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प्रेमचंद की लाइब्रेरी को है मदद की दरकार, सीलन और दीमक से वजूद पर मंडरा रहा खतरा

ईटीवी भारत 'गोरखपुर के ग्रंथालय' को लेकर एक खास रिपोर्ट पेश कर रहा है. इसके छठे भाग में आज हम बात करेंगे उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की लाइब्रेरी की, जिसके वजूद पर खतरा मंडरा रहा है. देखिए हमारी यह स्पेशल रिपोर्ट...

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गोरखपुर में प्रेमचंद की लाइब्रेरी की है मदद की दरकार.
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Published : Dec 29, 2019, 7:28 PM IST

गोरखपुर: अपनी कालजयी रचनाओं से साहित्य जगत और लोगों के जेहन में महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद भले ही आज भी जीवित हों, लेकिन उनकी कर्मस्थली गोरखपुर में उनके नाम पर स्थापित लाइब्रेरी पूरी तरह दम तोड़ती नजर आ रही है. शहर के बेतियाहाता मोहल्ले में प्रेमचंद साहित्य संस्थान के भवन में यह लाइब्रेरी संचालित होती है, लेकिन लाइब्रेरी की हालत को देखकर कोई भी साहित्य और पुस्तक प्रेमी हैरान और परेशान हो सकता है.

देखें वीडियो.

सीलन और दीमक से किताबों को खतरा
पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के कार्यकाल में प्रेमचंद की कृतियां और उनके निवास स्थान को सहेज तो दिया गया, लेकिन उनकी लाइब्रेरी को सहेजने वाले की मौजूदा समय में दरकार है. प्रेमचंद नाम की इस लाइब्रेरी में जो भी किताबें हैं, उनको पढ़ने वाले आज भी लाइब्रेरी तक आ ही जाते हैं, लेकिन तमाम किताबें सीलन और दीमक से अपना वजूद खो रही हैं.

सरकार से भी नहीं मिल रही मदद
प्रेमचंद साहित्य संस्थान से जुड़े हुए कुछ लोगों और लाइब्रेरियन की पहल पर किताबों को बाइंडिंग कराकर जिंदा रखने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन जिस गोरखपुर को कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कर्मस्थली बनाई हो, वहां उनके नाम से संचालित लाइब्रेरी को सरकारी महकमा भी नजरअंदाज कर देता है.

दो बैलों की जोड़ी, ईदगाह, रामलीला, बूढ़ी काकी, कफन, पंच परमेश्वर, गोदान और गबन जैसी उनकी कालजयी कृतियों की पृष्ठभूमि गोरखपुर में ही तैयार हुई थी. आज ऐसी किताबें इस लाइब्रेरी में ढूंढ़े नहीं मिलती हैं. जो हैं, उन्हें बाइंडिंग कर संभाला गया है.

1996 में हुई थी लाइब्रेरी की स्थापना
इस लाइब्रेरी की स्थापना 1996 में तत्कालीन मंडलायुक्त हरिश्चंद्र की देखरेख में हुई थी, लेकिन प्रशासनिक महकमा भी अब इसकी सुध नहीं लेता और न ही इस विषय पर कोई बात करता है. यही पीड़ा इस लाइब्रेरी की देखभाल करने वाले लाइब्रेरियन की है. लाइब्रेरियन बैजनाथ बताते हैं कि समाज के लोगों से सहयोग लेकर और प्रेमचंद की कहानी, उपन्यास की नाट्य प्रस्तुति करके जो धनराशि मदद में इकट्ठा होती है, उसी से इस लाइब्रेरी को संवारा जा रहा है.

ये भी पढ़ें: बजट अभाव और बार काउंसिल के असहयोग से दम तोड़ रही अधिवक्ताओं की लाइब्रेरी
साहित्य प्रेमी हों या छात्र-छात्राएं, तमाम लोग प्रेमचंद्र को पढ़ने के लिए यहां आज भी आते हैं, लेकिन उन्हें भी निराशा ही हाथ लगती है. प्रेमचंद से जुड़ी हुई तमाम स्मृतियां इस लाइब्रेरी के इर्द-गिर्द घूमती हैं, लेकिन अगर कुछ नहीं ढंग से दिखती तो उनकी रचनाओं से सजी उनकी किताबें.

ये भी पढ़ें: लाइब्रेरी के जनक डॉ. एसआर रंगनाथन के सिद्धांतों पर कार्य करती है पूर्वोत्तर रेलवे की लाइब्रेरी

गोरखपुर की सच्ची घटना पर आधारित है पहली कहानी
'मेरी पहली रचना' शीर्षक से लिखी गई उनकी पहली कहानी गोरखपुर की एक सच्ची घटना से निकली थी. यह घटना मामा जी नाम के चरित्र से जुड़ी थी, जो प्रेमचंद को लिखने-पढ़ने को लेकर काफी टोका-टाकी करते थे.
ये भी पढ़ें: गुलाम भारत में बेहतर थी गोरखपुर नगर निगम लाइब्रेरी, अब सत्ता की बेरुखी पड़ रही भारी

आखिर कब होगा उद्धार
गोरखपुर में शिक्षा विभाग में नौकरी करते हुए प्रेमचंद जिस आवास में रहते थे, उसी में लाइब्रेरी स्थापित है. इसी आवास को केंद्र बनाकर एक पार्क भी विकसित किया गया है, जहां पर समय-समय पर प्रेमचंद की कहानियों का नाट्य मंचन होता है, लेकिन समय की मांग तो उनके नाम से संचालित होने वाली इस लाइब्रेरी के उद्धार की है, जिसके लिए दान देने वाले के नाम को सराहना देने की संस्थान ने खुली घोषणा तक कर रखी है.

