गोरखपुर: जिले में विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों को लेकर संस्कृति और कला मंत्रालय की ओर से 'जनजातीय लोकोत्सव' कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस दौरान विलुप्तता की कगार पर आ चुके वाद्य यंत्रों सिंघा, नगाड़ा, मृदंग, हुड़का, ढोलक, कसावर, झाल और उपंग के साथ प्रस्तुति पेश की गई.
कार्यक्रम में संस्कृति और कला मंत्रालय के साथ ललितांजली ने संयुक्त प्रस्तुति दी. मंच पर जब भोजपुरी गीत में प्रयोग होने वाले दुर्लभ वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति हुई. तो उनसे निकलने वाली धुनों ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया. आधुनिक संगीत में यह वाद्य यंत्र विलुप्त हो रहे हैं. मौजूदा दौर को इन वाद्य यंत्रों से परिचित कराने के लिए सरकार की ओर से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया.
कार्यक्रम में सामूहिक वादन के साथ भोजपुरी गीत को पहचान देने वाले गायकों को हरि प्रसाद सिंह, श्याम सिंह और स्वतंत्र सिंह ने अपने स्वर से सम्मान दिया. तो वहीं, मंच पर कलाकारों ने इनरसनी, कहरवा धोबिया नृत्य की प्रस्तुति से सभी का मन मोह लिया. आयोजन में सबसे खास पवईया नृत्य रहा जो हिन्दू घरों में बच्चे के पैदा होने पर मुस्लिम कलाकारों की ओर से प्रस्तुत किया जाता था.
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कार्यक्रम में आजमगढ़ से आए कलाकार उमेश कनौजिया और उनके साथियों ने अपनी पारंपरिक धोबिया नृत्य से दर्शकों की खूब तालियां बटोरी. वहीं, दर्शकों ने फरूवाही नृत्य का भी खूब आनंद लिया. आज की युवा पीढ़ी पूरी तरह से इस संगीत और वाद्य यंत्रों से अपरिचित होती जा रही है, जबकि इन्हीं वाद्य यंत्रों और दोनों के सहारे हमारे गीत संगीत का इतिहास पनपा है.