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सांपों को पालने का खतरनाक शौक, रजाई में भी साथ सोता है यह शख्स

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Published : Jul 30, 2020, 10:46 PM IST

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में आचार्य शैलेन्द्र सरस को सांपों को पालने का शौक है. इन्होंने तमाम सांपों को संरक्षण दिया है. इस युवक का प्रेम सांपों के प्रति इस कदर बढ़ गया है कि इन विषैले जीवों को भी वे अपने बच्चों की माफिक प्यार और देखरेख करते हैं.

हरदोई में सांपों का संरक्षण
हरदोई में सांपों का संरक्षण

हरदोई: जिले में मौजूद आचार्य शैलेन्द्र सरस के शौक बेहद चौंकाने वाले हैं. शैलेन्द्र कुत्ते, बिल्ली आदि पालतू जानवरों का शौक न रखकर जहरीले और खतरनाक सांपों के शौकीन हैं. हालांकि उनका मकसद सांपों को संरक्षित करने का है. सांपों के प्रति उनका प्रेम आज से लगभग 20 वर्ष पुराना है. वे ठंड के मौसम में सौ से डेढ़ सौ सांपों को पकड़कर उनका तब तक भरण-पोषण करते हैं, जब तक उनको छोड़ने के लिए उचित मौसम नहीं आ जाता और अनुकूल जगह नहीं मिल जाती है. देखते ही देखते इस युवक का प्रेम सांपों के प्रति इस कदर बढ़ गया है कि इन विषैले जीवों को भी वह अपने बच्चों की भांति प्यार और देखरेख करते हैं. इन्होंने लोगों में सांपों के संरक्षण के प्रति जागरूकता मुहिम भी छेड़ रखी है.

हरदोई में सांपों का संरक्षण.

बचपन से ही था सांपों का शौक
हरदोई जिले के बावन ब्लॉक में मौजूद मढ़िया गांव के रहने वाले पेशे से शिक्षक शैलेन्द्र इनका साहित्यिक नाम आचार्य शैलेंद्र सरस है. इनके शौक चौंकाने वाले तो हैं, लेकिन उद्देश्य सकारात्मकता से भरे हुए हैं. शैलेन्द्र से बचपन में एक सर्प की मौत हो गयी थी. इनके आस-पास रहने वाले लोगों द्वारा भी शैलेंद्र ने सर्प हत्या होते हुए देखी थी, तभी से इन्होंने ठान लिया कि वह सांपों को पालेंगे और उनका भरण पोषण करेंगे. जिससे कि वह सांपों को और उनकी अनेक प्रजातियों को विलुप्त होने से बचा सकें और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकें. आज 20 वर्षों से अधिक समय से शैलेन्द्र हजारों सांपों को संरक्षित कर उनकी जान बचा चुके हैं. यहां तक कि शैलेन्द्र ने मढ़िया गांव में मौजूद अपने पैतृक घर और जमीन को भी इसी प्रकार का बना दिया है, जहां सांप आसानी से निवास कर सुरक्षित रह सकें. इनकी 2 एकड़ की जमीन में कितने सांप आज भी रह रहे हैं, इसका अंदाजा शायद शैलेन्द्र को भी नहीं है. शैलेन्द्र के अंदर इन सर्पों के प्रति एक पिता की भावना जागृत हुई, उसी प्रकार अब सांप भी इनसे प्रेम करने लगे हैं और इनके पास से जाना नहीं चाहते हैं.

संरक्षित किए गए सांपों के आंकड़े की अगर बात की जाए तो शायद शैलेन्द्र को भी यह जानकारी नहीं है कि वे अभी तक कितने सर्पों को जीवनदान दे चुके हैं. हालांकि उन्होंने इस आंकड़े को हजारों में जाहिर किया. मौजूदा स्थिति में भी उनके पास 8 से 10 बड़े और कुछ छोटे सर्पों के बच्चे मौजूद हैं, जिन्हें वह सही समय आने पर उचित और अनुकूल स्थान पर छोड़ देंगे. अब शैलेन्द्र सांपों को संरक्षित करने के साथ ही उनकी प्रजातियों और उनसे जुड़ी अन्य जानकारियों में पारंगत भी हो गए हैं. यहां तक कि सांप के काटने पर लोगों को क्या प्राथमिक उपचार करने चाहिए, इसकी भी उन्हें भरपूर जानकारी है.