गोरखपुर: अपनी कालजयी रचनाओं से साहित्य जगत और लोगों के जेहन में महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद भले ही आज भी जीवित हों, लेकिन उनकी कर्मस्थली गोरखपुर में उनके नाम पर स्थापित लाइब्रेरी पूरी तरह दम तोड़ती नजर आ रही है. शहर के बेतियाहाता मोहल्ले में प्रेमचंद साहित्य संस्थान के भवन में यह लाइब्रेरी संचालित होती है, लेकिन लाइब्रेरी की हालत को देखकर कोई भी साहित्य और पुस्तक प्रेमी हैरान और परेशान हो सकता है.

देखें वीडियो.

सीलन और दीमक से किताबों को खतरा
पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के कार्यकाल में प्रेमचंद की कृतियां और उनके निवास स्थान को सहेज तो दिया गया, लेकिन उनकी लाइब्रेरी को सहेजने वाले की मौजूदा समय में दरकार है. प्रेमचंद नाम की इस लाइब्रेरी में जो भी किताबें हैं, उनको पढ़ने वाले आज भी लाइब्रेरी तक आ ही जाते हैं, लेकिन तमाम किताबें सीलन और दीमक से अपना वजूद खो रही हैं.

सरकार से भी नहीं मिल रही मदद
प्रेमचंद साहित्य संस्थान से जुड़े हुए कुछ लोगों और लाइब्रेरियन की पहल पर किताबों को बाइंडिंग कराकर जिंदा रखने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन जिस गोरखपुर को कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कर्मस्थली बनाई हो, वहां उनके नाम से संचालित लाइब्रेरी को सरकारी महकमा भी नजरअंदाज कर देता है.

दो बैलों की जोड़ी, ईदगाह, रामलीला, बूढ़ी काकी, कफन, पंच परमेश्वर, गोदान और गबन जैसी उनकी कालजयी कृतियों की पृष्ठभूमि गोरखपुर में ही तैयार हुई थी. आज ऐसी किताबें इस लाइब्रेरी में ढूंढ़े नहीं मिलती हैं. जो हैं, उन्हें बाइंडिंग कर संभाला गया है.

1996 में हुई थी लाइब्रेरी की स्थापना
इस लाइब्रेरी की स्थापना 1996 में तत्कालीन मंडलायुक्त हरिश्चंद्र की देखरेख में हुई थी, लेकिन प्रशासनिक महकमा भी अब इसकी सुध नहीं लेता और न ही इस विषय पर कोई बात करता है. यही पीड़ा इस लाइब्रेरी की देखभाल करने वाले लाइब्रेरियन की है. लाइब्रेरियन बैजनाथ बताते हैं कि समाज के लोगों से सहयोग लेकर और प्रेमचंद की कहानी, उपन्यास की नाट्य प्रस्तुति करके जो धनराशि मदद में इकट्ठा होती है, उसी से इस लाइब्रेरी को संवारा जा रहा है.

ये भी पढ़ें: बजट अभाव और बार काउंसिल के असहयोग से दम तोड़ रही अधिवक्ताओं की लाइब्रेरी
साहित्य प्रेमी हों या छात्र-छात्राएं, तमाम लोग प्रेमचंद्र को पढ़ने के लिए यहां आज भी आते हैं, लेकिन उन्हें भी निराशा ही हाथ लगती है. प्रेमचंद से जुड़ी हुई तमाम स्मृतियां इस लाइब्रेरी के इर्द-गिर्द घूमती हैं, लेकिन अगर कुछ नहीं ढंग से दिखती तो उनकी रचनाओं से सजी उनकी किताबें.

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गोरखपुर की सच्ची घटना पर आधारित है पहली कहानी
'मेरी पहली रचना' शीर्षक से लिखी गई उनकी पहली कहानी गोरखपुर की एक सच्ची घटना से निकली थी. यह घटना मामा जी नाम के चरित्र से जुड़ी थी, जो प्रेमचंद को लिखने-पढ़ने को लेकर काफी टोका-टाकी करते थे.
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आखिर कब होगा उद्धार
गोरखपुर में शिक्षा विभाग में नौकरी करते हुए प्रेमचंद जिस आवास में रहते थे, उसी में लाइब्रेरी स्थापित है. इसी आवास को केंद्र बनाकर एक पार्क भी विकसित किया गया है, जहां पर समय-समय पर प्रेमचंद की कहानियों का नाट्य मंचन होता है, लेकिन समय की मांग तो उनके नाम से संचालित होने वाली इस लाइब्रेरी के उद्धार की है, जिसके लिए दान देने वाले के नाम को सराहना देने की संस्थान ने खुली घोषणा तक कर रखी है.

