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कहानी पूरी फिल्मी है... 9 साल की उम्र में बस में चढ़ते समय बिछड़ा; कश्मीर से जयपुर तक भटका, 22 साल बाद परिवार से कैसे मिला बेटा? - BAREILLY NEWS

बरेली के रहने वाले परिवार से बिछड़ गया था बच्चा, फिर जवान बेटे के फैमिली से मिलने की एक सुखद कहानी... पढ़िए

22 साल बाद परिवार से मिलने के बाद भावुक हुआ छोटन.
22 साल बाद परिवार से मिलने के बाद भावुक हुआ छोटन. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 13, 2025, 3:29 PM IST

Updated : Feb 14, 2025, 11:38 AM IST

बरेली: आपने कई फिल्में देखी होंगी कि एक बेटा, बेटी या अपने परिवार से बचपन में बिछड़ जाता है. इसके बाद फिल्म की असली कहानी शुरू होती है. बिछड़ा बेटा अपने परिवार को खोजने के लिए जद्दोजहद करता रहता है और आखिर में मिल जाता है. ऐसा ही कुछ बरेली के रहने वाले परिवार के साथ हुआ.

अंधेरे में भटक गया था रास्ताः नवाबगंज कस्बे का रहने वाला छोटन जब सिर्फ 9 साल का था तभी वह अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ जम्मू-कश्मीर गया था. सभी ईंट-भट्ठे पर मजदूरी करने जा रहे थे. इसी दौरान बस में चढ़ने के दौरान छोटन अपने परिवार से बिछड़ गया था. अंधेरे में रास्ता भटकने के कारण छोटन अपने माता-पिता से दूर हो गया था. अब करीब 22 साल बाद छोटन अपने परिवार से मिल गया है.

राज मिस्त्री ने दिया सहाराः छोटन ने बताया कि परिवार से बिछड़ने के बाद उसको कोई सहारा नहीं मिला तो पेट भरने के लिए उसने छोटे-छोटे काम करने शुरू कर दिए. कभी चाय की दुकान तो कभी दूसरों के छोटे-मोटे काम करके दो वक्त की रोटी जुटाई. इस बीच उसकी मुलाकात एक राज मिस्त्री चांद मियां से हुई, जो उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के पूरनपुर इलाके का रहने वाले था. चांद मियां ने न सिर्फ उसे अपने साथ ले जाकर उसे सहारा दिया, बल्कि उसे अपना परिवार भी दिया. अपने साथ रखा, पढ़ाया-लिखाया तो नहीं, लेकिन राज मिस्त्री का काम सिखा दिया.


लाख कोशिशों के बाद भी नहीं मिलाः समीर अहमद ने बताया कि 26 मई 2003 की रात उन्हें आज भी याद है, जब उनका 9 साल का बेटा छोटन उनसे बिछड़ गया था. वे परिवार के साथ जम्मू-कश्मीर में ईंट-भट्ठे पर काम करने जा रहे थे. रात का समय था, बिजली चली गई थी और इसी दौरान छोटन उनसे अलग हो गया. उन्होंने पूरी कोशिश की, थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज कराई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला.

जयपुर में पड़ोसी ने मिलवायाः छोटन ने बताया कि उसका जीवन सामान्य चल रहा था, लेकिन उसे अपने परिवार की याद हमेशा सताती थी. फिर किस्मत का एक मोड़ आया. वह जयपुर काम करने चला गया, जहां वह अपने परिवार के साथ रहने लगा. उसके पड़ोस में एक परिवार रहता था, जो नवाबगंज का ही था. बातचीत के दौरान उन्हें अपनी कहानी सुनाई और बताया कि वह भी नवाबगंज का रहने वाला है. पड़ोसी परिवार को छोटन की कहानी सुनकर झटका लगा. उन्होंने तुरंत नवाबगंज में उसके माता-पिता से संपर्क किया और उन्हें जानकारी दी कि उनका बेटा जिंदा है और जयपुर में रह रहा है.

22 सालों से दबा दर्द एक ही पल में आंखों से बह निकलाः जैसे ही छोटन के माता-पिता को यह खबर मिली, वे तुरंत जयपुर पहुंचे. छोटन ने अपनी मां-बाप को पहचान लिया और उनसे लिपटकर जोर-जोर से रोने लगा. 22 सालों से दबा हुआ दर्द एक ही पल में आंखों से बह निकला. मां-बेटे के इस मिलन को देखकर वहां मौजूद हर कोई भावुक हो गया. छोटन ने बताया कि चांद मियां ने उसे अपने ही गांव भिखारीपुर की नसीम बेगम से शादी करवा दी. शादी के बाद उसकी जिंदगी कुछ सामान्य हुई. अब वह राज मिस्त्री का काम करता और अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जिंदगी बसर करने लगा है. शादी के नौ साल बाद छोटन के चार बेटे हैं आयान (9), अरसलान, अरमान और सुभान.