सांपों के साथ ही सोते हैं
शैलेन्द्र का सांपों के प्रति लगाव कुछ इस कदर है कि वे इन्हें बिल्कुल वैसे ही लाड और प्यार देते हैं, जैसे- एक पिता अपने पुत्र को देता है. शैलेन्द्र जब सोते हैं तब भी इन सांपों के करीब ही रहते हैं. यहां तक ठंड के मौसम में शैलेन्द्र इन्हें अपनी रजाई के अंदर सुला लेते हैं. अचंभित करने वाली बात तो ये है कि ये सांप जो बिना कुछ समझे झट से किसी के नजदीक आने पर उसे काट लेते हैं, ये शैलेन्द्र से इतनी जल्दी घुल-मिल जाते हैं कि उनको हानि न पहुंचाकर उन्हें अपना मान लेते हैं.

एक साथ 100-150 सांपों को दे सकते हैं संरक्षण
शैलेन्द्र का मकसद सांपों की जान बचाना और इनको संरक्षित करना है. इसी को लेकर वह कई वर्षों से अपना जीवन समर्पित कर एक संकल्प ले चुके हैं. उन्होंने जानकारी दी कि ठंड के मौसम में सांप सुस्त रवैये के हो जाते हैं, जिस कारण से वे भाग या छिप नहीं पाते. इसी का फायदा उठाकर लोग बेरहमी से उनकी हत्या कर देते हैं. उन्होंने कहा कि ठंड के मौसम वे अधिक से अधिक सर्पों को अपने पास लाकर रखने का प्रयास करते हैं. शैलेन्द्र ने बताया कि ठंड में उनके पास सौ से डेढ़ सौ सांप एकत्र हो जाते हैं. ठंड बीतते ही करीब डेढ़ माह बाद बसंत पंचमी के दिन वे इन सर्पों को एक-एक करके उचित स्थान पर छोड़ देते हैं. शैलेन्द्र इन सर्पों के खाने-पीने का भी खास ख्याल रखते हैं. उन्होंने बताया की एक सांप अगर 100-150 ग्राम मीट खा लेता है तो अगले एक हफ्ते तक उसे कुछ भी खाने की जरूरत नहीं होती. शैलेन्द्र ने कहा कि वह बाजार से खरीदकर भी इनके भोजन का इंतजाम करते हैं. यहां के ग्रामीण भी अब इतने जागरूक हो चुके हैं और शैलेन्द्र के ऊपर सभी को इतना भरोसा है कि कोई भी ग्रामीण अब सांपों से डरता नहीं है. शैलेन्द्र ने बताया कि वे अपने गांव का ख्याल रखते हैं और सर्पों से ग्रामीणों की सुरक्षा को अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी भी समझते हैं.

जागरूकता का प्रसार कर सिखाते हैं प्राथमिक उपचार के तरीके
शैलेन्द्र ने लोगों को सांपों से डरने और इन्हें मारने के बजाय इन्हें सुरक्षित ढंग से भगाने और इन्हें पकड़ने के तरीके सिखाए. शैलेन्द्र द्वारा ग्रामीणों में इस प्रकार की जागरूकता का प्रसार करबे के बाद अब मढ़िया गांव के लोग सांपों को मारते नहीं हैं, बल्कि सांप मिलने पर शैलेन्द्र को सूचना देते हैं. ईटीवी के माध्यम से भी उन्होंने लोगों से सर्पों का संरक्षण किये जाने की अपील की और अपना मकसद लोगों को बताया.

क्या कहते हैं अधिकारी ?
वन और वन्य जीव संरक्षण विभाग के उप जिला वन अधिकारी आरपी पाठक ने शैलेन्द्र के अनुभव की सराहना की और यदा कदा सांप आदि निकलने पर उनकी सहायता लिए जाने की बात भी कही. उन्होंने कहा कि आधिकारिक रूप से सांपों को पालने और रखने की अनुमति नहीं होती. शैलेन्द्र को वन विभाग के जिम्मेदारों द्वारा इस बात के लिए सचेत भी किया जा चुका है. हालांकि शैलेन्द्र का मकसद भी सांपों को पालना नहीं, बल्कि उन्हें संरक्षित करने का है. वन विभाग के जिम्मेदारों ने तो शैलेन्द्र को इस कार्य को न किए जाने के लिए सचेत किया था, लेकिन शैलेन्द्र का लगाव सांपों से कुछ इस कदर है कि वे अपने जीवन को इनके बिना अधूरा मानते हैं. हालांकि अब सैकड़ों और हजारों की संख्या में तो नहीं, लेकिन 8 से 10 सांप आपको इनके घर में एक सदस्य की भांति घूमते टहलते मिल ही जाएंगे.

