गोरखपुर: काशी से मगहर की यात्रा पर निकले संत कबीर का रात्रि विश्राम गोरखपुर में भी हुआ था. वे जहां रुके थे, वह अब शहर के घासी कटरा मोहल्ले में स्थापित कबीर मठ है. इस वक्त यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. अब भी कबीर की इस चरण पादुका स्थली पर हर दिन भजन-कीर्तन होते हैं. कबीर का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था, जो इस बार 5 जून को पड़ रहा है.
यहां कबीर की गुरु गोरक्षनाथ से भी हुई थी मुलाकात
कबीर काशी से चले तो गाजीपुर, बलिया, देवरिया होते हुए गोरखपुर के घासी कटरा में एक सत्संग भवन पर रुक गए. भक्तों के अनुरोध पर कबीर ने यहां कुछ दिनों तक रुकने का निर्णय लिया. इस दौरान उन्होंने लोगों को अपने उपदेश से भी सिंचित किया. लेकिन जब कबीर यहां से मगहर जाने लगे तो भक्तों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया. कबीर नहीं रुके, लेकिन अपनी पहचान के लिए चरण पादुका छोड़कर आगे बढ़ चले. कबीर से प्रभावित उनके भक्तों ने इस स्थान को कबीर मठ की मान्यता देने के साथ मठ में उनकी चरण पादुका रखकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी. यह आज तक अनवरत जारी है. यहीं पर कबीरदास ने गुरु गोरक्षनाथ को अपनी आध्यात्मिक क्षमता दिखाने के लिए दीवार को गति प्रदान कर दी थी. इसके बाद कबीर के आमंत्रण पर गोरक्षनाथ भी मगहर गए और बिजली खां के भंडारे के लिए अंगूठे से धरती को दबाकर पानी की धार निकाल दी. उसे आज गोरख तलैया के नाम से जाना जाता है.
कबीर के पार्थिव शरीर का अंश है यहां
इस मठ को लेकर यह भी मान्यता है कि कबीरदास के देहत्याग के बाद उनके पार्थिव शरीर से बने फूलों में से कुछ फूल इस मठ में भी लाए गए थे. आज जहां मठ में मंदिर स्थापित हैं. वहीं पर फूल सुरक्षित कर दिए गए. आज भी इस मठ में नियमित भजन-कीर्तन का आयोजन होता है. भजन के माध्यम से कबीर के सद्वचनों का संदेश लोगों तक पहुंचाने की कोशिश होती है. यह मठ मौजूदा समय में अतिक्रमण का शिकार होने की वजह से अपना स्वरूप खोता जा रहा है. इसको लेकर यहां रहने वाले कबीरपंथी काफी दुखी हैं. उनकी इच्छा है कि कबीर का यह महत्वपूर्ण स्थान भी अन्य धर्मस्थलों की तरह लाइमलाइट में आना चाहिए और मठ दबंगों के अतिक्रमण से मुक्त होना चाहिए.