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गोरखपुर: लोक वाद्ययंत्रों की धुनों से सजी जनजातीय लोकोत्सव की शाम

यूपी के गोरखपुर में संस्कृति और कला मंत्रालय की ओर से 'जनजातीय लोकोत्सव' कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों के साथ प्रस्तुति की गई.

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विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों की धुनों पर झूमें दर्शक.
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Published : Dec 26, 2019, 12:06 AM IST

गोरखपुर: जिले में विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों को लेकर संस्कृति और कला मंत्रालय की ओर से 'जनजातीय लोकोत्सव' कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस दौरान विलुप्तता की कगार पर आ चुके वाद्य यंत्रों सिंघा, नगाड़ा, मृदंग, हुड़का, ढोलक, कसावर, झाल और उपंग के साथ प्रस्तुति पेश की गई.

विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों की धुनों पर झूमे दर्शक.

कार्यक्रम में संस्कृति और कला मंत्रालय के साथ ललितांजली ने संयुक्त प्रस्तुति दी. मंच पर जब भोजपुरी गीत में प्रयोग होने वाले दुर्लभ वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति हुई. तो उनसे निकलने वाली धुनों ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया. आधुनिक संगीत में यह वाद्य यंत्र विलुप्त हो रहे हैं. मौजूदा दौर को इन वाद्य यंत्रों से परिचित कराने के लिए सरकार की ओर से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

कार्यक्रम में सामूहिक वादन के साथ भोजपुरी गीत को पहचान देने वाले गायकों को हरि प्रसाद सिंह, श्याम सिंह और स्वतंत्र सिंह ने अपने स्वर से सम्मान दिया. तो वहीं, मंच पर कलाकारों ने इनरसनी, कहरवा धोबिया नृत्य की प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया. आयोजन में सबसे खास पवईया नृत्य रहा जो हिन्दू घरों में बच्चे के पैदा होने पर मुस्लिम कलाकारों की ओर से प्रस्तुत किया जाता था.

यह भी पढ़ें: राजनीति के पटल पर आज भी जिंदा हैं अटल

कार्यक्रम में आजमगढ़ से आए कलाकार उमेश कनौजिया और उनके साथियों ने अपनी पारंपरिक धोबिया नृत्य से दर्शकों की खूब तालियां बटोरी. वहीं, दर्शकों ने फरूवाही नृत्य का भी खूब आनंद लिया. आज की युवा पीढ़ी पूरी तरह से इस संगीत और वाद्य यंत्रों से अपरिचित होती जा रही है, जबकि इन्हीं वाद्य यंत्रों और दोनों के सहारे हमारे गीत संगीत का इतिहास पनपा है.

गोरखपुर: जिले में विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों को लेकर संस्कृति और कला मंत्रालय की ओर से 'जनजातीय लोकोत्सव' कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस दौरान विलुप्तता की कगार पर आ चुके वाद्य यंत्रों सिंघा, नगाड़ा, मृदंग, हुड़का, ढोलक, कसावर, झाल और उपंग के साथ प्रस्तुति पेश की गई.

विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों की धुनों पर झूमे दर्शक.

कार्यक्रम में संस्कृति और कला मंत्रालय के साथ ललितांजली ने संयुक्त प्रस्तुति दी. मंच पर जब भोजपुरी गीत में प्रयोग होने वाले दुर्लभ वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति हुई. तो उनसे निकलने वाली धुनों ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया. आधुनिक संगीत में यह वाद्य यंत्र विलुप्त हो रहे हैं. मौजूदा दौर को इन वाद्य यंत्रों से परिचित कराने के लिए सरकार की ओर से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

कार्यक्रम में सामूहिक वादन के साथ भोजपुरी गीत को पहचान देने वाले गायकों को हरि प्रसाद सिंह, श्याम सिंह और स्वतंत्र सिंह ने अपने स्वर से सम्मान दिया. तो वहीं, मंच पर कलाकारों ने इनरसनी, कहरवा धोबिया नृत्य की प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया. आयोजन में सबसे खास पवईया नृत्य रहा जो हिन्दू घरों में बच्चे के पैदा होने पर मुस्लिम कलाकारों की ओर से प्रस्तुत किया जाता था.

