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मगहर से पहले गोरखपुर में पड़े थे संत कबीर के पैर, आज भी खड़ाऊं की होती है पूजा

काशी से मगहर की यात्रा पर निकले कबीर ने गोरखपुर में विश्राम किया था. इस जगह उनकी मुलाकात गुरु गोरक्षनाथ से भी हुई थी. यहां आज भी उनकी चरण पादुका की पूजा-अर्चना की जाती है. उनके इस मठ को चरण पादुका समाधि भी कहा जाता है. 5 जून को कबीर जयंती मनायी जा रही है. इसी कड़ी में कबीर से जुड़ी कई कहानियों को जानने के लिए देखिए ईटीवी भारत की यह खास रिपोर्ट...

charan paduka entombment in gorakhpur
इस मठ को चरण पादुका समाधि भी कहा जाता है.
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Published : Jun 4, 2020, 11:55 PM IST

Updated : Jun 5, 2020, 6:08 AM IST

गोरखपुर: काशी से मगहर की यात्रा पर निकले संत कबीर का रात्रि विश्राम गोरखपुर में भी हुआ था. वे जहां रुके थे, वह अब शहर के घासी कटरा मोहल्ले में स्थापित कबीर मठ है. इस वक्त यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. अब भी कबीर की इस चरण पादुका स्थली पर हर दिन भजन-कीर्तन होते हैं. कबीर का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था, जो इस बार 5 जून को पड़ रहा है.

इस मठ को चरण पादुका समाधि भी कहा जाता है.
गोरखपुर के पौराणिक इतिहास को समेटने वाली पुस्तक 'आईने गोरखपुर' जो मध्यकालीन इतिहासकारों के लेखों का संदर्भ ग्रहण करते हुए लिखी गई है. उसमे इसका पूरा जिक्र मिलता है. मान्यता है कि कबीर के आध्यात्मिक प्रभाव की ख्याति सुनकर मगहर (कबीर की निर्वाण स्थली) के तत्कालीन प्रशासक बिजली खां ने उनसे अपने क्षेत्र में आने का अनुरोध किया. उन दिनों मगहर क्षेत्र में सूखा पड़ा था. इस वजह से बिजली खां कबीर के आशीर्वाद से अपने क्षेत्र को संकटमुक्त करना चाहते थे. कबीर ने निमंत्रण को स्वीकार कर लिया. उस समय ये भ्रांति थी कि काशी में मृत्यु के बाद स्वर्ग और मगहर में मृत्यु के बाद गधे का जन्म मिलता है. कबीर ने ये भ्रांति को तोड़ने का निश्चय कर लिया.

यहां कबीर की गुरु गोरक्षनाथ से भी हुई थी मुलाकात

कबीर काशी से चले तो गाजीपुर, बलिया, देवरिया होते हुए गोरखपुर के घासी कटरा में एक सत्संग भवन पर रुक गए. भक्तों के अनुरोध पर कबीर ने यहां कुछ दिनों तक रुकने का निर्णय लिया. इस दौरान उन्होंने लोगों को अपने उपदेश से भी सिंचित किया. लेकिन जब कबीर यहां से मगहर जाने लगे तो भक्तों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया. कबीर नहीं रुके, लेकिन अपनी पहचान के लिए चरण पादुका छोड़कर आगे बढ़ चले. कबीर से प्रभावित उनके भक्तों ने इस स्थान को कबीर मठ की मान्यता देने के साथ मठ में उनकी चरण पादुका रखकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी. यह आज तक अनवरत जारी है. यहीं पर कबीरदास ने गुरु गोरक्षनाथ को अपनी आध्यात्मिक क्षमता दिखाने के लिए दीवार को गति प्रदान कर दी थी. इसके बाद कबीर के आमंत्रण पर गोरक्षनाथ भी मगहर गए और बिजली खां के भंडारे के लिए अंगूठे से धरती को दबाकर पानी की धार निकाल दी. उसे आज गोरख तलैया के नाम से जाना जाता है.

कबीर के पार्थिव शरीर का अंश है यहां

इस मठ को लेकर यह भी मान्यता है कि कबीरदास के देहत्याग के बाद उनके पार्थिव शरीर से बने फूलों में से कुछ फूल इस मठ में भी लाए गए थे. आज जहां मठ में मंदिर स्थापित हैं. वहीं पर फूल सुरक्षित कर दिए गए. आज भी इस मठ में नियमित भजन-कीर्तन का आयोजन होता है. भजन के माध्यम से कबीर के सद्वचनों का संदेश लोगों तक पहुंचाने की कोशिश होती है. यह मठ मौजूदा समय में अतिक्रमण का शिकार होने की वजह से अपना स्वरूप खोता जा रहा है. इसको लेकर यहां रहने वाले कबीरपंथी काफी दुखी हैं. उनकी इच्छा है कि कबीर का यह महत्वपूर्ण स्थान भी अन्य धर्मस्थलों की तरह लाइमलाइट में आना चाहिए और मठ दबंगों के अतिक्रमण से मुक्त होना चाहिए.

