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यहां होली पर जलता है रावण, ताजिया बनाने वाले हाथ ही बनाते हैं पुतला

जिले में दीपावली की बजाए रावण दहन होली से पूर्व किया जाता है. करीब 115 वर्ष पुरानी इस परंपरा को स्थानीय लोग खास मानते हैं. इस अवसर पर नुमाइश मैदान में मेले का भी आयोजन किया जाता है. जो मुस्लिम मोहर्रम पर ताजिए का निर्माण करते हैं, वही यहां रामलीला में रावण के पुतले को भी बनाते हैं. एक रिपोर्ट...

जलता रावण
जलता रावण
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Published : Mar 4, 2021, 4:24 PM IST

Updated : Mar 4, 2021, 5:59 PM IST

हरदोई : जिले में दीपावली की बजाए रावण दहन होली से पूर्व किया जाता है. करीब 115 वर्ष पुरानी इस परंपरा को स्थानीय लोग खास मानते हैं. इस अवसर पर नुमाइश मैदान में मेले का भी आयोजन किया जाता है.

इस मेले को प्रदेशभर में लगने वाले सभी मेलों की जननी कहा जाता है. कहा जाता है कि हरदोई जिले से ही मेलों की शुरुआत हुई है. यहां होने वाली रामलीला के बाद रावण दहन भी होता है. आमतौर पर रावण दहन दीपावली से पहले दशहरे पर किया जाता है लेकिन हरदोई में पिछले 115 वर्षों से रावण दहन होली से पूर्व किया जाता है. खास बात यह है कि इस पुतले को बनाने वाले मुस्लिम वर्ग के ताजिया बनाने वाले लोग हैं. इस तरह यह आयोजन हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की एक अनूठी मिसाल भी है.

ये भी पढ़ें : प्रसूता की मौत, परिजनों ने नर्सिंग होम पर लगाया लापरवाही का आरोप

115 वर्षों पुरानी है ऐतिहासिक रावण दहन परंपरा
हरदोई जिले के नुमाइश मेला मैदान में लगने वाले मेले में रामलीला के बाद होने वाला रावण दहन अपने आप में एक अलग महत्व रखता है. यह अन्य जगहों पर होने वाली रावण दहन प्रक्रिया से बेहद अलग है. अन्य जगहों पर रावण दहन दीपावली से पूर्व दशहरे पर किया जाता है लेकिन हरदोई में इसे होली से पूर्व आयोजित किया जाता है. यहां पिछले करीब 115 वर्षों से ये प्रथा ऐसे ही चलती चली आ रही है. आज गुरूवार को भी यहां 115वें वर्ष 48 फुट लंबे विशाल रावण के पुतले को जलाकर अमनचैन और अच्छाई का संदेश दिया गया. आयोजन में हज़ारों लोगों ने शिरकत की.

मेलों की जननी है हरदोई नुमाइश मेला
हरदोई जिले में 115 वर्षों से लगने वाले एतिहासिक व धार्मिक मेले का खास महत्व है. दरअसल, इस मेले को व हरदोई को मेलों की जननी कहा जाता है. इसका कारण ये है कि नए वर्ष की शुरुआत में सबसे पहला मेला हरदोई में ही लगता है. हरदोई के बाद ही प्रदेश के अन्य जनपदों जैसे सीतापुर, लखीमपुर, टनकपुर आदि में मेले लगना शुरू होते हैं.

ये भी पढ़ें : हरदोई: उधारी को लेकर हुई बहस, दुकानदार ने युवक पर फेंका खौलता तेल


कौमी व राष्ट्रीय एकता की मिसाल है ये एतिहासिक मेला
हरदोई के मेले में होने वाले विशाल रावण दहन में जो पुतला फूंका जाता है, उसे बनाने वाले कलाकार कोई और नहीं बल्कि लखीमपुर जनपद के रहने वाले नूर आलम हैं. ये इनकी चौथी पीढ़ी है जो यहां इस मेले का हिस्सा बनी हुई है. ये वो लोग हैं जो मोहर्रम पर ताजिए का निर्माण करते हैं. यही लोग यहां आकर रामलीला में रावण के पुतले को भी बनाते हैं. ये पुतला करीब 48 फुट लंबा और 6 फुट चौड़ा होता है. वहीं, इसे बनाने से लेकर यहां होने वाली आतिशबाजी में करीब 70 हज़ार रुपये का खर्च आता है. ऐसे में साफ है कि हरदोई का ये धार्मिक व ऐतिहासिक मेला राष्ट्रीय एकता के साथ ही कौमी एकता का भी प्रतीक है.