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कार्यक्रम में आजमगढ़ से आए कलाकार उमेश कनौजिया और उनके साथियों ने अपनी पारंपरिक धोबिया नृत्य से दर्शकों की खूब तालियां बटोरी. वहीं, दर्शकों ने फरूवाही नृत्य का भी खूब आनंद लिया. आज की युवा पीढ़ी पूरी तरह से इस संगीत और वाद्य यंत्रों से अपरिचित होती जा रही है, जबकि इन्हीं वाद्य यंत्रों और दोनों के सहारे हमारे गीत संगीत का इतिहास पनपा है.

Intro:ओपनिंग एवं क्लोजिंग पीटीसी...यह खबर स्पेशल कटेगरी की है।

गोरखपुर। लोक वाद्य यंत्रों और लोक संगीत से बुधवार को गोरखपुर की शाम गुलजार हो गई। भारत सरकार के संस्कृति और कला मंत्रालय के साथ ललितांजली गोरखपुर की संयुक्त प्रस्तुति में मंच पर जब भोजपुरी गीत-संगीत में प्रयोग होने वाले दुर्लभ वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति हुई तो उनसे निकलने वाली धुनों ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। पारंपरिक लोक नृत्य के साथ ही लोक वाद्य यंत्रों की प्रस्तुतियां खासकर युवाओं को आश्चर्यचकित करती दिखीं। मंच पर जो भी कलाकार अपने वाद्य यंत्रों के साथ नजर आए वह सभी दूरदर्शन और रेडियो के मझे हुए कलाकार हैं। लेकिन आधुनिक संगीत और वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति में वह विलुप्त हो रहे हैं। इसलिए उन्हें और उनके वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति से मौजूदा दौर को परिचित कराने का भारत सरकार ने प्रयास किया है।

नोट--कम्प्लीट पैकेज, वॉइस ओवर अटैच है।..


Body:इस पूरे आयोजन को 'जनजातीय लोकोत्सव' का नाम दिया गया था। जिसमें भोजपुरी संगीत से लगभग विलुप्त हो चुके वाद्ययंत्र सिंघा, नगाड़ा, मृदंग, हुड़का, ढोलक, कसावर, झाल,उपंग के साथ जो प्रस्तुति हुई उसे दर्शकों का खूब आकर्षण मिला। इस कार्यक्रम में सामूहिक वादन के साथ भोजपुरी गीत को पहचान देने वाले हैं गायकों को भी हरि प्रसाद सिंह श्याम सिंह और स्वतंत्र सिंह ने अपने स्वर से सम्मान दिया तो मंच पर कलाकारों ने इनरसनी, कहरवा धोबिया नृत्य की प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया। इस पूरे आयोजन में सबसे खास पवईया नृत्य रहा जो हिन्दू घरों में बच्चे के पैदा होने पर मुस्लिम कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया जाता था। नगाड़े पर थाप प्रीतम 70 सालों से दे रहें और आज भी उनमें जवानी की ही रवानी बह रही है।

बाइट--हरि प्रसाद सिंह, गीतकार एवं कार्यक्रम के आयोजक
बाइट-प्रीतम, मशहूर नगाड़ा वादक


Conclusion:इस कार्यक्रम में आजमगढ़ से आए कलाकार उमेश कनौजिया और उनके साथियों ने अपनी पारंपरिक धोबिया नृत्य से दर्शकों की खूब तालियां बटोरी वहीं दर्शकों ने फरूवाही नृत्य का भी खूब आनंद लिया। विलुप्त हो रही संगीत और वाद्ययंत्रों की प्रस्तुति का यह मंच मौजूदा दौर में लोगों की प्रेरणा का भी माध्यम बना। जिनसे मौजूदा समाज और युवा पीढ़ी पूरी तरह से अपरिचित होती जा रही है। जबकि इन्हीं वाद्य यंत्रों और दोनों के सहारे हमारे गीत संगीत का इतिहास पनपा है।

क्लोजिंग पीटीसी...
मुकेश पाण्डेय
Etv भारत, गोरखपुर
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