गोरखपुर: शहरों में छेड़खानी और अन्य घटनाओं पर सीसीटीवी कैमरे लगाने की सरकार की पहल भले ही परवान न चढ़ी हो, लेकिन गोरखपुर के एक गांव में इस तकनीक के इस्तेमाल से अपराध को रोकने में बड़ी कामयाबी मिली है. कभी गांव की गलियों से गुजरती बहू- बेटियों पर जो शोहदे फब्तियां कसते थे आज वह दूर-दूर तक नजर नहीं आते.
आलम यह है कि लोग पूरे सुख चैन से जी रहे हैं. वो इस योजना को परवान चढ़ाने वाले अपने प्रधान प्रतिनिधि दिनेश यादव की तारीफ करने से भी नहीं चूकते. यही नहीं छितौना गांव कई अन्य तरह की सुविधाओं के मामले में भी गोरखपुर का बेहद खास गांव बन गया है, जिसके पीछे एक छोटे से जनप्रतिनिधि का सच्चे भाव से समर्पण है.
छेड़खानी की घटनाएं रुकी
छितौना गांव के हर गली और सड़क को सीसीटीवी कैमरे की निगरानी से जोड़ दिया गया है, जिसकी मॉनिटरिंग प्रधान प्रतिनिधि दिनेश यादव के घर से की जाती है. इसका असर यह हुआ कि फरवरी 2019 के बाद गांव में एक भी छेड़खानी की घटना सामने नहीं आई. यही नहीं प्रधान प्रतिनिधि ने सड़क, नाली, शौचालय सरकारी मदद से बनवाने में जहां रुचि दिखाई. वहीं निजी प्रयासों और थोड़ी सरकारी मदद से अपने गांव को बिजली की अद्भुत व्यवस्था से चकाचौंध कर दिया है.
हर खंभे तिरंगे झंडे के कलर में रंगे हुए हैं तो इस पर लगाई गई लाइट जब रात में जलती है तो गांव वालों को यह लगता ही नहीं कि वह गांव में रहते हैं. साथ ही यह बिजली उनके सुरक्षा का भी बड़ा कारण बनती है. जिससे कोई बाहरी या गांव में प्रवेश नहीं करता।
चोरी की घटनाओं पर लगा अंकुश
गांव में सीसीटीवी कैमरे लग जाने से चोरी की घटनाएं भी रुक गई हैं. आम तौर पर महीने में तीन या चार चोरी की छोटी-छोटी घटनाएं हो जाती थी. वही सड़कों पर लगाई गई दूधिया लाइट भी घटनाओं को रोकने में कारगर सिद्ध हो रही है. यही वजह है कि यह गांव मॉडल गांव बनता जा रहा है और दूसरे जनप्रतिनिधियों के लिए नजीर.
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मैंने गांव के विकास और सुरक्षा के लिए जो प्रयास शुरू किया, वह अच्छा है. आगे और भी अच्छा करने का इरादा है. लोगों को दुख इस बात का है कि सब कुछ होने के बाद भी उनके गांव में प्राथमिक स्कूल नहीं है. बच्चे थोड़ी दूर पढ़ने जाते हैं. आने वाले समय में गांव पूरी तरह से सीसीटीवी कैमरे की जद में होगा और विकास से कोई गली-सड़क महरूम नहीं होगी.
-दिनेश यादव, बीडीसी/प्रधान प्रतिनिधि
यही नहीं इस गांव में गरीबों को छत और जरूरतमंद को शौचालय भी उपलब्ध करा दिया गया है. भले ही इसके लिए सरकारी बजट के अलावा उन्हें अपनी जेब से भी कुछ खर्च करना क्यों नहीं पड़ रहा हो.