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आधुनिक जिम के आगे दम तोड़ रही हाथरस की मल्ल विद्या, पहलवान बोले-सरकार ध्यान दे तो बनी रहे परंपरा - UP Hindi News

उत्तर प्रदेश के हाथरस को मल्ल विद्या के कारण ही छोटी मल्लपुरी के नाम से भी जाना जाता है. आईए जानते हैं यहां के अखाड़ा चलाने वाले पहलवानों का क्या दर्द है.

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हाथरस के अखाड़े
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Published : Mar 10, 2023, 8:15 PM IST

हाथरस के अखाड़ों पर संवाददाता अतुल नारायण की खास रिपोर्ट

हाथरस: ब्रज क्षेत्र का हाथरस नगर अखाड़ों और बगीचियों का नगर रहा है. एक समय था कि यहां के अखाड़े और बगीचियां इतने गुलजार रहते थे कि ब्रज में मथुरा को बड़ी और हाथरस को छोटी मल्लपुरी कहा जाता था. आधुनिक संसाधनों की कमी और सुविधाओं के अभाव में युवा पीढ़ी अब इन बगीचियों पर पहलवानी के लिए जाने के बजाय जिमखानों का रुख कर रही है. सुविधाओं के अभाव में प्राचीन विधा मल्ल यहां दम तोड़ रही है.

अखाड़ा और बगीची के नाम से पहचाने जाने वाले हाथरस में सुविधाओं के अभाव में अखाड़े उजड़ते जा रहे हैं. अब बहुत कम अखाड़े बचे हैं, जहां लोग पहलवानी के गुर सीखते हैं. पहलवानों का मानना है कि यदि सरकार अखाड़ों पर ध्यान दें तो पहलवानी की परंपरा आगे बढ़ती रहेगी.

बरी गेट अखाड़े के संचालक पहलवान विनोद कुमार ने बताया कि अखाड़े को चलाने के लिए सारी सुविधाएं खुद से जुटानी पड़ती हैं. हम सब आपस में मिलजुल कर सुविधाएं जुटाते हैं. पहले और अब की पहलवानी में बहुत अंतर है. यहां सुविधाएं नहीं हैं, महंगाई बहुत है. क्या खाएं क्या पिएं, यह एक सवाल बन गया है. छोटे बच्चों को पहलवानी का शौक लगाया जा रहा है, ताकि ये लोग कहीं काम कर लें और गलत चीजों से दूर रहें.

पहलवान मनोज छलिया ने बताया कि वह दिल्ली में बजरंग पुनिया से ट्रेनिंग लेते हैं और यहां आकर उस्ताद जी को बताते हैं. वह बाकी सब लोगों को पहलवानी के गुर सिखाते हैं. ऐसे काम चलता है. उन्होंने बताया कि वहां सुविधाएं बहुत हैं, कई मैट हैं. सरकार ने चार-पांच कोच लगा रखे हैं.

पहलवान हरवेश बताते हैं कि पहलवानी से शरीर फिट रहता है, स्वास्थ्य सही रहता है. इस वक्त सुविधाएं थोड़ी कम हैं, इसलिए बच्चे भटक रहे हैं. लोग जिम जा रहे हैं. अखाड़ों पर कम आ रहे हैं. कारण यही है कि यहां सुविधाएं नहीं हैं. सरकार की कोई नजर इन पर नहीं है. अखाड़ों पर यदि सरकार ध्यान दे देगी तो बहुत फर्क पड़ेगा, जो बच्चे भटक रहे हैं, गलत आदतों में पड़ रहे हैं, उसमें कमी आएगी. उन्होंने बताया कि पहलवानी में अधिकांश गांव से बच्चे निकलते हैं, तो मेडल भी बढ़ेंगे. उनका कहना है कि सरकार ध्यान दे तो हम यह परंपरा आगे बढ़ाए रखें.

हनीफ पहलवान का कहना है कि सबसे पहले अखाड़ों को पटवाया जाए ताकि बारिश पड़ने पर प्रैक्टिस में रुकावट न हो और हाथरस से पहलवानी आगे बढ़ सके. उनका कहना है कि हाथरस में पहलवानी बहुत पिछड़ चुकी है. यहां के पहलवान सुविधाएं न मिलने से पिछड़ रहे हैं, तमाम अखाड़े बंद हो चुके हैं. यदि सरकार और उसके प्रतिनिधि अखाड़ों पर ध्यान देंगे तो निश्चित तौर पर पहलवानी के प्रति लोगों का रुझान बढ़ेगा.

