हाथरस: हर बार की तरह इस बार भी गणेश पूजा महाराष्ट्र के अलावा देश के कई हिस्सों में धूमधाम से मनाने की पूरी तैयारी है. गणपति बप्पा मोरया के जयकारे अभी से सुनाई दे रहे हैं. कुछ सौ रुपये से लेकर लाखों की मूर्तियां बन और बिक रही हैं, लेकिन पर्यावरणविद हमेशा इस पर सवाल उठाते रहे हैं कि विसर्जन के बाद मूर्तियां पर्यावरण के लिए घातक हो जाती हैं.
इस बार मूर्तिकारों ने पर्यावरण का ध्यान रखकर गणेश प्रतिमाएं बनाई हैं. यूपी के हाथरस में शिल्पकारों ने पर्यावरण का विशेष ध्यान रखा है. शिल्पकारों ने मूर्ति बनाने में मिट्टी और प्लास्टर ऑफ पेरिस का इस्तेमाल किया है. हालांकि पर्यावरण विद प्लास्टर ऑफ पेरिस को भी पर्यावरण के लिए खतरनाक बताते हैं.
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प्रतिमाएं बनाने के लिए सदियों से काली और लाल मिट्टी का ही इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन अब प्राकृतिक रंगों की जगह केमिकल का इस्तेमाल किया जाने लगा और प्रतिमाएं प्लास्टर ऑफ पेरिस और वाइट सीमेंट से बनने लगीं. इसकी वजह से उत्साह और उल्लास का यह त्योहार पर्यावरण के लिए घातक हो गया.
मान्यता है कि किसी भी कार्य का शुभारंभ करने से पहले गणेशजी की पूजा की जाती है. विघ्नहर्ता गणपति बप्पा को प्रथम पूजनीय माना गया है. गण का अर्थ है कोई विशेष समुदाय या फिर विशेष समूह. ईश का अर्थ है स्वामी. सभी देवगणों के स्वामी होने के कारण ही इनको गणेश कहा जाता है.