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यहां कुंवारी लड़कियां करती हैं राक्षस की पूजा, शरद पूर्णिमा पर होती है ये परंपरा

बुंदेलखंड अपनी संस्कृति और अपनी पहचान के लिए जाना जाता है. आज भी बुंदेलखंड में ऐसी कई परंपराएं हैं, जो यहां जीवंत हैं. ऐसी ही एक परंपरा है, जो हर साल हर साल शरद पूर्णिमा के दिन निभाई जाती है. इस परंपरा में कुंवारी कन्याएं भामासुर (सुआटा) नामक राक्षस के पैर छूती हैं.

शरद पूर्णिमा की रात को होती है टेसू और झिंझिया की शादी.
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Published : Oct 15, 2019, 9:06 AM IST

जालौन: बुंदेलखंड अपनी संस्कृति और अपनी पहचान के लिए जाना जाता है. यहां ऐसी कई संस्कृतियां हैं, जिसके बारे में शायद ही लोगों को पता हो. आज हम बुंदेलखंड की ऐसी ही संस्कृति के बारे में आपको बताएंगे, जहां पर शरद पूर्णिमा पर अनोखी परंपरा मनाई जाती है. यहां वर्षों से कुंवारी कन्याएं एक राक्षस के पैरों को पूजती हुई चली आ रही हैं.

शरद पूर्णिमा की रात को होती है टेसू और झिंझिया की शादी.

दरअसल, यह परंपरा पूरे बुंदेलखंड में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है. वैसे ये परंपरा आज की नहीं बल्की वर्षों पुरानी है. पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन टेसू और झिंझिया का अनोखा विवाह होता है, जो परंपरा आज भी यहां जीवंत है. मान्यताओं के अनुसार जब टेसू और झिंझिया का विवाह संपन्न हो जाता है, उसके बाद से ही बुंदेलखंड क्षेत्र के हिन्दू समाज में शादियों की सहालग शुरू होती हैं.

पढ़ें: क्या है बुंदेलखंड में विजयादशमी पर पान खाने की परंपरा का महत्व?

कुवांरी कन्या छूती है राक्षस भामासुर के पैर
पौराणिक कथाओं के अनुसार भामासुर (सुआटा) नाम का एक राक्षस हुआ करता था, जो कुंवारी लड़कियों को बंधक बनाकर उनसे अपनी पूजा कराता था और अपने पैर छुवाकर उनसे जबरन शादी करता था, जिससे परेशान होकर कुंवारी कन्याओं ने भगवान कृष्ण की आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने कुंवारी कन्याओं को वरदान दिया कि इस राक्षस का अंत वह स्वयं करेंगे. बाद में भामासुर राक्षस ने राजकुमारी झिंझिया सहित कई कुंवारी कन्याओं को बंधक बना लिया और उनसे शादी करने लगा, लेकिन भगवान के वरदान स्वरूप वीर योद्धा टेसू बनकर आये और उन्होंने भामासुर नामक राक्षस का अंत कर सभी को मुक्त कराया और राजकुमारी झिंझिया से विवाह किया.

वहीं जब राक्षस का अंत हुआ तब शरद पूर्णमासी की रात थी. जब राक्षस भामसुर मरने वाला था तभी उसने भगवान की आराधना की. उसकी आराधना पर भगवान ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा, तब राक्षस ने कुंवारी कन्याओं से पैर पूजने का वरदान मांगा. इस वरदान के बाद तब से शरद पूर्णिमा के दिन सभी कुंवारी कन्याएं भामासुर (सुआटा) नामक राक्षस के पैर पूजती हैं और पैर पूजने के बाद ये सभी लड़कियां टेसू और झिंझिया की शादी कराकर टेसू जैसे वीर पति पाने की मनोकामना करती हैं.

टेसू और झिंझिया के विवाह शुरू होने का कार्यक्रम पूरे एक महीने चलता है, जिसमें कुंवारी लड़कियां छोटी सी गगरी में कई छेद कर उसमें दीप जलाती हैं और घर-घर जाकर धन मांगती हैं. बाद में शरद पूर्णिमा के दिन लड़कियों के द्वारा एक दीवार पर भामासुर (सुआटा) राक्षस की मिट्टी और गोबर से प्रतिमा बनाती हैं. इस कार्यक्रम में मोहल्ले के सभी लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं. महिलाएं झिंझिया की शादी पर मंगल गीत गाती हैं और झिंझिया को सर पर रखकर नाचती-गाती है. बाद में कुंवारी लड़कियों के द्वारा राक्षस की पूजा की जाती है.

