लखनऊ : शहर का तबला घराना भारतीय संगीत की अद्भुत धरोहरों में से एक है. इसकी जड़ें काफी गहरी हैं. देश में मौजूद कुल 6 घरानों में लखनऊ घराना भी शामिल है. यह सुर और ताल की विरासत को आज भी सहेजे हुए हैं. उस्ताद इलियास हुसैन खान घराने की 14वीं पीढ़ी के तबला वादक हैं. उन्होंने घराने की विशेषता और परंपरा के बारे में विस्तार से जानकारी दी.
ईटीवी भारत से बातचीत में उस्ताद इलियास खान ने बताया कि लखनऊ तबला घराना गुरु-शिष्य परंपरा के जरिए अपनी विरासत को आगे बढ़ा रहा है. घराने की एक खास पहचान यह है कि इसमें तबला दोनों हाथों की 10 अंगुलियों से बजाया जाता है, जबकि दिल्ली घराने में यह केवल 2 अंगुलियों से ही बजाने की परंपरा थी.
अन्य घराने भी अपना रहे लखनऊ की शैली : उस्ताद इलियास हुसैन खान के अनुसार लखनऊ घराने की इस तकनीक को अब पंजाब और बदायूं जैसे अन्य घराने भी अपना रहे हैं. उनकी बेटी आयत फातिमा भी इस कला को सीख रहीं हैं. वह इसे नई ऊंचाइयों तक ले जाने की ख्वाहिश रखती हैं. उस्ताद जाकिर हुसैन के प्रति शोक संवेदना जताते हुए उन्होंने कहा कि जाकिर साहब ने तबले को विश्व स्तर पर एक नई पहचान दिलाई. उनका योगदान अनमोल है. उनकी कमी हमेशा महसूस होती रहेगी.
घराने की स्थापना और विकास : लखनऊ तबला घराने की स्थापना 1775 में नवाब वाजिद अली शाह के समय हुई थी. इसके संस्थापक बकसू खान दिल्ली घराने से ताल्लुक रखते थे. बाद में फैजाबाद से लखनऊ आकर उन्होंने इस घराने की नींव रखी. लखनऊ घराने में शुरू से ही सुर और ताल का महत्व रहा है. यह परंपरा आज भी कायम है.
![घराने की तबला वादन की अलग है शैली.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/11-01-2025/up-lko-01-know-about-lucknow-tabla-ghrana-history-special-pkg-7200178_10012025171646_1001f_1736509606_726.jpg)
ऐसे पड़ती है घराने की बुनियाद : लखनऊ घराने के इलमास हुसैन खान ने बताया कि घराना घर से बनता है. जब घर के लोग इस हुनर को सीख रहे हों और तीन पीढ़ियों से तबला बजाती चली आ रही हो तो उसे घराना मान लिया जाता है. पूरे भारत में 6 तबला घराने हैं. इनमें पंजाब घराना, बनारस घराना, फर्रुखाबाद घराना, अजराड़ा घराना, दिल्ली घराना, लखनऊ घराना है. इसमें लखनऊ तबला घराने का नाम दूसरे नंबर पर लिया जाता है.
वर्तमान में भी तबले का दौर बेहतरीन : उन्होंने कहा कि लखनऊ घराने का बाज, सुर का बाज है. शुरू में कायदा सिखाया जाता है. सिर्फ अभ्यास कराया जाता है. उसके बाद लगातार रियाज करते हैं, जब हाथ तैयार हो जाता है तो फिर बजाना शुरू करते हैं तबला से पहले पखावज का प्रयोग किया जाता था, जब ख्याल गायकी गाई जाती थी तो तबले का बहुत अहम रोल था. ठुमरी, दादरा डांस, कथक, एकल वादन में तबले का दौर बहुत शानदार रहा है. आज भी तबले का दौर बहुत बेहतरीन है.
![कई पीढ़ियों से तबला बजा रहे कलाकार.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/11-01-2025/23300795_emage.jpg)
तबला वादन में संगत अहम : इलमास हुसैन ने कहा कि उस्ताद अमजद अली खान, पंडित बिरजू महाराज, हरीश कुमार चौरसिया हिंदुस्तान के बड़े कलाकारों के साथ तबला बजाने का मौका मिला. तबला बजाने में गायकी के साथ सबसे अहम संगत होता है. तबला वादक के लिए संगत करना बहुत जरूरी होता है. सोलो में तबला वादक अपनी मर्जी से कुछ भी बजा सकता है, लेकिन गायकी में तबला वादक संगत बजाते हैं, जो भी गा रहा है, वह उम्मीद करता है कि तबला वादक उसकी उम्मीदों पर खरा उतरे.
उस्ताद इलमास खान के वंशज मोहम्मद आमिर हुसैन खान भी तबला वादन में गहरी रुचि रखते हैं. उन्होंने इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने का संकल्प लिया है. तबला घराने पर शोध करने वाले श्रीकांत ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाने में योगदान देने की बात कही. वह कहते हैं कि तबला घराने की गहराई और समृद्धि पर वह शोध कर चुके हैं. लखनऊ तबला घराना न केवल अपनी परंपरा और शैली को संजोए हुए है, बल्कि आधुनिक समय में भी इसे प्रासंगिक बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयासरत है.
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