गोरखपुर : जिले में बाढ़ ने जमकर कहर बरपाया है. बाढ़ की तबाही से लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. इन बाढ़ पीड़ितों का हाल जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम जब उन तक पहुंची तो हकीकत कैमरे में कैद हो पाई. सरकार कहने को तमाम दावे कर रही है कि बाढ़ पीड़ितों की पूरी तरह से मदद की जा रही है. लेकिन सच्चाई इससे परे है. वहीं सपा के पूर्व विधायक ने योगी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा- बाढ़ पीड़ितों तक न तो सरकारी अमले के लोग पहुंच रहे हैं और ना ही सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधि. उनके जैसे नेता अगर बाढ़ पीड़ितों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, तो उन्हें डोंगी नाव का ही सहारा लेना पड़ रहा है. प्रशासन न तो उन्हें स्टीमर उपलब्ध करा रहा है और न ही सुरक्षित संसाधन. ऐसे में जान जोखिम में डालकर उन बेसहारा और मजलूम लोगों तक पहुंचा जा रहा है, जिनका घर चारों तरफ पानी से घिरा है. जिनका घर अंधेरे में डूबा है. खाने के लिए जिनके घर में राशन नहीं है. भगवान भरोसे बैठे ये लोग बाढ़ के पानी का कम होने का इंतजार कर रहे हैं, साथ ही सरकार और अपने नसीब को कोस भी रहे हैं.
तैयारी और प्रबंधन में फेल हुई सरकार: सपा
बाढ़ पीड़ितों की समस्याओं को लेकर सपा के पूर्व विधायक विजय बहादुर यादव का कहना था कि जिले पर बैठे अधिकारी बाढ़ पीड़ितों के घर पहुंचे तब दिखेंगी समस्याएं और जरूरत. उन्होंने कहा- गोरखपुर में जिस तरह से जलप्रलय दिखाई दे रहा है, उसमें करीब तीन लाख से ज्यादा की आबादी प्रभावित है. प्रदेश के सिंचाई मंत्री डॉ महेंद्र सिंह ने अपने दौरे के बाद खुद कहा था कि राप्ती और रोहिन जैसी नदियों के ढाई मीटर खतरे के निशान से ऊपर बहने के बाद, गोरखपुर के लोगों को भगवान ही बचा रहे हैं. लेकिन इन नदियों के जलस्तर के बढ़ने से जो 391 गांव बाढ़ की भयंकर चपेट में आए हैं, उन लोगों को भी लगता है सरकार ने भगवान भरोसे ही छोड़ दिया हैं.
सपा नेता ने आरोप लगाया- सीएम योगी हवाई सर्वेक्षण के बाद अधिकारियों को निर्देश देते हैं, लेकिन बाढ़ पीड़ितों को आखिर मदद मिलती क्यों नहीं. ईटीवी भारत की पड़ताल में कुछ ऐसा ही देखने को मिला है. जब सपा के पूर्व विधायक नाव से गांव में पहुंचते हैं, तो राशन के पैकेट को पाने के लिए लोग दौड़ पड़ते हैं. विधायक से वह अपने बचाव और जरूरत की फरियाद करते हैं. लेकिन विजय बहादुर यादव कहते हैं कि वह सरकार नहीं है. जो संभव है वह मदद लेकर पहुंचे हैं और आगे भी पहुंचेंगे. लेकिन सरकार के लोगों को आप तक पहुंचना चाहिए था. विधायक ने कहा कि 10 हजार की आबादी में प्रशासन 1200 लंच पैकेट लेकर पहुंचता है. आखिर जिले पर बैठे हुए बाढ़ राहत और आपदा से जुड़े हुए अधिकारियों को बाढ़ पीड़ितों की संख्या और समस्या की जानकारी क्यों नहीं होती.
उन्होंने कहा कि जब भी वह अधिकारियों से समस्याओं के निदान और संसाधन की उपलब्धता की बात करते हैं तो अधिकारी आनाकानी करते हैं. उन्होंने कहा कि गोरखपुर का यह क्षेत्र बाढ़ से डूबने नहीं चाहिए थे. आज प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, जो गोरखपुर से 25 सालों से सांसद रहते हुए बाढ़ जैसी समस्या से भलीभांति अवगत हैं. उनकी सरकार में ऐसा ठोस प्रबंधन किया जाना चाहिए था. बाढ़ में जो आज फंसे हुए हैं उनको इससे बचाया जा सकता था. उन्होंने कहा- बाढ़ प्रबंधन में सरकार और प्रशासन फेल हुआ है. न तो बंधों के रेट होल भरे गए और न ही बंधों से झाड़ियों को हटाया गया.
