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एक हजार साल पुराना है इस मजार का इतिहास, अंग्रेज भी यहां हुए थे नतमस्तक - special story on pir baba mazar of hardoi

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में वैसे तो तमाम ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल मौजूद हैं. यहां तमाम मजारें और मकबरे हैं, लेकिन आज ईटीवी भारत आपको एक ऐसी ऐतिहासिक मजार से रूबरू करवाने जा रहा है, जो गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है और जिसका इतिहास 100 या 200 नहीं, बल्कि एक हजार साल पुराना है. देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट...

special story on pir baba mazar of hardoi
हरदोई रेलवे स्टेशन पर स्थित मजार पर स्पेशल स्टोरी.
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Published : Sep 6, 2020, 8:07 PM IST

हरदोई: जिले में तमाम मजारें और मकबरे सैकड़ों साल पुराना इतिहास समेटे हुए हैं. इसी में एक ऐतिहासिक पीर बाबा की मजार है, जो रेलवे की पटरियों के बीच में मौजूद है. किवदंती है कि यहां रेलवे स्टेशन और पटरियां जब नहीं थी, उससे पहले की ये मजार है. रेल लाइन बनाने के लिए अंग्रेजों ने यहां मजार की जमीन के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास किया था और इसे हटाने की कोशिश भी की थी, लेकिन रात होते ही यहां बिछी रेल लाइन अपने आप ही उखड़ जाती थी. इससे निराश होकर अंग्रेजों को अपना इरादा बदलना पड़ा.

special story on pir baba mazar of hardoi
पीर बाबा की मजार पर जुटे लोग.

चौंकाने वाली होती थी सुबह
मुरादाबाद मंडल के रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म नंबर चार के आगे पटरियों के बीच में बनी पीर बाबा की मजार को लेकर किवदंती है कि यहां पहले एक बड़े व घने वृक्ष के नीच हजरत पीर शाह रहमत उल्ला आले बाबा रहते थे. ये मजार उन्हीं की है और आज लाइन पीर बाबा के नाम से प्रसिद्ध है. अंग्रेजों ने जब यहां पर रेलवे स्टेशन बनाया और रेल लाइन बिछाने का काम शुरू किया तो उन्होंने इस मजार को हटाने की रणनीति तैयार की. मजार के एरिया में जब-जब रेल लाइन बिछाई जाती वो रात्रि के समय में अपने आप उखड़ जाती और सुबह का दर्शन चौंकाने वाला होता था.

...आखिर अंग्रेजों को झुकना पड़ा
कई मर्तबा अंग्रेजों ने पटरी बिछाई और वो उखड़ गई. इससे अंग्रेज बड़े अचंभित हुए. उन्होंने अन्य कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए इस मजार को हटवाने का प्रयास किया, लेकिन उनके साथ अजीबो गरीब हादसे होने लगे. पीर बाबा उनके सपने में आकर उन्हें सचेत करने लगे. तब अंग्रेजों ने इस मजार के महत्व को समझा और मजार की जगह को छोड़ कर 4 मीटर दूर से रेल लाइन को घुमा कर निकाला. साथ ही इस प्लेटफार्म को भी मजार से पहले तक ही सीमित रखा. इन घटित हुए वाकयों के बाद स्थानीय लोग बाबा की मजार पर आकर उनकी इबादत करने लगे.

स्पेशल रिपोर्ट...

लोग अपनी समस्याओं को बाबा के सामने रखते और बाबा उन्हें दूर कर देते. तभी से ये लाइन पीर बाबा लोगों की आस्था से जुड़ गए और अब हर साल बाबा की याद में यहां उर्स और मेले का आयोजन भी वृहद स्तर पर होता है.

गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है बाबा का दरबार
लाइन पीर बाबा की ये ऐतिहासिक मजार सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों की ही नहीं, बल्कि हिन्दू व सिख आदि धर्मों के लोगों की आस्था से भी जुड़ी हुई है. यहां मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू भक्त बाबा की इबादत करने आते हैं. लाइन पीर बाबा की मजार में साफ सफाई का जिम्मा राधेश्याम नाम के व्यक्ति का है तो यहां की देख रेख मनोज गुप्ता नाम के एक व्यक्ति करते हैं. हर बृहस्पतिवार को यहां सैकड़ों श्रद्धालु बाबा के दरबार में इबादत करने आते हैं और अपनी दरख्वास्त व समस्याएं बाबा के सामने रखते हैं.

लोगों का मानना है कि बाबा सभी की समस्याओं का निवारण कर अपनी बरकत फैलाते हैं. बाबा की लोकप्रियता का अंदाजा यहां आने वाले हिन्दू व अन्य धर्मों के लोगों की भीड़ को देख कर लगाया जा सकता है. कौमी एकता की मिसाल बाबा की ये मजार सिर्फ हरदोई ही नहीं, बल्कि गैर जनपदों के लोगों की भी आस्था से जुड़ी हुई है.