इसी प्रकार लड़कों के द्वारा भी लकड़ी और कागज से टेसू का पुतला बनाया जाता है, जिसे वह भी घर-घर ले जाकर चंदा मांगते हैं और शरद पूर्णिमा के दिन बारात लेकर वह झिंझिया के घर पहुंचते हैं. जहां धूमधाम से टेसू-झिंझिया का विवाह सम्पन्न कराया जाता है. विवाह सम्पन्न होने के बाद लड़के पारम्परिक तरीके से राक्षस की प्रतिमा को तहस-नहस कर देते हैं. इसके बाद लड़कों के द्वारा जमकर आतिशबाजी की जाती है.

जालौन: बुंदेलखंड अपनी संस्कृति और अपनी पहचान के लिए जाना जाता है. यहां ऐसी कई संस्कृतियां हैं, जिसके बारे में शायद ही लोगों को पता हो. आज हम बुंदेलखंड की ऐसी ही संस्कृति के बारे में आपको बताएंगे, जहां पर शरद पूर्णिमा पर अनोखी परंपरा मनाई जाती है. यहां वर्षों से कुंवारी कन्याएं एक राक्षस के पैरों को पूजती हुई चली आ रही हैं.

शरद पूर्णिमा की रात को होती है टेसू और झिंझिया की शादी.

दरअसल, यह परंपरा पूरे बुंदेलखंड में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है. वैसे ये परंपरा आज की नहीं बल्की वर्षों पुरानी है. पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन टेसू और झिंझिया का अनोखा विवाह होता है, जो परंपरा आज भी यहां जीवंत है. मान्यताओं के अनुसार जब टेसू और झिंझिया का विवाह संपन्न हो जाता है, उसके बाद से ही बुंदेलखंड क्षेत्र के हिन्दू समाज में शादियों की सहालग शुरू होती हैं.

पढ़ें: क्या है बुंदेलखंड में विजयादशमी पर पान खाने की परंपरा का महत्व?

कुवांरी कन्या छूती है राक्षस भामासुर के पैर
पौराणिक कथाओं के अनुसार भामासुर (सुआटा) नाम का एक राक्षस हुआ करता था, जो कुंवारी लड़कियों को बंधक बनाकर उनसे अपनी पूजा कराता था और अपने पैर छुवाकर उनसे जबरन शादी करता था, जिससे परेशान होकर कुंवारी कन्याओं ने भगवान कृष्ण की आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने कुंवारी कन्याओं को वरदान दिया कि इस राक्षस का अंत वह स्वयं करेंगे. बाद में भामासुर राक्षस ने राजकुमारी झिंझिया सहित कई कुंवारी कन्याओं को बंधक बना लिया और उनसे शादी करने लगा, लेकिन भगवान के वरदान स्वरूप वीर योद्धा टेसू बनकर आये और उन्होंने भामासुर नामक राक्षस का अंत कर सभी को मुक्त कराया और राजकुमारी झिंझिया से विवाह किया.

वहीं जब राक्षस का अंत हुआ तब शरद पूर्णमासी की रात थी. जब राक्षस भामसुर मरने वाला था तभी उसने भगवान की आराधना की. उसकी आराधना पर भगवान ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा, तब राक्षस ने कुंवारी कन्याओं से पैर पूजने का वरदान मांगा. इस वरदान के बाद तब से शरद पूर्णिमा के दिन सभी कुंवारी कन्याएं भामासुर (सुआटा) नामक राक्षस के पैर पूजती हैं और पैर पूजने के बाद ये सभी लड़कियां टेसू और झिंझिया की शादी कराकर टेसू जैसे वीर पति पाने की मनोकामना करती हैं.

टेसू और झिंझिया के विवाह शुरू होने का कार्यक्रम पूरे एक महीने चलता है, जिसमें कुंवारी लड़कियां छोटी सी गगरी में कई छेद कर उसमें दीप जलाती हैं और घर-घर जाकर धन मांगती हैं. बाद में शरद पूर्णिमा के दिन लड़कियों के द्वारा एक दीवार पर भामासुर (सुआटा) राक्षस की मिट्टी और गोबर से प्रतिमा बनाती हैं. इस कार्यक्रम में मोहल्ले के सभी लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं. महिलाएं झिंझिया की शादी पर मंगल गीत गाती हैं और झिंझिया को सर पर रखकर नाचती-गाती है. बाद में कुंवारी लड़कियों के द्वारा राक्षस की पूजा की जाती है.

इसी प्रकार लड़कों के द्वारा भी लकड़ी और कागज से टेसू का पुतला बनाया जाता है, जिसे वह भी घर-घर ले जाकर चंदा मांगते हैं और शरद पूर्णिमा के दिन बारात लेकर वह झिंझिया के घर पहुंचते हैं. जहां धूमधाम से टेसू-झिंझिया का विवाह सम्पन्न कराया जाता है. विवाह सम्पन्न होने के बाद लड़के पारम्परिक तरीके से राक्षस की प्रतिमा को तहस-नहस कर देते हैं. इसके बाद लड़कों के द्वारा जमकर आतिशबाजी की जाती है.