उन्होंने कहा कि विरोधी दल के नेता होने की वजह से उनकी बात को लोग विरोध का ही स्वर मानेंगे, लेकिन ईटीवी भारत के माध्यम से वह सरकार और सत्ता से जुड़े जनप्रतिनिधियों तक यह संदेश और सवाल पहुंचाना चाहते हैं कि आखिर में बाढ़ में फंसे हुए लोगों को भरपूर राहत सामग्री स्वास्थ्य सुविधाएं क्यों नहीं पहुंच पा रहीं. उन्होंने कहा कि वह सरकार नहीं हो सकते. सरकार जितनी मदद नहीं पहुंचा सकते, लेकिन बाढ़ में फंसे लोगों तक पहुंचकर थोड़ी सी सहायता देकर उनका ढांढस तो बढ़ा ही सकते हैं. बाढ़ से घिरे गांवों में- बड़गो, बड़गहन, मंझरिया बिस्टोल, झरवा, बहरामपुर, खिरवनिया, कठवतिया, चकरा दोयम, महेवा, सिंहोरवा, शेरगढ़, भौरामल, चकचोहरा मुख्य हैं.
सीएम पर भरोसा करने से किसानों की डूबी 2800 हेक्टेयर धान की फसल
ईटीवी भारत ने पूर्व विधायक से सवाल किया कि बाढ़ से शहरी क्षेत्र और गांवों को बचाने के लिए योगी सरकार में तरकुलानी रेगुलेटर का निर्माण हुआ है. जिस पर 85 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. इस पर पूर्व विधायक ने कहा कि इस रेगुलेटर योजना को वर्ष 2016 में अखिलेश सरकार ने स्वीकृत किया था. कोई भी इसकी जानकारी आरटीआई से हासिल कर सकता है. योगी सरकार में इसका निर्माण तो हुआ लेकिन न तो इसकी ड्राइंग डिजाइन सही बनाई गई और न ही गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया. यही वजह है कि मंच से जो दावा प्रदेश के मुख्यमंत्री ने किया था कि तरकुलनी रेगुलेटर का पंप जब चलेगा तो बाढ़ के साथ रामगढ़ ताल का पानी भी सूख जाएगा.
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के दावे पर भरोसाकर क्षेत्र के किसानों ने अपने खेतों में फसल उगाई. खाद बीज डाला, लेकिन आज उनकी फसल पूरी तरह से जलमग्न होकर बर्बाद हो गयी है. उन्होंने कहा कि आपदा के समय में वह कोई राजनीति नहीं करना चाहते, लेकिन सत्ता और सरकार में बैठे हुए लोग इसमें राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे. तभी तो उन्हें भी और ईटीवी की टीम को भी बाढ़ पीड़ितों तक जाने के लिए स्ट्रीमर तक नहीं मिला, जबकि देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आधुनिक और सुविधा युक्त हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर से ऐसे क्षेत्रों में उड़ान भर रहे हैं, फिर भी उन्हें हकीकत नहीं दिखाई दे रही.
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सरकार के अधिकारीयों का दावा
जिला प्रशासन के आंकड़े पर गौर करें तो करीब 56240 हेक्टेयर क्षेत्रफल बाढ़ की चपेट में है. सबसे अधिक प्रभावित गांव तहसील सदर के ही हैं, जिनकी संख्या 98 है. गोला क्षेत्र के 75 गांव प्रभावित हैं. बाकी तहसीलों में भी यह संख्या 30 से लेकर 60 गांव की बनी हुई है. प्रशासन के द्वारा बाढ़ पीड़ितों के लिए जो दावे किए जा रहे हैं, उसमें कहा जा रहा है कि 41200 राशन खाद्यान्न किट वितरित किया गया है. पीड़ितों को त्रिपाल जरकिन भी दिया गया है. प्रतिदिन कम्युनिटी किचन से 12 हजार भोजन के पैकेट का वितरण किया जा रहा है. साथ ही 493 नाव और मोटर बोट बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लगाई गई है. मेडिकल की 309 टीमें करीब 20 हजार लोगों को उपचार दे चुकी हैं. बाढ़ बचाव में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और पीआरडी के जवान भी जुटे हुए हैं. पशुओं के लिए 701 कुंतल भूसे का वितरण किया गया है. करीब 30 हजार पशुओं का टीकाकरण हुआ है. एडीएम वित्त एवं राजस्व राजेश सिंह ने बताया कि बाढ़ क्षेत्रों में पानी से घिरे गांव में लोगों की सुविधा के लिए 100 अस्थाई शौचालय भी बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. गोर्रा नदी से प्रभावित राजधानी गांव में कई टॉयलेट तैयार किए गए हैं.