा इलाका आनंदवन के नाम से जाना जाता था। जहां गाय चराने वाले यादव लोग रोज आनदवन में आते थे । एक गाय एक शिला पर खड़ी होकर रोज अपना दूध अर्पित करती थी। यह देख लोगों ने उस स्थान की खुदाई की तो वहां से एक पाताल भेदी शिव धड़ प्रकट हुआ है जिस पर भगवान शिव का रूप खुदा हुआ था। जिसके बाद मंदिर की स्थापना करके पूजा-अर्चना शुरू की गई।

मंदिर का रहस्य-
मंदिर की स्थापना के बाद 2 गांव के बीच में विवाद हो गया। लहंग पुर और रेहटी गांव के बीच में मंदिर को लेकर विवाद शुरू हुआ। विवाद के चलते मंदिर पर ताला लगा दिया गया और भगवान पर ही यह फैसला छोड़ दिया गया कि वह अपनी शक्ति के द्वारा बताएं कि वह किस गांव में स्थित है। सुबह जब मंदिर का कपाट खोला गया तो भगवान शिव की मूर्ति एक तरफ टेढ़ी थी जिसे रेहटी गांव में मान लिया गया। भगवान के इस चमत्कार की चर्चा दूर तक फैल गई। तब से यह मंदिर पूरे देश में मशहूर हो गया।

सावन के महीने में त्रिलोचन महादेव के मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। वही यहां हजारों की संख्या में कांवड़िए जल भी चढ़ाते हैं मंदिर में 1 माह तक मेला लगता है जो पूरी तरह से प्रशासन की देखरेख में संचालित होता है।Conclusion:मंदिर के पुजारी दिनेश गिरी ने बताया यह अनोखा मंदिर है क्योंकि हर शिव मंदिर में शिवलिंग होता है यहां शिवलिंग ना होकर बल्कि शिव धड़ है । इस शीला पर भगवान शिव का पूरा रूप खुदा हुआ है । वहीं इस मंदिर की प्राचीनता का वर्णन स्कंद पुराण में 674 नंबर पेज पर मिलता है।

बाइट- दिनेश गिरी मंदिर पुजारी

पीटीसी

Dharmendra singh
jaunpur
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Last Updated : Jul 16, 2019, 1:28 PM IST
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