लखनऊः आज के युग में लोग आधुनिक गैजेट को पाने का सपना रखते हैं. दुनिया में हर व्यक्ति के पास स्मार्ट टीवी, इंटरनेट, सोशल मीडिया समेत कई ऐसे आधुनिक गैजेट्स और तकनीक है, जिसे वह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में प्रयोग करता है. ऐसा ही एक गजट अपने आविष्कार के दिनों से आज तक अपने वजूद को बचाए हुए है. भले ही उसका रूप कुछ भी हो गया हो, पर वह आधुनिकता के युग में भी मौजूद है. भले ही मोबाइल में भी समायोजित हो गया है, लेकिन लोग उसे आज भी प्रयोग करना या कहे सुनना पसंद करते हैं.
13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के तौर पर जाना जाता है. दरअसल, रेडियो के आविष्कार से लेकर आज तक यह हमारे जीवन में अभिन्न अंग की तरह शामिल रहा है. इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि दुनिया की कई बड़ी हस्तियां रेडियो रखना पसंद करते हैं. रेडियो दिवस के अवसर पर ETV भारत आपको आज लखनऊ में मौजूद कुछ ऐसे रेडियोज के कलेक्शन से रू-ब-रू करा रहे हैं, जिसका ऐतिहासिक महत्व है. लखनऊ के एक व्यक्ति ऐसे भी हैं, जिन्होंने पुराने रेडियो का अनोखा कलेक्शन तैयार किया है. इसमें हिटलर का पसंदीदा रेडियो मॉडल भी है.
फिलिप्स कंपनी रेडियो मॉडल पसंद करता था एडोल्फ हिटलर: 18वीं शताब्दी के अंत और 19वीं शताब्दी की शुरुआत में एक ऐसा दौर था, जब लोग सूचना या मनोरंजन के लिए रेडियो पर निर्भर हुआ करते थे. राजधानी लखनऊ में कैम्पबेल रोड के रहने वाले हसन जैदी के पास रेडियो का एक छोटा संसार है, जिसमें उनके पास साल 1920 से लेकर 1980 तक के बने करीब 28 दुर्लभ रेडियो हैं.
हसनजल्दी के इस छोटे से कलेक्शन में एक रेडियो ऐसा भी है, जिसे दूसरे विश्व युद्ध का कारण माने जाने वाले जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर काफी पसंद करता था. दूसरे विश्व युद्ध के समय नीदरलैंड की फिलिप्स कंपनी ने ए314 रेडियो का निर्माण किया था, जिसे हिटलर काफी पसंद करता था. सबसे खास बात यह है कि इस रेडियो का निर्माण साल 1939 में शुरू हुआ. इसके 100 मॉडल ही बने थे, कि दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया. कंपनी ने इस मॉडल की मैन्युफैक्चरिंग बंद कर दी. इस मॉडल का एक रेडियो दूसरे विश्व युद्ध के समय एडोल्फ हिटलर द्वारा इस्तेमाल किया जाता था, जिसमें वह युद्ध की सूचनाओं सुनने के साथ ही अपने सेना को संदेश देने के लिए भी उपयोग करता था.
लखनऊ का शाही परिवार बर्मिंघम से लाया था 314 एक्स रेडियो: हसन जैदी ने ने बताया कि नीदरलैंड में बने 314 एक रेडियो उन्होंने लखनऊ के एक शाही परिवार से साल 2009 में ₹5000 में खरीदा था. उनका दावा है की शाही परिवार यह रेडियो बर्मिंघम से उनके पूर्वज लेकर आए थे. उन्होंने इसे अपने पास संरक्षित रखा था. बाद में घर के कुछ सामान हटाने के दौरान उन्होंने इस रेडियो को भी उन्हें बेच दिया था. हसन जैदी का कहना है कि उन्हें एंटीक चीज कलेक्ट करने का शौक है, जिसे पूरा करने के लिए वह देश भर में जहां भी जाते हैं, ऐसी चीजों को खोजते हैं. इसी का परिणाम है कि आज उनके पास रेडियो के एक अनूठे संग्रह की विरासत है. वह बताते हैं कि इन दुर्लभ रेडियो को संग्रह करने के साथ ही रेडियो के ऐतिहासिक सफर और उसके टेक्निक को जितना हो सके जानने के बाद उसे जीवंत रखने की पूरी कोशिश करता हूं.
रेडियो को एफएम में कन्वर्ट करने में पाई है सफलता: रेडियो के संग्रहकर्ता हसन जैदी ने बताया कि 1920 से लेकर 1960 के दशक तक जो रेडियो बने हैं. वह शॉर्ट वेव्स पर काम करते थे, उसके बाद मीडियम वेव्स और अब फ्रीक्वेंसी मोड (एफएम) का जमाना है. उन्होंने बताया कि 1920 में का जो सबसे पुराना रेडियो है वह केवल काम नहीं कर रहा है, जबकि उसके बाद के 1939 का 314 एक 1940 का 1960 का 1952 के बने रेडियो को उन्होंने शॉर्ट वेव से कन्वर्ट करके मीडियम वेब पर कर दिया है. मीडियम वेब पर आज भी विविध भारती और आकाशवाणी जैसे चैनलों का प्रसारण होता है. इसके अलावा कुछ रेडियस ऐसे हैं जिन्हें एफएम में भी कन्वर्ट किया गया है.
उन्होंने बताया कि उनके संग्रह में मौजूद 28 में से 25 रेडियो आज भी काम कर रहे हैं. वह उन्हें रोज बजाते हैं. हसन जैदी ने बताया कि इन रिड्यूस का संरक्षण और रिपेयर करना आज एक बहुत मुश्किल काम है. राजधानी लखनऊ में इन रेडियस को रिपेयर करने वाले मैकेनिक्स की संख्या ना के बराबर है. ऐसे में बहुत मुश्किल से इन रेडियस के खराब होने पर उन्हें रिपेयर किया जा सकता है, क्योंकि जिन टेक्निक्स पर इन रेडियो का निर्माण किया जाता था, वह अब पूरी तरह से विलुप्त होने के कगार पर है.
रेडियो से जुड़े कुछ फैक्ट
- 2 जुलाई 1896 को वैज्ञानिक मार्कोनी को रेडियो के लिए पेटेंट मिला था.
- मार्कोनी के नाम कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी से जुड़े करीब 800 पेटेंट है.
- उनके इसी आविष्कार के लिए 1909 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
भारत में रेडियो का इतिहास: भारत में रेडियो का प्रसारण 1920 के दशक में शुरू हुआ था. जब शुरुआती रेडियो स्टेशनों की स्थापना हुई थी. 1936 में ऑल इंडिया रेडियो की औपचारिक स्थापना एक मील का पत्थर है. जिससे राष्ट्रीय प्रसारक के रूप में काम करना शुरू किया था. ऑल इंडिया रेडियो ने सूचनाओं को प्रसारित करने के साथी राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने और सांस्कृतिक विरासतों को संरक्षित करने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी.
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान रेडियो के इतिहास में एक खास अध्याय जुड़ा है. जब ब्रिटिश शासन के विरोध में संचालित नेशनल कांग्रेस रेडियो स्वतंत्रता संग्राम की आवाज बना. इस गुप्त रेडियो स्टेशन ने स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित करने के लिए समाचार और संदेशों का प्रसारण किया था. आज इस डिजिटल के युग में रेडियो नई टेक्नोलॉजी के साथ सभी प्लेटफार्म पर तालमेल बैठाकर खुद को विकसित कर रहा है.
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