इसे भी पढ़ें-'पापा मैं जिंदगी से हार गया, अब जीना नहीं चाहता...', मेरठ में पिता को आखिरी फोनकर दवा कारोबारी का बेटा लापता

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बरेली: आपने कई फिल्में देखी होंगी कि एक बेटा, बेटी या अपने परिवार से बचपन में बिछड़ जाता है. इसके बाद फिल्म की असली कहानी शुरू होती है. बिछड़ा बेटा अपने परिवार को खोजने के लिए जद्दोजहद करता रहता है और आखिर में मिल जाता है. ऐसा ही कुछ बरेली के रहने वाले परिवार के साथ हुआ.

अंधेरे में भटक गया था रास्ताः नवाबगंज कस्बे का रहने वाला छोटन जब सिर्फ 9 साल का था तभी वह अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ जम्मू-कश्मीर गया था. सभी ईंट-भट्ठे पर मजदूरी करने जा रहे थे. इसी दौरान बस में चढ़ने के दौरान छोटन अपने परिवार से बिछड़ गया था. अंधेरे में रास्ता भटकने के कारण छोटन अपने माता-पिता से दूर हो गया था. अब करीब 22 साल बाद छोटन अपने परिवार से मिल गया है.

राज मिस्त्री ने दिया सहाराः छोटन ने बताया कि परिवार से बिछड़ने के बाद उसको कोई सहारा नहीं मिला तो पेट भरने के लिए उसने छोटे-छोटे काम करने शुरू कर दिए. कभी चाय की दुकान तो कभी दूसरों के छोटे-मोटे काम करके दो वक्त की रोटी जुटाई. इस बीच उसकी मुलाकात एक राज मिस्त्री चांद मियां से हुई, जो उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के पूरनपुर इलाके का रहने वाले था. चांद मियां ने न सिर्फ उसे अपने साथ ले जाकर उसे सहारा दिया, बल्कि उसे अपना परिवार भी दिया. अपने साथ रखा, पढ़ाया-लिखाया तो नहीं, लेकिन राज मिस्त्री का काम सिखा दिया.


लाख कोशिशों के बाद भी नहीं मिलाः समीर अहमद ने बताया कि 26 मई 2003 की रात उन्हें आज भी याद है, जब उनका 9 साल का बेटा छोटन उनसे बिछड़ गया था. वे परिवार के साथ जम्मू-कश्मीर में ईंट-भट्ठे पर काम करने जा रहे थे. रात का समय था, बिजली चली गई थी और इसी दौरान छोटन उनसे अलग हो गया. उन्होंने पूरी कोशिश की, थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज कराई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला.

जयपुर में पड़ोसी ने मिलवायाः छोटन ने बताया कि उसका जीवन सामान्य चल रहा था, लेकिन उसे अपने परिवार की याद हमेशा सताती थी. फिर किस्मत का एक मोड़ आया. वह जयपुर काम करने चला गया, जहां वह अपने परिवार के साथ रहने लगा. उसके पड़ोस में एक परिवार रहता था, जो नवाबगंज का ही था. बातचीत के दौरान उन्हें अपनी कहानी सुनाई और बताया कि वह भी नवाबगंज का रहने वाला है. पड़ोसी परिवार को छोटन की कहानी सुनकर झटका लगा. उन्होंने तुरंत नवाबगंज में उसके माता-पिता से संपर्क किया और उन्हें जानकारी दी कि उनका बेटा जिंदा है और जयपुर में रह रहा है.

22 सालों से दबा दर्द एक ही पल में आंखों से बह निकलाः जैसे ही छोटन के माता-पिता को यह खबर मिली, वे तुरंत जयपुर पहुंचे. छोटन ने अपनी मां-बाप को पहचान लिया और उनसे लिपटकर जोर-जोर से रोने लगा. 22 सालों से दबा हुआ दर्द एक ही पल में आंखों से बह निकला. मां-बेटे के इस मिलन को देखकर वहां मौजूद हर कोई भावुक हो गया. छोटन ने बताया कि चांद मियां ने उसे अपने ही गांव भिखारीपुर की नसीम बेगम से शादी करवा दी. शादी के बाद उसकी जिंदगी कुछ सामान्य हुई. अब वह राज मिस्त्री का काम करता और अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जिंदगी बसर करने लगा है. शादी के नौ साल बाद छोटन के चार बेटे हैं आयान (9), अरसलान, अरमान और सुभान.

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Last Updated : Feb 14, 2025, 11:38 AM IST
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