हरदोई : जिले में दीपावली की बजाए रावण दहन होली से पूर्व किया जाता है. करीब 115 वर्ष पुरानी इस परंपरा को स्थानीय लोग खास मानते हैं. इस अवसर पर नुमाइश मैदान में मेले का भी आयोजन किया जाता है.

इस मेले को प्रदेशभर में लगने वाले सभी मेलों की जननी कहा जाता है. कहा जाता है कि हरदोई जिले से ही मेलों की शुरुआत हुई है. यहां होने वाली रामलीला के बाद रावण दहन भी होता है. आमतौर पर रावण दहन दीपावली से पहले दशहरे पर किया जाता है लेकिन हरदोई में पिछले 115 वर्षों से रावण दहन होली से पूर्व किया जाता है. खास बात यह है कि इस पुतले को बनाने वाले मुस्लिम वर्ग के ताजिया बनाने वाले लोग हैं. इस तरह यह आयोजन हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की एक अनूठी मिसाल भी है.

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115 वर्षों पुरानी है ऐतिहासिक रावण दहन परंपरा
हरदोई जिले के नुमाइश मेला मैदान में लगने वाले मेले में रामलीला के बाद होने वाला रावण दहन अपने आप में एक अलग महत्व रखता है. यह अन्य जगहों पर होने वाली रावण दहन प्रक्रिया से बेहद अलग है. अन्य जगहों पर रावण दहन दीपावली से पूर्व दशहरे पर किया जाता है लेकिन हरदोई में इसे होली से पूर्व आयोजित किया जाता है. यहां पिछले करीब 115 वर्षों से ये प्रथा ऐसे ही चलती चली आ रही है. आज गुरूवार को भी यहां 115वें वर्ष 48 फुट लंबे विशाल रावण के पुतले को जलाकर अमनचैन और अच्छाई का संदेश दिया गया. आयोजन में हज़ारों लोगों ने शिरकत की.

मेलों की जननी है हरदोई नुमाइश मेला
हरदोई जिले में 115 वर्षों से लगने वाले एतिहासिक व धार्मिक मेले का खास महत्व है. दरअसल, इस मेले को व हरदोई को मेलों की जननी कहा जाता है. इसका कारण ये है कि नए वर्ष की शुरुआत में सबसे पहला मेला हरदोई में ही लगता है. हरदोई के बाद ही प्रदेश के अन्य जनपदों जैसे सीतापुर, लखीमपुर, टनकपुर आदि में मेले लगना शुरू होते हैं.

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कौमी व राष्ट्रीय एकता की मिसाल है ये एतिहासिक मेला
हरदोई के मेले में होने वाले विशाल रावण दहन में जो पुतला फूंका जाता है, उसे बनाने वाले कलाकार कोई और नहीं बल्कि लखीमपुर जनपद के रहने वाले नूर आलम हैं. ये इनकी चौथी पीढ़ी है जो यहां इस मेले का हिस्सा बनी हुई है. ये वो लोग हैं जो मोहर्रम पर ताजिए का निर्माण करते हैं. यही लोग यहां आकर रामलीला में रावण के पुतले को भी बनाते हैं. ये पुतला करीब 48 फुट लंबा और 6 फुट चौड़ा होता है. वहीं, इसे बनाने से लेकर यहां होने वाली आतिशबाजी में करीब 70 हज़ार रुपये का खर्च आता है. ऐसे में साफ है कि हरदोई का ये धार्मिक व ऐतिहासिक मेला राष्ट्रीय एकता के साथ ही कौमी एकता का भी प्रतीक है.

Last Updated : Mar 4, 2021, 5:59 PM IST
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