Intro:बुंदेलखंड अपनी संस्कृति और अपनी पहचान के लिए जाना जाता है। यहां ऐसी कई संस्क्रतियां जिसके बारे में कई लोगों को जानकारी न हो। आज हम बुंदेलखंड की ऐसी ही संस्क्रति के बारे में आपको बतायेगे। जहां पर अश्वनी की शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) पर अनोखी परम्परा मनाई जाती है। जहां वर्षों से कुंवारी कन्याएं एक राक्षक के पैरों को पूजती चली आ रही है। यह परम्परा पूरे बुंदेलखंड में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। वैसे ये परंपरा आज की नहीं बल्की वर्षों पुरानी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन टेसू और झिन्झियां का अनोखा विवाह होता है, जो परम्परा आज भी यहां जारी है। मान्यताओं के अनुसार जब टेसू और झिझिया का विवाह संपन्न हो जाता है उसके बाद से ही बुंदेलखंड क्षेत्र में हिन्दू समाज में शादियों की सहालग शुरू होती है।


Body:पौराणिक कथाओं के अनुसार भामासुर (सुआटा) नाम का एक राक्षस हुआ करता था, जो कुंवारी लड़कियों को बंधक बनाकर उनसे अपनी पूजा कराता था अपने पैर छुलवा कर उनसे जबरन शादी करता था, जिससे परेशान होकर कुंवारी कन्याओं ने भगवान क्रष्ण की आराधना की। जिससे प्रसन्न होकर उन्होने कुंवारी कन्याओं को वरदान दिया कि इस राक्षक का अंत वह स्वयं करेगे। बाद में भामासुर राक्षस ने राजकुमारी झिझियां सहित कई कुंवारी कन्याओं को बंधक बना लिया और उनसे शादी करने लगा। लेकिन भगवान के वरदान स्वरूप वीर योद्धा टेसू बनकर आये और उन्होंने भामासुर नामक राक्षस का अंत कर सभी को मुक्त कराया और राजकुमारी झिझिया से विवाह किया। जब राक्षस का अंत हुआ तब शरद पूर्णमासी की रात थी। जब राक्षस भामसुर(सुआटा) मरने वाला था तभी उसने भगवान की आराधना की। उसकी आराधना पर भगवान ने उसे दर्शन दिये और वर मांगने को कहा तब राक्षस ने कुंवारी कन्याओं से पैर पूजने का वर मांगा। इस वर के बाद तब से शरद पूर्णिमा के दिन सभी कुंवारी कन्यायें सुआटा नामक राक्षस के पैर पूजती है और पैर पूजने के बाद ये सभी लड़कियां टेसू और झिझियां की शादी कराकर टेसू जैसे वीर पति पाने की मनोकामना करती है।

टेसू और झिझियां के विवाह शुरू होने का कार्यक्रम पूरे एक महीने चलता है जिसमे कुंवारी लड़कियां छोटी सी गगरी में कई छेद कर उसमे दीप जलाती और घर- घर जाकर धन मांगती है बाद में शरद पूर्णिमा के दिन लड़कियों के द्वारा एक दीवार पर सुआटा राक्षस की भी मिट्टी और गोबर से प्रतिमा बनाती है। इस कार्यक्रम में मुहल्ले के सभी लोग बढ-चढ कर भाग लेते है। महिलाएं झिझिया की शादी पर मंगल गीत गाती है और झिझिया को सिर पर रखकर नाचती-गाती है। बाद में कुंवारी लड़कियों के द्वारा राक्षस की पूजा की जाती है।

 इसी प्रकार लड़को के द्वारा भी लकडी और कागज़ से टेसू का पुतला बनाया जाता है, जिसे वह भी घर-घर ले जाकर चन्दा मांगते है और शरद पूर्णिमा के दिन बारात लेकर वज झिंझिया के घर पहुंचते है। जहां वादी धूमधाम से टेसू झिंझिया का विवाह सम्पन्न कराया जाता है। विवाह सम्पन्न होने के बाद लड़के पारम्परिक तरीके से राक्षस की प्रतिमा को तहस-नहस देते है। इसके बाद लड़कों द्वारा जमकर आतिशबाज़ी की जाती है।

वैसे इस तरह की अनौखी परंपरा को बुंदेलखंड में ही मनाया जाता है और इस परंपरा में कई लोग शामिल होते है। यह अनूठी परंपरा के कई लोग कायल है, क्योकि ऐसा कहीं भी देखने को नहीं मिलता कि कुंवारी लड़कियां किसी राक्षक के पैर पूजे।

बाईट-1- पूजा राठौर (पूजा करने वाली युवती)

बाईट-2- हिमानी राठौर (पूजा करने वाली युवती)

बाईट-3- हिमांशु(टेसू के बाराती)






Conclusion:
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