हरदोई: जिले में मौजूद आचार्य शैलेन्द्र सरस के शौक बेहद चौंकाने वाले हैं. शैलेन्द्र कुत्ते, बिल्ली आदि पालतू जानवरों का शौक न रखकर जहरीले और खतरनाक सांपों के शौकीन हैं. हालांकि उनका मकसद सांपों को संरक्षित करने का है. सांपों के प्रति उनका प्रेम आज से लगभग 20 वर्ष पुराना है. वे ठंड के मौसम में सौ से डेढ़ सौ सांपों को पकड़कर उनका तब तक भरण-पोषण करते हैं, जब तक उनको छोड़ने के लिए उचित मौसम नहीं आ जाता और अनुकूल जगह नहीं मिल जाती है. देखते ही देखते इस युवक का प्रेम सांपों के प्रति इस कदर बढ़ गया है कि इन विषैले जीवों को भी वह अपने बच्चों की भांति प्यार और देखरेख करते हैं. इन्होंने लोगों में सांपों के संरक्षण के प्रति जागरूकता मुहिम भी छेड़ रखी है.

हरदोई में सांपों का संरक्षण.

बचपन से ही था सांपों का शौक
हरदोई जिले के बावन ब्लॉक में मौजूद मढ़िया गांव के रहने वाले पेशे से शिक्षक शैलेन्द्र इनका साहित्यिक नाम आचार्य शैलेंद्र सरस है. इनके शौक चौंकाने वाले तो हैं, लेकिन उद्देश्य सकारात्मकता से भरे हुए हैं. शैलेन्द्र से बचपन में एक सर्प की मौत हो गयी थी. इनके आस-पास रहने वाले लोगों द्वारा भी शैलेंद्र ने सर्प हत्या होते हुए देखी थी, तभी से इन्होंने ठान लिया कि वह सांपों को पालेंगे और उनका भरण पोषण करेंगे. जिससे कि वह सांपों को और उनकी अनेक प्रजातियों को विलुप्त होने से बचा सकें और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकें. आज 20 वर्षों से अधिक समय से शैलेन्द्र हजारों सांपों को संरक्षित कर उनकी जान बचा चुके हैं. यहां तक कि शैलेन्द्र ने मढ़िया गांव में मौजूद अपने पैतृक घर और जमीन को भी इसी प्रकार का बना दिया है, जहां सांप आसानी से निवास कर सुरक्षित रह सकें. इनकी 2 एकड़ की जमीन में कितने सांप आज भी रह रहे हैं, इसका अंदाजा शायद शैलेन्द्र को भी नहीं है. शैलेन्द्र के अंदर इन सर्पों के प्रति एक पिता की भावना जागृत हुई, उसी प्रकार अब सांप भी इनसे प्रेम करने लगे हैं और इनके पास से जाना नहीं चाहते हैं.

संरक्षित किए गए सांपों के आंकड़े की अगर बात की जाए तो शायद शैलेन्द्र को भी यह जानकारी नहीं है कि वे अभी तक कितने सर्पों को जीवनदान दे चुके हैं. हालांकि उन्होंने इस आंकड़े को हजारों में जाहिर किया. मौजूदा स्थिति में भी उनके पास 8 से 10 बड़े और कुछ छोटे सर्पों के बच्चे मौजूद हैं, जिन्हें वह सही समय आने पर उचित और अनुकूल स्थान पर छोड़ देंगे. अब शैलेन्द्र सांपों को संरक्षित करने के साथ ही उनकी प्रजातियों और उनसे जुड़ी अन्य जानकारियों में पारंगत भी हो गए हैं. यहां तक कि सांप के काटने पर लोगों को क्या प्राथमिक उपचार करने चाहिए, इसकी भी उन्हें भरपूर जानकारी है.

