हैदराबाद(न्यूज़ डेस्क): उत्तर प्रदेश के जिला पंचायत चुनाव में सबसे दिलचस्प जौनपुर की मतगणना रही. तमाम मुश्किलों से घिरे पूर्वांचल के बाहुबली पूर्व सांसद धनंजय सिंह के लिए शनिवार का दिन खुशियां लेकर आया. उनकी पत्नी श्रीकला रेड्डी ने जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव बड़े अंतर से जीत लिया है. उनको 43 वोट मिले, जबकि बीजेपी से बगावत कर चुनाव लड़ी निर्दलीय प्रत्याशी नीलम सिंह 28 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहीं. इसके अलावा समाजवादी पार्टी की निशी यादव को केवल 12 वोटों से ही संतोष करना पड़ा.
अपना दल (एस) ने बिगाड़ी विपक्ष की गणित
दरअसल, श्रीकला रेड्डी की जीत की पटकथा बीजेपी में हुई आपसी कलह ने रख दी थी, रही सही कसर अपना दल (एस) ने प्रेस कॉंफ्रेंस कर श्रीकला को समर्थन देने का ऐलान कर पूरी कर दी. इसके लिए अपना दल (एस) ने प्रत्याशी सहित सभी छह जिला पंचायत सदस्यों के साथ समर्थन दे दिया. इस दौरान अपना दल ने बीजेपी पर गठबंधन धर्म न निभाने का भी आरोप लगाया है.
धनंजय की तीसरी पत्नी हैं श्रीकला
आपको बता दें कि श्रीकला बाहुबली धनंजय सिंह की तीसरी पत्नी हैं, श्रीकला के पिता तेलंगाना में विधायक रह चुके हैं. उन्होंने अमेरिका से आर्किटेक्चरल इंटीरियर डिजाइनर का कोर्स किया है. अभी हाल ही में दोनों ने शादी की है.
बाहुबली धनंजय सिंह के राजनीतिक ग्राफ में आया उतार-चढ़ाव
साल 2002 में लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर धनंजय सिंह ने चुनाव लड़ा. जिसमें वो जौनपुर की रारी विधानसभा से विधायक चुने गए. इसके बाद उनका राजनीतिक कद बढ़ता गया. साल 2004 में कांग्रेस और लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा. हालांकि इस बार उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया और वे हार गए. साल 2007 में उन्होंने पाला बदल लिया और जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए. फिर रारी से विधायक चुने गए. एक साल बाद ही उन्होंने फिर पलटी मारी और बीएसपी का दामन थाम लिया. जिससे उनका भाग्योदय भी हुआ. उन्होंने 2009 में पहली बार बीएसपी के टिकट से लोकसभा चुनाव जीता और सांसद बने. वहीं रारी के स्थान पर पर बनी मल्हनी विधानसभा से अपने पिता राजदेव सिंह को विधायक बना दिया.
हालांकि साल 2012 से धनंजय सिंह का राजनीतिक करियर का ग्राफ लगातार गिरने लगा. उनकी पत्नी जागृति सिंह पर नौकरानी की हत्या का आरोप लगा. इस मामले में धनंजय सिंह और उनकी पत्नी को जेल जाना पड़ा. इसके बाद साल 2012 में ही जागृति ने मल्हनी से विधायकी का चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गईं. 2014 लोकसभा चुनाव में किसी पार्टी से टिकट न मिलने पर धनंजय सिंह ने दोबारा अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन इसमें भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद दोबारा धनंजय सिंह न ही विधायक बन पाए और न ही सांसद. आखिरी बार उन्होंने साल 2020 उपचुनाव में पूर्व मंत्री पारसनाथ यादव के बेटे लकी यादव के खिलाफ खड़े हुए. दोनों के बीच कांटे की टक्कर में धनंजय सिंह को एक बार फिर से शिकस्त खानी पड़ी. अब उनकी पत्नी श्रीकला ने जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जीत हासिल कर एक तरह से उनको राजनीतिक संजीवनी दी है.
आखिर धनंजय को किसका संरक्षण!
जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए वार्ड संख्या 45 से जिला पंचायत सदस्य के रूप में चुनी गई श्रीकला धनंजय सिंह ने जब अपनी दावेदारी पेश की, तभी से समीकरण उनके पक्ष में जाते दिख रहे थे. एक तो बीजेपी में आपसी कलह दूसरे ये भी माना जा रहा है कि लखनऊ के चर्चित अजित सिंह हत्याकांड के आरोपी 25 हजार के इनामी बाहुबली धनंजय सिंह को योगी सरकार में किसका संरक्षण मिल रहा है.
पुलिस उसको खोजती रही, लेकिन उसने बड़े ही फिल्मी अंदाज में वकील के भेष में प्रयागराज के एमपी-एमएलए कोर्ट में सरेंडर कर दिया. 2017 के एक ऐसे मामले में उसने सरेंडर किया जिससे कि उसे जमानत मिल जाए. हुआ भी वही कोर्ट से वो जमानत पर रिहा हो गया. सबसे बड़ा सवाल ये है कि लखनऊ की पुलिस जिस हत्याकांड में उसे ढूढ़ रही थी, उस केस में आज तक पुलिस ने धनंजय सिंह को गिरफ्तार क्यों नहीं किया. जबकी सीएम योगी अपराध के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति का दम भरते हैं.
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ऐसे में आज तक ये बाहुबली इतने हाईप्रोफाइल केस में आरोपी होने के बाद भी खुली हवा में सांस ले रहा है. बाहुबली विजय मिश्रा को गिरफ्तार करने वाली, कुख्यात विकास दुबे को ढेर करने वाली और बाहुबली मुख्तार अंसारी को यूपी लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाने वाली योगी सरकार आखिर क्यों धनंजय सिंह के सामने घुटने टेकने पर मजबूर है ये एक बड़ा सवाल है. माफियाओं की अवैध संपत्तियों पर बुल्डोजर चलाने वाली योगी सरकार आखिर क्यों धनंजय सिंह के खिलाफ चुप्पी साधे है. ऐसे ही कई सवाल यूपी पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं.