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मां काली मंदिर का इतिहास है रोचक, जानिये क्यों भेंट करते हैं 'जीभ' - मां काली मंदिर की इतिहास

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में स्थित मां काली के मंदिर का इतिहास पुराना और रोचक है. 60 से 70 साल पुराने इस मंदिर में कुछ सालों पहले तक श्रद्धालु मां को जीभ भेंट करते थे, हालांकि ये प्रथा अब खत्म कर दी गई है.

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Oct 25, 2020, 5:46 PM IST

हरदोई: जिले के प्राचीन काली मंदिर का इतिहास बेहद चौंकाने वाला है. मान्यता के अनुसार, इच्छाओं की पूर्ति होने के बाद लोग अपनी जीभ काटकर माता को भेंट करते थे. पूर्व में एक युवक ने अपनी गर्दन काट के माता को भेंट किया, तभी से इस प्रथा को बंद कर दिया गया. हालांकि आज भी यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और माता की स्तुति कर अपने मन की मुराद माता के समक्ष रखते हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.

माता को जीभ भेंट करने का था प्रचलन
हरदोई जिले के सीतापुर रोड पर महोलिया शिवपार इलाके में जिला मुख्यालय से 2 किलोमीटर दूर स्थित मां काली मंदिर का इतिहास बेहद चौंकाने वाला है. यहां के इतिहास के अलावा मंदिर की गाथाएं भी बहुत दूर दूर तक प्रचलित हैं. मान्यता के अनुसार, माता के द्वार से कोई खाली हाथ नहीं जाता. बता दें कि आज से 10 वर्ष पूर्व तक माता के मंदिर में श्रद्धालु अपनी जीभ काट कर भेंट करते थे.

जीभ भेंट करने की प्रथा आज से 30 साल पहले शुरू हुई थी. मध्य प्रदेश के रहने वाले एक युवक ने अपनी मुराद पूरी होने के बाद माता को भेंट स्वरूप अपनी जीभ काटकर दी थी. इसके बाद से लोगों में मंदिर के प्रति आस्था और बढ़ गई. वहीं से जीभ भेंट करने का सिलसिला शुरू हो गया. जिस किसी की भी मांग पूरी होती, लोग अपनी जीभ को माता काली को भेंट कर देते थे.

लोगों का कहना है कि जीभ काटने के बाद अगले ही कुछ दिनों में उनकी जीभ पहले की भांति हो जाती थी. कथित श्रद्धालु को किसी प्रकार की कोई शारीरिक समस्या का सामना भी नहीं करना पड़ता था. मंदिर परिसर में आज भी वो स्थान मौजूद हैं, जहां लोग अपनी जीभ काटते थे और फिर माता को चढ़ाते थे.

बंद कराई गई ये प्रथा
दस वर्ष पूर्व एक भक्त ने मुराद पूरी होने पर खुद की गर्दन काट कर भेंट करने का प्रयास किया. ब्लेड से आधी गर्दन काटने पर वहां मौजूद लोगों से युवक को रोक लिया और तत्काल उसे अस्पताल में भर्ती कराया. माता की कृपा से उस युवक की जान तो बच गई, लेकिन तभी से यहां पर इस प्रथा को खत्म कर दिया गया.

जिला प्रशासन व पुलिस अमले के जिम्मेदारों ने मंदिर में जीभ आदि काट कर भेंट किए जाने पर रोक लगा दी. अब यहां मंदिर में किसी को भी इस प्रकार की श्रद्धा दिखाने की अनुमति नहीं है. भले ही ये प्रथा बंद हो गई हो, लेकिन माता की महिमा व लोगों की श्रद्धा आज भी असीम है. आज भी यहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.

मंदिर में मौजूद है माता की स्वयं भू प्रतिमा
मंदिर के पुजारी और श्रद्धालु कहते हैं कि इस ऐतिहासिक मंदिर से जुड़े तमाम तथ्यों व रहस्यों की जानकारी हुई. इस मंदिर का इतिहास आज से करीब 60 से 70 वर्ष पुराना है. यहां मौजूद मां काली की प्रतिमा स्वयं भू हैं और इसकी उत्पत्ति स्वयं ही हुई थी. यहां खुदाई के दौरान माता की प्रतिमा जमीन से निकली थी. जिसके बाद यहां के कुछ लोगों को माता ने स्वप्न में आकर मंदिर बनवाने का आदेश दिया. तभी से काली माता मंदिर की स्थापना हुई. मां के मंदिर में सिर्फ हरदोई ही नहीं, बल्कि देश के कई हिस्सों से लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

नवरात्र में बढ़ जाता है महत्व
नवरात्र के पर्व में इस मंदिर का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. आम दिनों की अपेक्षा नवरात्र में यहां अधिकाधिक संख्या में श्रद्धलुओं की भीड़ उमड़ती है. अष्टमी व नवमी के दिन श्रद्धालु मंदिर परिसर में हवन-पूजन कराने के साथ ही कन्याओं को भोज भी कराते हैं. साथ ही उन्हीं कन्याओं को दक्षिणा देकर अपने नवरात्र की पूजा को सम्पन्न करते हैं. ये सिलसिला नवरात्र में दिन रात चला करता है.