ये भी पढ़ेंः आगरा के पुलिस थाने में युवक ने चाकू से काटा अपना गला, उड़े पुलिस कर्मियों के होश

हाथरस के अखाड़ों पर संवाददाता अतुल नारायण की खास रिपोर्ट

हाथरस: ब्रज क्षेत्र का हाथरस नगर अखाड़ों और बगीचियों का नगर रहा है. एक समय था कि यहां के अखाड़े और बगीचियां इतने गुलजार रहते थे कि ब्रज में मथुरा को बड़ी और हाथरस को छोटी मल्लपुरी कहा जाता था. आधुनिक संसाधनों की कमी और सुविधाओं के अभाव में युवा पीढ़ी अब इन बगीचियों पर पहलवानी के लिए जाने के बजाय जिमखानों का रुख कर रही है. सुविधाओं के अभाव में प्राचीन विधा मल्ल यहां दम तोड़ रही है.

अखाड़ा और बगीची के नाम से पहचाने जाने वाले हाथरस में सुविधाओं के अभाव में अखाड़े उजड़ते जा रहे हैं. अब बहुत कम अखाड़े बचे हैं, जहां लोग पहलवानी के गुर सीखते हैं. पहलवानों का मानना है कि यदि सरकार अखाड़ों पर ध्यान दें तो पहलवानी की परंपरा आगे बढ़ती रहेगी.

बरी गेट अखाड़े के संचालक पहलवान विनोद कुमार ने बताया कि अखाड़े को चलाने के लिए सारी सुविधाएं खुद से जुटानी पड़ती हैं. हम सब आपस में मिलजुल कर सुविधाएं जुटाते हैं. पहले और अब की पहलवानी में बहुत अंतर है. यहां सुविधाएं नहीं हैं, महंगाई बहुत है. क्या खाएं क्या पिएं, यह एक सवाल बन गया है. छोटे बच्चों को पहलवानी का शौक लगाया जा रहा है, ताकि ये लोग कहीं काम कर लें और गलत चीजों से दूर रहें.

पहलवान मनोज छलिया ने बताया कि वह दिल्ली में बजरंग पुनिया से ट्रेनिंग लेते हैं और यहां आकर उस्ताद जी को बताते हैं. वह बाकी सब लोगों को पहलवानी के गुर सिखाते हैं. ऐसे काम चलता है. उन्होंने बताया कि वहां सुविधाएं बहुत हैं, कई मैट हैं. सरकार ने चार-पांच कोच लगा रखे हैं.

पहलवान हरवेश बताते हैं कि पहलवानी से शरीर फिट रहता है, स्वास्थ्य सही रहता है. इस वक्त सुविधाएं थोड़ी कम हैं, इसलिए बच्चे भटक रहे हैं. लोग जिम जा रहे हैं. अखाड़ों पर कम आ रहे हैं. कारण यही है कि यहां सुविधाएं नहीं हैं. सरकार की कोई नजर इन पर नहीं है. अखाड़ों पर यदि सरकार ध्यान दे देगी तो बहुत फर्क पड़ेगा, जो बच्चे भटक रहे हैं, गलत आदतों में पड़ रहे हैं, उसमें कमी आएगी. उन्होंने बताया कि पहलवानी में अधिकांश गांव से बच्चे निकलते हैं, तो मेडल भी बढ़ेंगे. उनका कहना है कि सरकार ध्यान दे तो हम यह परंपरा आगे बढ़ाए रखें.

हनीफ पहलवान का कहना है कि सबसे पहले अखाड़ों को पटवाया जाए ताकि बारिश पड़ने पर प्रैक्टिस में रुकावट न हो और हाथरस से पहलवानी आगे बढ़ सके. उनका कहना है कि हाथरस में पहलवानी बहुत पिछड़ चुकी है. यहां के पहलवान सुविधाएं न मिलने से पिछड़ रहे हैं, तमाम अखाड़े बंद हो चुके हैं. यदि सरकार और उसके प्रतिनिधि अखाड़ों पर ध्यान देंगे तो निश्चित तौर पर पहलवानी के प्रति लोगों का रुझान बढ़ेगा.

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