गोरखपुरः पूरे विश्व में 22 मार्च के दिन को 'विश्व जल दिवस' के रूप में मनाया जाता है. इस दिन जल संरक्षण और उसकी शुद्धता पर चर्चा भी खूब होती है. वहीं, पूर्वांचल के गोरखपुर और बस्ती मंडल में भूगर्भ जल में अत्यधिक दोहन से आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा बढ़ रही है.
मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सिविल और एनवायरमेंट विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. गोविंद पांडेय के अनुसार, खर्च के अनुपात में 10% भी भूगर्भ जल रिचार्ज नहीं किया जाता, जिसका नतीजा है कि जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है. वहीं, जल के उपयोग से धरती के नीचे जैसे-जैसे पानी की सतह खाली होती जा रही है. जिसमें हवा भरती रहती है. इससे हवा का ऑक्सीजन, आर्सेनो पाइराइट को पीटीसाइट में बदल देता है. पीटीसाइट बनने से जल में आर्सेनिक घुलने लगता है. यही वजह है कि कुछ वर्षों में गोरखपुर क्षेत्र के पानी में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ती ही जा रही है. जो सेहत के लिए काफी खतरनाक है. प्रोफेसर पांडेय ने जल के बचाव और संरक्षण के तरीकों को भी बताया है, जिसमें वर्षा जल संचयन से लेकर घरेलू उपयोग के जल के तरीके भी शामिल हैं.
प्रोफेसर पांडेय कहते हैं कि जल की बर्बादी की एक नहीं कई वजह है. यह गलती हर कोई अपने-अपने तरीके से कर रहा है. औद्योगिक संस्थानों और व्यवसायिक प्रतिष्ठान में तो इसे लेकर लापरवाही बड़े स्तर पर बरती जाती है. घरों और सार्वजनिक स्थानों पर भी इसे लेकर ध्यान नहीं दिया जाता. कृषि क्षेत्र में भी जल का दोहन हो रहा है. जहां पर स्प्रिंकलर या ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई की जा सकती है, वहां रेग्युलर सिंचाई की जाती है. शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 135 लीटर की आपूर्ति का मानक है. ग्रामीण क्षेत्र में यह 70 लीटर पर आधारित है. जिसमें पाया गया है कि 15 से 20% जल लोगों द्वारा बर्बाद किया जाता है.
गोरखपुर में भूगर्भ जल को लेकर उपलब्ध अंतिम आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2021 में कैंपियरगंज ब्लाक का जलस्तर सबसे अच्छा 2.85 मीटर पाया गया था. इसी प्रकार बांसगांव में 4.09 मीटर, बेलघाट में 6.25 मीटर, ब्रह्मपुर में 5.60 मीटर, खजनी में 5.14 मीटर, खोराबार में 5.68 मीटर, सहजनवा में 6.56 मीटर का जल स्तर रहा. अन्य ब्लॉकों में भी ऐसे ही उतार-चढ़ाव देखने को मिले. बारिश के बाद इन आंकड़ों में बदलाव भी आया है. जो संतोषजनक कहा जा रहा है. लेकिन, जिस तरीके से पानी की बर्बादी हो रही है, उसके लिए निरंतर प्रक्रिया को अपनाया जाना महत्वपूर्ण बताया जा रहा है.
कहा जा रहा है कि 70% अगर स्टेज ऑफ डेवलपमेंट हो तो चिंता की बात नहीं है. भूगर्भ जल विभाग की ओर से स्टेज ऑफ डेवलपमेंट निकालकर यह अध्ययन किया जाता है. कुल भूजल रिचार्ज के सापेक्ष सभी माध्यमों से जल के दोहन का औसत ही स्टेज आफ डेवलपमेंट होता है. 70% तक मिलने पर स्थिति को सामान्य माना जाता है. इसके ऊपर जाने पर स्थिति चिंताजनक और थोड़ा और ऊपर जाने पर गंभीर हो जाती है. गोरखपुर में यह आंकड़ा मानसून के बाद तो सामान्य स्थिति से भी नीचे है. यही वजह है कि यह चिंता का कारण है. आने वाले समय में जहां लोगों को पेयजल और सिंचाई के लिए भी संकट होगा. वहीं, इसका गिरता जलस्तर जल की शुद्धता पर भी असर डाल रहा है. जिससे फ्लोराइड और आर्सेनिक की मात्रा उसमें बढ़ रही है.
प्रोफेसर पांडेय ने कहा कि वाहन को धोने के लिए पाइप की जगह मग का इस्तेमाल करें. घरों में पतले धार की टोटी लगाएं. बाथरूम और रसोई के इस्तेमाल जल का ही बाग आदि में उपयोग करें. सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों में वर्षा जल संचयन के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाए. यही नहीं उन्होंने पेड़ पौधों को लगाए जाने पर भी जोर देने की बात कही. ताकि भूमिगत जल का शोधन और वर्षा जल संचयन का यह आधार बने.
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