गोरखपुर: देश की आन-बान और शान का प्रतीक 'तिरंगा' आज के दिन ही भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना. 22 जुलाई 1947 तिरंगे को संविधान सभा का द्वारा अपनाया गया, हालांकि इसका इतिहास बड़ा रोचक है. आज इसी तिरंगे का दिन है, जिसके स्वरूप को गढ़ने की कोशिश उन्नीसवी सदी में शुरू हुई. इसे मान्य स्वरूप हासिल करने में 40 वर्ष से ज्यादा का समय लग गया.
राष्ट्रीय ध्वज स्वतंत्रता की अभियक्ति का प्रतीक है. साल 1904 में विवेकानंद जी की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने पहली बार एक ध्वज बनाया. यह ध्वज लाल और पीले रंग से बना था. पहली बार तीन रंग वाला ध्वज 1906 में बंगाल के बटवारे के विरोध में निकाले गए जुलूस में शचीन्द्र कुमार बोस लाए.
इस ध्वज में सबसे ऊपर केसरिया, बीच मे पीला और नीचे हरा रंग था. केसरिया रंग पर आठ अधखिले कमल के फूल थे. नीचे हरे रंग पर सूर्य और चंद्रमा बना हुआ था. बीच में पीले रंग में हिंदी में वंदे मातरम् लिखा हुआ था. इसी प्रकार 1908 में भीकाजी काम ने जर्मनी में तिरंगा लहराया था. आज के दिन को हर भारतीय गौरवशाली दिन मानता है और इस पर एक राष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित करने की बात करता है.
मौजूदा तिरंगे के स्वरूप की बात करें तो 1916 में पिंगली वेंकैया, एसबी बोमान और उमर सोमानी ने मिलकर 'नेशनल फ्लैग मिशन' का गठन किया. पिंगली वेंकैया ने पहले लाल और हरे रंग की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र वाला ध्वज बनाया. इसके बाद आखिरी में तिरंगा ध्वज लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया, जिसे 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने भी स्वीकार कर लिया. अब यह तिरंगा हर भरतीय का गौरव है.