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जानिए क्या है कहां से हुई थी होली की शुरुआत

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Published : Mar 8, 2020, 3:32 PM IST

उत्तर प्रदेश के हरदोई में विष्णु भक्त प्रह्लाद का घाट आज भी लोगों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है. मान्यता है कि यहां से ही होली के पावन पर्व की शुरूआत हुई.

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विष्णु भक्त प्रह्लाद के नाम पर हरोदई में बना प्रह्लाद घाट

हरदोई: जिले में वैसे तो तमाम ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल मौजूद हैं, लेकिन युगों पूर्व का इतिहास अपने में समेटे हुए विष्णु भक्त प्रह्लाद का घाट आज भी लोगों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है. इसी प्रहलाद नगरी में मौजूद प्रह्लाद घाट से ही होली के त्योहार का इतिहास जुड़ा हुआ है.

जानिए क्या है हरदोई और होली का नाता

ये है इस घाट का इतिहास

नारद पुराण के मुताबिक, इस कुंड का निर्माण हरिद्रोही के राजा हिरण्यकश्यप के द्वारा अपने पुत्र को मारने के लिए किया था. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जिसे एक प्राप्त दुशाला के माध्यम से अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था. हिरण्यकश्यप ने उसकी सहायता से प्रह्लाद को जलाकर मारने साजिश रची और इस कुंड का निर्माण कराया. मान्यता है कि इस कुंड में जब होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर जलने के लिए बैठी तो ईश्वर की कृपा से वह दुशाला हवा से उड़कर भक्त प्रह्लाद के ऊपर आ गई. जिससे होलिका जलकर राख हो गयी और प्रह्लाद जो कि भगवान विष्णु के ध्यान में मग्न थे वह बच गए. इस खुशी में लोगों ने एक दूसरे को मिठाइयां खिला कर एक दूसरे को रंग लगाया.

मान्यता है कि उसके बाद से ही होली जैसे पावन पर्व की शुरुआत हुई साथ ही होलिका दहन की प्रथा की भी शुरुआत हुई और तभी से होली के एक दिन पहले पूर्व होलिका दहन होता है और होलिका मैया व विष्णु भक्त प्रह्लाद की जयकार होती है.

आज से कुछ वर्ष पूर्व इस कुंड की स्थिति बेहद दयनीय थी तब जिलाधिकारी पुलकित खरे द्वारा इस पौराणिक स्थल की तस्वीर इस कदर बदल दी गयी कि आज ये जनपदिवासियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. अब इस कुंड का इतिहास और महत्व भी लोग यहां आकर जान सकते हैं, इसके लिए यहां बोर्ड आदि पर इसका पूरा इतिहास लिखाया गया है.

हरदोई: जिले में वैसे तो तमाम ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल मौजूद हैं, लेकिन युगों पूर्व का इतिहास अपने में समेटे हुए विष्णु भक्त प्रह्लाद का घाट आज भी लोगों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है. इसी प्रहलाद नगरी में मौजूद प्रह्लाद घाट से ही होली के त्योहार का इतिहास जुड़ा हुआ है.

जानिए क्या है हरदोई और होली का नाता

ये है इस घाट का इतिहास

नारद पुराण के मुताबिक, इस कुंड का निर्माण हरिद्रोही के राजा हिरण्यकश्यप के द्वारा अपने पुत्र को मारने के लिए किया था. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जिसे एक प्राप्त दुशाला के माध्यम से अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था. हिरण्यकश्यप ने उसकी सहायता से प्रह्लाद को जलाकर मारने साजिश रची और इस कुंड का निर्माण कराया. मान्यता है कि इस कुंड में जब होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर जलने के लिए बैठी तो ईश्वर की कृपा से वह दुशाला हवा से उड़कर भक्त प्रह्लाद के ऊपर आ गई. जिससे होलिका जलकर राख हो गयी और प्रह्लाद जो कि भगवान विष्णु के ध्यान में मग्न थे वह बच गए. इस खुशी में लोगों ने एक दूसरे को मिठाइयां खिला कर एक दूसरे को रंग लगाया.

मान्यता है कि उसके बाद से ही होली जैसे पावन पर्व की शुरुआत हुई साथ ही होलिका दहन की प्रथा की भी शुरुआत हुई और तभी से होली के एक दिन पहले पूर्व होलिका दहन होता है और होलिका मैया व विष्णु भक्त प्रह्लाद की जयकार होती है.

आज से कुछ वर्ष पूर्व इस कुंड की स्थिति बेहद दयनीय थी तब जिलाधिकारी पुलकित खरे द्वारा इस पौराणिक स्थल की तस्वीर इस कदर बदल दी गयी कि आज ये जनपदिवासियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. अब इस कुंड का इतिहास और महत्व भी लोग यहां आकर जान सकते हैं, इसके लिए यहां बोर्ड आदि पर इसका पूरा इतिहास लिखाया गया है.

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