गोरखपुर: काशी से मगहर की यात्रा पर निकले संत कबीर का रात्रि विश्राम गोरखपुर में भी हुआ था. वे जहां रुके थे, वह अब शहर के घासी कटरा मोहल्ले में स्थापित कबीर मठ है. इस वक्त यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. अब भी कबीर की इस चरण पादुका स्थली पर हर दिन भजन-कीर्तन होते हैं. कबीर का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था, जो इस बार 5 जून को पड़ रहा है.

इस मठ को चरण पादुका समाधि भी कहा जाता है.
गोरखपुर के पौराणिक इतिहास को समेटने वाली पुस्तक 'आईने गोरखपुर' जो मध्यकालीन इतिहासकारों के लेखों का संदर्भ ग्रहण करते हुए लिखी गई है. उसमे इसका पूरा जिक्र मिलता है. मान्यता है कि कबीर के आध्यात्मिक प्रभाव की ख्याति सुनकर मगहर (कबीर की निर्वाण स्थली) के तत्कालीन प्रशासक बिजली खां ने उनसे अपने क्षेत्र में आने का अनुरोध किया. उन दिनों मगहर क्षेत्र में सूखा पड़ा था. इस वजह से बिजली खां कबीर के आशीर्वाद से अपने क्षेत्र को संकटमुक्त करना चाहते थे. कबीर ने निमंत्रण को स्वीकार कर लिया. उस समय ये भ्रांति थी कि काशी में मृत्यु के बाद स्वर्ग और मगहर में मृत्यु के बाद गधे का जन्म मिलता है. कबीर ने ये भ्रांति को तोड़ने का निश्चय कर लिया.

यहां कबीर की गुरु गोरक्षनाथ से भी हुई थी मुलाकात

कबीर काशी से चले तो गाजीपुर, बलिया, देवरिया होते हुए गोरखपुर के घासी कटरा में एक सत्संग भवन पर रुक गए. भक्तों के अनुरोध पर कबीर ने यहां कुछ दिनों तक रुकने का निर्णय लिया. इस दौरान उन्होंने लोगों को अपने उपदेश से भी सिंचित किया. लेकिन जब कबीर यहां से मगहर जाने लगे तो भक्तों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया. कबीर नहीं रुके, लेकिन अपनी पहचान के लिए चरण पादुका छोड़कर आगे बढ़ चले. कबीर से प्रभावित उनके भक्तों ने इस स्थान को कबीर मठ की मान्यता देने के साथ मठ में उनकी चरण पादुका रखकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी. यह आज तक अनवरत जारी है. यहीं पर कबीरदास ने गुरु गोरक्षनाथ को अपनी आध्यात्मिक क्षमता दिखाने के लिए दीवार को गति प्रदान कर दी थी. इसके बाद कबीर के आमंत्रण पर गोरक्षनाथ भी मगहर गए और बिजली खां के भंडारे के लिए अंगूठे से धरती को दबाकर पानी की धार निकाल दी. उसे आज गोरख तलैया के नाम से जाना जाता है.

कबीर के पार्थिव शरीर का अंश है यहां

इस मठ को लेकर यह भी मान्यता है कि कबीरदास के देहत्याग के बाद उनके पार्थिव शरीर से बने फूलों में से कुछ फूल इस मठ में भी लाए गए थे. आज जहां मठ में मंदिर स्थापित हैं. वहीं पर फूल सुरक्षित कर दिए गए. आज भी इस मठ में नियमित भजन-कीर्तन का आयोजन होता है. भजन के माध्यम से कबीर के सद्वचनों का संदेश लोगों तक पहुंचाने की कोशिश होती है. यह मठ मौजूदा समय में अतिक्रमण का शिकार होने की वजह से अपना स्वरूप खोता जा रहा है. इसको लेकर यहां रहने वाले कबीरपंथी काफी दुखी हैं. उनकी इच्छा है कि कबीर का यह महत्वपूर्ण स्थान भी अन्य धर्मस्थलों की तरह लाइमलाइट में आना चाहिए और मठ दबंगों के अतिक्रमण से मुक्त होना चाहिए.

Last Updated : Jun 5, 2020, 6:08 AM IST
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