हरदोई: जिले के प्राचीन काली मंदिर का इतिहास बेहद चौंकाने वाला है. मान्यता के अनुसार, इच्छाओं की पूर्ति होने के बाद लोग अपनी जीभ काटकर माता को भेंट करते थे. पूर्व में एक युवक ने अपनी गर्दन काट के माता को भेंट किया, तभी से इस प्रथा को बंद कर दिया गया. हालांकि आज भी यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और माता की स्तुति कर अपने मन की मुराद माता के समक्ष रखते हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.

माता को जीभ भेंट करने का था प्रचलन
हरदोई जिले के सीतापुर रोड पर महोलिया शिवपार इलाके में जिला मुख्यालय से 2 किलोमीटर दूर स्थित मां काली मंदिर का इतिहास बेहद चौंकाने वाला है. यहां के इतिहास के अलावा मंदिर की गाथाएं भी बहुत दूर दूर तक प्रचलित हैं. मान्यता के अनुसार, माता के द्वार से कोई खाली हाथ नहीं जाता. बता दें कि आज से 10 वर्ष पूर्व तक माता के मंदिर में श्रद्धालु अपनी जीभ काट कर भेंट करते थे.

जीभ भेंट करने की प्रथा आज से 30 साल पहले शुरू हुई थी. मध्य प्रदेश के रहने वाले एक युवक ने अपनी मुराद पूरी होने के बाद माता को भेंट स्वरूप अपनी जीभ काटकर दी थी. इसके बाद से लोगों में मंदिर के प्रति आस्था और बढ़ गई. वहीं से जीभ भेंट करने का सिलसिला शुरू हो गया. जिस किसी की भी मांग पूरी होती, लोग अपनी जीभ को माता काली को भेंट कर देते थे.

लोगों का कहना है कि जीभ काटने के बाद अगले ही कुछ दिनों में उनकी जीभ पहले की भांति हो जाती थी. कथित श्रद्धालु को किसी प्रकार की कोई शारीरिक समस्या का सामना भी नहीं करना पड़ता था. मंदिर परिसर में आज भी वो स्थान मौजूद हैं, जहां लोग अपनी जीभ काटते थे और फिर माता को चढ़ाते थे.

बंद कराई गई ये प्रथा
दस वर्ष पूर्व एक भक्त ने मुराद पूरी होने पर खुद की गर्दन काट कर भेंट करने का प्रयास किया. ब्लेड से आधी गर्दन काटने पर वहां मौजूद लोगों से युवक को रोक लिया और तत्काल उसे अस्पताल में भर्ती कराया. माता की कृपा से उस युवक की जान तो बच गई, लेकिन तभी से यहां पर इस प्रथा को खत्म कर दिया गया.

जिला प्रशासन व पुलिस अमले के जिम्मेदारों ने मंदिर में जीभ आदि काट कर भेंट किए जाने पर रोक लगा दी. अब यहां मंदिर में किसी को भी इस प्रकार की श्रद्धा दिखाने की अनुमति नहीं है. भले ही ये प्रथा बंद हो गई हो, लेकिन माता की महिमा व लोगों की श्रद्धा आज भी असीम है. आज भी यहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.

मंदिर में मौजूद है माता की स्वयं भू प्रतिमा
मंदिर के पुजारी और श्रद्धालु कहते हैं कि इस ऐतिहासिक मंदिर से जुड़े तमाम तथ्यों व रहस्यों की जानकारी हुई. इस मंदिर का इतिहास आज से करीब 60 से 70 वर्ष पुराना है. यहां मौजूद मां काली की प्रतिमा स्वयं भू हैं और इसकी उत्पत्ति स्वयं ही हुई थी. यहां खुदाई के दौरान माता की प्रतिमा जमीन से निकली थी. जिसके बाद यहां के कुछ लोगों को माता ने स्वप्न में आकर मंदिर बनवाने का आदेश दिया. तभी से काली माता मंदिर की स्थापना हुई. मां के मंदिर में सिर्फ हरदोई ही नहीं, बल्कि देश के कई हिस्सों से लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

नवरात्र में बढ़ जाता है महत्व
नवरात्र के पर्व में इस मंदिर का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. आम दिनों की अपेक्षा नवरात्र में यहां अधिकाधिक संख्या में श्रद्धलुओं की भीड़ उमड़ती है. अष्टमी व नवमी के दिन श्रद्धालु मंदिर परिसर में हवन-पूजन कराने के साथ ही कन्याओं को भोज भी कराते हैं. साथ ही उन्हीं कन्याओं को दक्षिणा देकर अपने नवरात्र की पूजा को सम्पन्न करते हैं. ये सिलसिला नवरात्र में दिन रात चला करता है.

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