Intro:नोट--यह खबर डेस्क के साथी अच्युत द्विवेदी के डिमांड पर भेजी जा रही। जो उनके द्वारा तैयार किये जा रहे लाइब्रेरी की सीरीज आधारित स्टोरी है। डेस्क कृपया इसकी जानकारी उनको देने का कष्ट कर।


गोरखपुर। अपनी कालजयी रचनाओं से साहित्य जगत और लोगों के जेहन में महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद भले ही आज भी जीवित हों लेकिन उनकी कर्मस्थली गोरखपुर में उनके नाम पर स्थापित लाइब्रेरी पूरी तरह दम तोड़ती नजर आ रही है। शहर के बेतियाहाता मोहल्ले में प्रेमचंद साहित्य संस्थान के नाम के भवन यह लाइब्रेरी संचालित होती है लेकिन लाइब्रेरी की हालत को देखकर कोई भी साहित्य और पुस्तक प्रेमी हैरान और परेशान हो सकता। पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के कार्यकाल में प्रेमचंद की कृतियां और उनके निवास स्थान को सहेज तो दिया गया लेकिन उनकी लाइब्रेरी को सहेजने वाले की मौजूदा समय में दरकार है।




Body:प्रेमचंद नाम की इस लाइब्रेरी में जो भी किताबें हैं उनको पढ़ने वाले आज भी लाइब्रेरी तक आ ही जाते हैं। लेकिन तमाम किताबें सीलन और दीमक से अपना वजूद खो रही है। प्रेमचंद साहित्य संस्थान से जुड़े हुए कुछ लोगों और लाइब्रेरियन की पहल पर किताबों को बाइंडिंग कराकर जिंदा रखने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन जिस गोरखपुर को कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कर्मस्थली बनाई हो उसी कर्मस्थली पर उनके नाम से संचालित लाइब्रेरी को सरकारी महकमा भी नजरअंदाज कर देता है। जबकि दो बैलों की जोड़ी, ईदगाह, रामलीला, बूढ़ी काकी, कफन, पंच परमेश्वर, गोदान,गबन जैसी उनकी कालजयी कृतियों की पृष्ठभूमि गोरखपुर में ही तैयार हुई थी। आज ऐसी किताबें इस लाइब्रेरी में ढूंढे नहीं मिलती हैं जो है उन्हें बाइंडिंग कर संभाला गया है। इस लाइब्रेरी की स्थापना 1996 में तत्कालीन मंडलायुक्त हरिश्चंद्र की देखरेख में हुआ। लेकिन प्रशासनिक महकमा भी अब इसकी सुधि नहीं लेता और ना ही इस विषय पर कोई बात करता है। यही पीड़ा इस लाइब्रेरी की देखभाल करने वाले लाइब्रेरियन की है। जो कहता है कि समाज के लोगों से सहयोग लेकर और प्रेमचंद की कहानी, उपन्यास की नाट्य प्रस्तुति करके जो धनराशि मदद में इकट्ठा होती है उसी से इसको सवांरा जा रहा है।

बाइट--बैजनाथ, लाइब्रेरियन, प्रेमचंद लाइब्रेरी
बाइट--शत्रुजीत त्रिपाठी, पाठक


Conclusion:साहित्य प्रेमी हों या विश्वविद्यालय,महाविद्यालय के छात्र-छात्राएं, तमाम लोग प्रेमचंद्र को पढ़ने के लिए यहां आज भी आते हैं।। लेकिन उन्हें भी निराशा ही हाथ लगती है। प्रेमचंद से जुड़ी हुई तमाम स्मृतियां इस लाइब्रेरी के इर्द-गिर्द घूमती है लेकिन अगर कुछ नहीं ढंग से दिखती तो उनकी रचनाओं से सजी उनकी किताबें।' मेरी पहली रचना' शीर्षक से लिखी गई उनकी पहली कहानी गोरखपुर की एक सच्ची घटना से निकली थी। यह घटना मामा जी नाम के चरित्र से जुड़ी थी जो प्रेमचंद को लिखने- पढ़ने को लेकर काफी टोका टाकी करते थे। प्रेमचंद ने गोरखपुर में शिक्षा विभाग में नौकरी करते हुए जिस आवास में रहते थे उसी में लाइब्रेरी स्थापित है और इसी आवास को केंद्र बनाकर एक पार्क भी विकसित किया गया है जहां पर समय-समय पर प्रेमचंद की कहानियों का नाट्य मंचन होता है। लेकिन समय की मांग तो उनके नाम से संचालित होने वाली इस लाइब्रेरी के उद्धार की है जिसके लिए दान देने वाले के नाम को सरहना देने की संस्थान ने खुली घोषणा तक कर रखा है।

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मुकेश पाण्डेय
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