प्रसिद्ध काली मंदिर के पुजारी भी देते हैं यहां अपनी सेवा
हर बृहस्पतिवार को जिले के बहुचर्चित व प्रसिद्ध ऐतिहासिक काली माता मंदिर के एक बुजुर्ग पुजारी मेवा राम शर्मा, जिनकी आयु करीब 80 साल है, वे भी यहां बाबा के दरबार में भगवा अंगवस्त्र धारण कर बैठते हैं और बाबा की इबादत कर हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम कर रहे हैं. मेवा राम करीब 40 वर्षों से लगातार मजार पर आ रहे हैं. लाइन पीर बाबा के लिए अटूट श्रद्धा को बाबा का चमत्कार कहा जाए या लोगों की आस्था, इसका जवाब देना थोड़ा मुश्किल है. मेवा राम ने भी बाबा से कोई मुराद मांगी थी, जिसका पूरा होना न के बराबर था. बाबा के रहमोकरम से मेवा राम की वो मुराद पूरी हो गयी थी, तभी से वे यहां पर लगातार 40 साल से आते हैं और बाबा की इबादत करते हैं.

अस्पतालों ने दिया जवाब, तब बाबा के दरबार में हुआ इलाज
हरदोई के कोयला व्यापारी मनोज की पत्नी जूबी गुप्ता से जब ईटीवी भारत ने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि उनकी तबियत हाल ही में इतनी बिगड़ गई थी कि उनके बचने की उम्मीद न के बराबर थी. हरदोई के साथ ही लखनऊ के बड़े अस्पतालों ने भी जूबी को हुई निमोनिया का इलाज करने से इनकार कर दिया था और उनके न बचने की बात कह कर घर भेज दिया था. जूबी और उनके परिजनों ने पीर बाबा के दरबार मे आकर अर्जी लगाई और कुछ ही दिनों में जूबी स्वस्थ्य हो गई. जूबी ने बाबा की दी हुई नई जिंदगी के लिए उनका शुक्रिया अदा किया.

ये भी पढ़ें: हरदोई: गंगा नदी के बहाव व कटान से ग्रामीण परेशान, पलायन को मजबूर

हर साल होता है उर्स का आयोजन
स्थानीय लोगों ने बताया कि हर साल यहां बाबा के नाम से एक उर्स का आयोजन होता है. वृहद स्तर पर मेले व भंडारे का आयोजन भी करवाया जाता है, जिसमें बाहरी जिलों से लोग शिरकत करने आते हैं और बाबा की इबादत कर अर्जियां लगाते हैं.

हरदोई: जिले में तमाम मजारें और मकबरे सैकड़ों साल पुराना इतिहास समेटे हुए हैं. इसी में एक ऐतिहासिक पीर बाबा की मजार है, जो रेलवे की पटरियों के बीच में मौजूद है. किवदंती है कि यहां रेलवे स्टेशन और पटरियां जब नहीं थी, उससे पहले की ये मजार है. रेल लाइन बनाने के लिए अंग्रेजों ने यहां मजार की जमीन के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास किया था और इसे हटाने की कोशिश भी की थी, लेकिन रात होते ही यहां बिछी रेल लाइन अपने आप ही उखड़ जाती थी. इससे निराश होकर अंग्रेजों को अपना इरादा बदलना पड़ा.

special story on pir baba mazar of hardoi
पीर बाबा की मजार पर जुटे लोग.

चौंकाने वाली होती थी सुबह
मुरादाबाद मंडल के रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म नंबर चार के आगे पटरियों के बीच में बनी पीर बाबा की मजार को लेकर किवदंती है कि यहां पहले एक बड़े व घने वृक्ष के नीच हजरत पीर शाह रहमत उल्ला आले बाबा रहते थे. ये मजार उन्हीं की है और आज लाइन पीर बाबा के नाम से प्रसिद्ध है. अंग्रेजों ने जब यहां पर रेलवे स्टेशन बनाया और रेल लाइन बिछाने का काम शुरू किया तो उन्होंने इस मजार को हटाने की रणनीति तैयार की. मजार के एरिया में जब-जब रेल लाइन बिछाई जाती वो रात्रि के समय में अपने आप उखड़ जाती और सुबह का दर्शन चौंकाने वाला होता था.

