गोरखपुर: चौरी चौरा में कोरोना संकट के समय लॉकडाउन का असर राम नवमी में भी देखने को मिल रहा है. सबसे बड़ा असर पूर्वांचल में प्रसिद्ध मंदिर माता तरकुलहा में देखने को मिला है. इस मंदिर में 1857 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि लोग माता तरकुलहा मन्दिर में पूजा करने नहीं आ रहे हैं. कोरोना को मात देने के लिए घर के अंदर से ही धार्मिक अनुष्ठान किए जा रहे हैं.
कोरोना संकट के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए तरकुलहा मंदिर के पुजारी व मन्दिर प्रबंधन ने तरकुलहा मन्दिर में श्रद्धालुओं को अगले आदेश तक न आने की अपील की है. इस दौरान व्यापारी अपने दुकान को बंद किए हुए है. वहीं मन्दिर प्रबंधन भी अगले आदेश तक श्रद्धालुओं के लिए माता तरकुलहा के कपाट को बन्द किया हुआ है. देश के प्रधानमंत्री की अपील पर ये लोग अपने घरों में रहकर लॉकडाउन का पुर्णतः पालन कर रहे हैं.
अमर शहीद बाबू बंधू सिंह ने बनवाया था मंदिर
किवदंती के अनुसार, तरकुलहा मन्दिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के समय इस मंदिर के स्थान पर घना जंगल था. क्षेत्र के अमर शहीद बाबू बंधू सिंह माता के अनन्य भक्त थे. उस समय देश मे अंग्रेजों का शासन था. कहा जाता है कि अमर शहीद बाबू माता को प्रसन्न करने के लिए अंग्रेजों की बलि भी देते थे. माता की अनुकम्पा से अमर शहीद बाबू बंधू सिंह उस समय क्षेत्र में अंग्रेजों के लिए काल बन गए थे. वे घने जंगलों के बीच माता की पिंडी बनाकर पूजा करते थे.
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अंग्रेजों ने उनको धोखे से पकड़ लिया. उन्हें अंग्रेजों द्वारा कई बार फांसी पर लटकाया गया, लेकिन हर बार फांसी का फंदा टूट गया. बाद में अमर शहीद बंधू ने माता से प्रार्थना किया कि तब उनकी फांसी हुई. फांसी होने के तुरंत बाद तरकुलहा के घने जंगलों के बीच तरकुल के पेड़ से रक्त की धारा बहने लगी. तभी से स्थानीय लोग यहां माता तरकुलहा देवी के नाम से पूजा करने लगे और यहा बकरे की बलि देने की प्रथा प्रारंभ हुई.
राम नवमी में यहां होने वाले मेले पर लगा दी गई है रोक
कोरोना संकट को देखते हुए इस बार चैत्रराम नवमी में यहां होने वाले मेले पर रोक लगा दी गई है. वहीं दूसरी तरफ 1857 के बाद पहली बार ऐसा समय है कि यहां बकरे की बलि देने की प्रथा पर रोक लगी हुई है. लोग माता तरकुलहा की पूजा अपने घरों में कर रहे है. तरकुलहा मन्दिर के मुख्य पुजारी दिनेश बाबा ही केवल माता की नियमित पूजा कर रहे हैं.