सांपों के साथ ही सोते हैं
शैलेन्द्र का सांपों के प्रति लगाव कुछ इस कदर है कि वे इन्हें बिल्कुल वैसे ही लाड और प्यार देते हैं, जैसे- एक पिता अपने पुत्र को देता है. शैलेन्द्र जब सोते हैं तब भी इन सांपों के करीब ही रहते हैं. यहां तक ठंड के मौसम में शैलेन्द्र इन्हें अपनी रजाई के अंदर सुला लेते हैं. अचंभित करने वाली बात तो ये है कि ये सांप जो बिना कुछ समझे झट से किसी के नजदीक आने पर उसे काट लेते हैं, ये शैलेन्द्र से इतनी जल्दी घुल-मिल जाते हैं कि उनको हानि न पहुंचाकर उन्हें अपना मान लेते हैं.

एक साथ 100-150 सांपों को दे सकते हैं संरक्षण
शैलेन्द्र का मकसद सांपों की जान बचाना और इनको संरक्षित करना है. इसी को लेकर वह कई वर्षों से अपना जीवन समर्पित कर एक संकल्प ले चुके हैं. उन्होंने जानकारी दी कि ठंड के मौसम में सांप सुस्त रवैये के हो जाते हैं, जिस कारण से वे भाग या छिप नहीं पाते. इसी का फायदा उठाकर लोग बेरहमी से उनकी हत्या कर देते हैं. उन्होंने कहा कि ठंड के मौसम वे अधिक से अधिक सर्पों को अपने पास लाकर रखने का प्रयास करते हैं. शैलेन्द्र ने बताया कि ठंड में उनके पास सौ से डेढ़ सौ सांप एकत्र हो जाते हैं. ठंड बीतते ही करीब डेढ़ माह बाद बसंत पंचमी के दिन वे इन सर्पों को एक-एक करके उचित स्थान पर छोड़ देते हैं. शैलेन्द्र इन सर्पों के खाने-पीने का भी खास ख्याल रखते हैं. उन्होंने बताया की एक सांप अगर 100-150 ग्राम मीट खा लेता है तो अगले एक हफ्ते तक उसे कुछ भी खाने की जरूरत नहीं होती. शैलेन्द्र ने कहा कि वह बाजार से खरीदकर भी इनके भोजन का इंतजाम करते हैं. यहां के ग्रामीण भी अब इतने जागरूक हो चुके हैं और शैलेन्द्र के ऊपर सभी को इतना भरोसा है कि कोई भी ग्रामीण अब सांपों से डरता नहीं है. शैलेन्द्र ने बताया कि वे अपने गांव का ख्याल रखते हैं और सर्पों से ग्रामीणों की सुरक्षा को अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी भी समझते हैं.

जागरूकता का प्रसार कर सिखाते हैं प्राथमिक उपचार के तरीके
शैलेन्द्र ने लोगों को सांपों से डरने और इन्हें मारने के बजाय इन्हें सुरक्षित ढंग से भगाने और इन्हें पकड़ने के तरीके सिखाए. शैलेन्द्र द्वारा ग्रामीणों में इस प्रकार की जागरूकता का प्रसार करबे के बाद अब मढ़िया गांव के लोग सांपों को मारते नहीं हैं, बल्कि सांप मिलने पर शैलेन्द्र को सूचना देते हैं. ईटीवी के माध्यम से भी उन्होंने लोगों से सर्पों का संरक्षण किये जाने की अपील की और अपना मकसद लोगों को बताया.

क्या कहते हैं अधिकारी ?
वन और वन्य जीव संरक्षण विभाग के उप जिला वन अधिकारी आरपी पाठक ने शैलेन्द्र के अनुभव की सराहना की और यदा कदा सांप आदि निकलने पर उनकी सहायता लिए जाने की बात भी कही. उन्होंने कहा कि आधिकारिक रूप से सांपों को पालने और रखने की अनुमति नहीं होती. शैलेन्द्र को वन विभाग के जिम्मेदारों द्वारा इस बात के लिए सचेत भी किया जा चुका है. हालांकि शैलेन्द्र का मकसद भी सांपों को पालना नहीं, बल्कि उन्हें संरक्षित करने का है. वन विभाग के जिम्मेदारों ने तो शैलेन्द्र को इस कार्य को न किए जाने के लिए सचेत किया था, लेकिन शैलेन्द्र का लगाव सांपों से कुछ इस कदर है कि वे अपने जीवन को इनके बिना अधूरा मानते हैं. हालांकि अब सैकड़ों और हजारों की संख्या में तो नहीं, लेकिन 8 से 10 सांप आपको इनके घर में एक सदस्य की भांति घूमते टहलते मिल ही जाएंगे.

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