...आखिर अंग्रेजों को झुकना पड़ा
कई मर्तबा अंग्रेजों ने पटरी बिछाई और वो उखड़ गई. इससे अंग्रेज बड़े अचंभित हुए. उन्होंने अन्य कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए इस मजार को हटवाने का प्रयास किया, लेकिन उनके साथ अजीबो गरीब हादसे होने लगे. पीर बाबा उनके सपने में आकर उन्हें सचेत करने लगे. तब अंग्रेजों ने इस मजार के महत्व को समझा और मजार की जगह को छोड़ कर 4 मीटर दूर से रेल लाइन को घुमा कर निकाला. साथ ही इस प्लेटफार्म को भी मजार से पहले तक ही सीमित रखा. इन घटित हुए वाकयों के बाद स्थानीय लोग बाबा की मजार पर आकर उनकी इबादत करने लगे.

स्पेशल रिपोर्ट...

लोग अपनी समस्याओं को बाबा के सामने रखते और बाबा उन्हें दूर कर देते. तभी से ये लाइन पीर बाबा लोगों की आस्था से जुड़ गए और अब हर साल बाबा की याद में यहां उर्स और मेले का आयोजन भी वृहद स्तर पर होता है.

गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है बाबा का दरबार
लाइन पीर बाबा की ये ऐतिहासिक मजार सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों की ही नहीं, बल्कि हिन्दू व सिख आदि धर्मों के लोगों की आस्था से भी जुड़ी हुई है. यहां मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू भक्त बाबा की इबादत करने आते हैं. लाइन पीर बाबा की मजार में साफ सफाई का जिम्मा राधेश्याम नाम के व्यक्ति का है तो यहां की देख रेख मनोज गुप्ता नाम के एक व्यक्ति करते हैं. हर बृहस्पतिवार को यहां सैकड़ों श्रद्धालु बाबा के दरबार में इबादत करने आते हैं और अपनी दरख्वास्त व समस्याएं बाबा के सामने रखते हैं.

लोगों का मानना है कि बाबा सभी की समस्याओं का निवारण कर अपनी बरकत फैलाते हैं. बाबा की लोकप्रियता का अंदाजा यहां आने वाले हिन्दू व अन्य धर्मों के लोगों की भीड़ को देख कर लगाया जा सकता है. कौमी एकता की मिसाल बाबा की ये मजार सिर्फ हरदोई ही नहीं, बल्कि गैर जनपदों के लोगों की भी आस्था से जुड़ी हुई है.

प्रसिद्ध काली मंदिर के पुजारी भी देते हैं यहां अपनी सेवा
हर बृहस्पतिवार को जिले के बहुचर्चित व प्रसिद्ध ऐतिहासिक काली माता मंदिर के एक बुजुर्ग पुजारी मेवा राम शर्मा, जिनकी आयु करीब 80 साल है, वे भी यहां बाबा के दरबार में भगवा अंगवस्त्र धारण कर बैठते हैं और बाबा की इबादत कर हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम कर रहे हैं. मेवा राम करीब 40 वर्षों से लगातार मजार पर आ रहे हैं. लाइन पीर बाबा के लिए अटूट श्रद्धा को बाबा का चमत्कार कहा जाए या लोगों की आस्था, इसका जवाब देना थोड़ा मुश्किल है. मेवा राम ने भी बाबा से कोई मुराद मांगी थी, जिसका पूरा होना न के बराबर था. बाबा के रहमोकरम से मेवा राम की वो मुराद पूरी हो गयी थी, तभी से वे यहां पर लगातार 40 साल से आते हैं और बाबा की इबादत करते हैं.

अस्पतालों ने दिया जवाब, तब बाबा के दरबार में हुआ इलाज
हरदोई के कोयला व्यापारी मनोज की पत्नी जूबी गुप्ता से जब ईटीवी भारत ने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि उनकी तबियत हाल ही में इतनी बिगड़ गई थी कि उनके बचने की उम्मीद न के बराबर थी. हरदोई के साथ ही लखनऊ के बड़े अस्पतालों ने भी जूबी को हुई निमोनिया का इलाज करने से इनकार कर दिया था और उनके न बचने की बात कह कर घर भेज दिया था. जूबी और उनके परिजनों ने पीर बाबा के दरबार मे आकर अर्जी लगाई और कुछ ही दिनों में जूबी स्वस्थ्य हो गई. जूबी ने बाबा की दी हुई नई जिंदगी के लिए उनका शुक्रिया अदा किया.

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हर साल होता है उर्स का आयोजन
स्थानीय लोगों ने बताया कि हर साल यहां बाबा के नाम से एक उर्स का आयोजन होता है. वृहद स्तर पर मेले व भंडारे का आयोजन भी करवाया जाता है, जिसमें बाहरी जिलों से लोग शिरकत करने आते हैं और बाबा की इबादत कर अर्जियां लगाते हैं.

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