गोरखपुर: दुनिया के महानतम साहित्यकारों में शुमार मुंशी प्रेमचंद की आज 31 जुलाई को 140वीं जयंती मनाई जाएगी. अपनी कलम से भारतीय गांव की परिभाषा बताने वाले महान लेखक मुंशी प्रेमचंद का गोरखपुर से गहरा नाता रहा है. उन्होंने इस शहर में शिक्षा ली और शिक्षण का भी कार्य किया. कई अमूल्य रचनाएं उन्होंने इसी माटी में रहकर लिखीं. देश की आजादी में भी उन्होंने अपने स्तर से योगदान दिया. मुंशी प्रेमचंद गांधी जी के विचारों से भी बेहद प्रभावित थे. असहयोग आंदोलन के समय प्रेमचंद गंभीर रूप से बीमार थे. उन्हें बेहद तंगी थी इसके बावजूद वह गांधी जी के भाषण के प्रभावित होकर अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया था.
गोरखपुर से रहा खास नाता
प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के लमही गांव में 31 जुलाई 1980 को हुआ था तो निधन भी वाराणसी में ही 8 अक्टूबर 1936 को हुआ, लेकिन गोरखपुर में ही उनमें लेखक, राष्ट्रभक्त और आजादी के प्रति समर्पित हो जाने का भाव जगा. मुंशी प्रेमचंद गोरखपुर में पढ़े और यहीं स्कूल में बच्चों को पढ़ाया भी, जहां उनकी मुलाकात महावीर प्रसाद पोद्दार से हुई और उन्होंने अपने कलकत्ता स्थित प्रकाशन हिन्दी पुस्तक एजेंसी से प्रेमचंद की प्रेम पचीसी, सेवा सदन और प्रेमाश्रम को प्रकाशित किया.
गांधी जी से प्रभावित होकर छोड़ी थी सरकारी नौकरी
गोरखपुर में ही प्रेमचंद ने गांधी जी का भाषण सुनने के बाद सरकारी नौकरी छोड़ दी. नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने जीवन-निर्वाह के लिए करघे का कारखाना चलाया और गोरखपुर से हिन्दी और उर्दू में अखबार निकालने की योजना बनाते रहे. अखबार निकालने की योजना सफल न हो पाने के बाद वह अपने गांव लमही चले गए. प्रेमचंद गोरखपुर शहर में पहली बार 1892 में आए. जब उनके पिता अजायब लाल का तबादला गोरखपुर हुआ. वह लगभग चार वर्ष तक यहां रहे और रावत पाठशाला और फिर मिशन स्कूल में आठवीं तक पढ़ाई की. यहीं पर उन्हें तिलस्मी और ऐय्यारी की किताबें पढ़ने का जबरदस्त चस्का लगा और जिसने कहानीकार प्रेमचंद को अंकुरित किया.
प्रेमचंद के नाम से बनाया गया पार्क
वरिष्ठ पत्रकार और प्रेमचंद साहित्य संस्थान के मंत्री मनोज सिंह कहते हैं कि प्रेमचंद लिखते हैं कि रेती पर एक बुकसेलर बुद्धिलाल नाम का रहता था. वह उसकी दुकान पर जाकर बैठते थे और उसके स्टॉक के उपन्यास ले-लेकर पढ़ते थे. मगर दुकान पर सारे दिन तो बैठ न सकते थे इसलिए उसकी दुकान से अंग्रेजी पुस्तकों की कुंजियां और नोट्स लेकर अपने स्कूल के लड़कों के हाथ बेचा करते थे और उसके मुआवजे में दुकान से उपन्यास घर लाकर पढ़ते थे. मनोज सिंह कहते हैं कि मौजूदा समय भी प्रेमचंद के गोरखपुर से अटूट लगाव की गवाही करता है. बेतियाहाता में उनके नाम पर बना एक पार्क लोगों को शांति और साहित्य से जुड़ने का जहां अवसर प्रदान करता है, वहीं पार्क के परिसर में आज भी प्रेमचंद का वह मकान मजबूती से खड़ा है जिसमें वह रहा करते थे.
गोरखपुर में लिखी पहली कहानी
अब यहां एक लाइब्रेरी और प्रेमचंद साहित्य संस्थान का हिस्सा बनकर लोगों के जेहन में प्रेमचंद को जिंदा किए है. प्रेमचंद ने जनपद में अपनी पहली कहानी लिखी जो उनके मामा पर थी. यह उनके मामू के प्रेम प्रसंग और उसे लेकर घटी सच्ची घटना पर थी. 18 अगस्त 1916 की रात उनके बड़े बेटे श्रीपत राय का जन्म भी इसी शहर में हुआ. प्रेमचंद गांधी जी से काफी प्रभावित थे और उन्हें गांधी जी का साक्षात दर्शन असहयोग आंदोलन के दौरान 8 फरवरी 1921 को गोरखपुर के गाजी मियां के मैदान में हुआ था. जब गांधी जी असहयोग आंदोलन के लिए उपस्थित लाखों की भीड़ को सरकारी नौकरी, कॉलेज, विश्वविद्यालय को छोड़ने का आह्वान कर रहे थे तभी उनके भाषण से प्रभावित होकर प्रेमचंद घर लौटे और अपनी पत्नी से सहमति पाकर वह 15 फरवरी 1921 को सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया.
असहयोग आंदोलन के दौरान प्रेमचंद अपने लेख 'स्वराज्य के फायदे' उन्होंने जुलाई 1921 में लिखा और उसमें संदेश दिया कि महात्मा गांधी देश के भक्त हैं और परमात्मा ने उन्हें भारत का उद्धार करने के लिए अवतरित किया है. इसी वर्ष के अंत में उनका 'प्रेम आश्रम' उपन्यास प्रकाशित हुआ जो विशुद्ध रूप से गांधीवादी रचना है. 'रंगभूमि' जो जनवरी 1925 में लिखी गई उसका नायक अंधा भिखारी सूरदास तो गांधी का ही प्रतीक है. प्रेमचंद की प्रमुख रचनाओं में रंगभूमि, कर्मभूमि, गोदान, लाल फीता, सुहाग की साड़ी, मंदिर और मस्जिद, इस्तीफा, जुलूस, समर यात्रा, जेल, आखिरी हीरा, कातिल रहस्य, पाठकों के मन में दासता से मुक्ति और स्वराज की प्राप्ति का महा भाव उत्पन्न करती है.