गोरखपुर: आजादी के पहले से रेलवे की डाक टिकटों का संग्रह की बात करें तो संदीप चौरसिया के डाक टिकटों का संग्रह पर्याप्त होगा. कक्षा 5 से रेलवे डाक टिकटों के संग्रह का चस्का ऐसा लगा कि अब तक जो भी टिकट छपा वह सब इनके संग्रह में शामिल हैं.
वैसे तो वर्तमान समय में पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय गोरखपुर ललित नारायण मिश्र रेलवे चिकित्सालय में बतौर चीफ फार्मासिस्ट कार्यरत हैं संदीप चौरसिया, लेकिन कभी भी टिकटों के संग्रह के प्रति उनका लगाव कम नहीं हुआ. देश-विदेश में फिलेटली के आयोजनों में भी वह अपने डाक टिकट के संग्रह के साथ जाते हैं. अभी तक इस जुनून की वजह से उन्होंने 2 अंतरराष्ट्रीय व कई राष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल किया है. स्थानीय स्तर पर भी इनके इस संग्रह की चर्चा हमेशा बनी रहती है.
40 वर्षों से जुटे हैं संग्रह कार्य में
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान संदीप चौरसिया ने बताया कि उनको यह शौक उनके दोस्त के भाई से मिला. इसके बाद उन्होंने अपने घर के अलावा आसपास के लोगों के पास आने वाली चिट्ठी पत्रों के भी टिकट एकत्र करना शुरू कर दिया. यह शौक उनका कब जुनून बन गया, उन्हें पता भी नहीं चला. पिछले 40 वर्षों से लगातार वह इस संग्रह के कार्य में लगे हुए हैं. रेलवे में नौकरी लग जाने के बाद भी उनका शौक कम नहीं हुआ. अपनी नौकरी की जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए उन्हें पूर्वोत्तर रेलवे की तरफ से भी सम्मानित किया जा चुका है.
पहला भारतीय रेलवे टिकट भी है
संदीप ने बताया कि उनके पास आजादी के पहले साल 1937 में जारी भारतीय रेलवे का पहला टिकट है. जो शायद ही देखने को मिलेगा. इस पर जार्ज षष्टम की तस्वीर है. इसके अलावा संग्रह में पहले स्टीम इंजन जिससे रिचर्ड ट्रेवीथिक नेशन 1804 में बनाया था, उसका भी टिकट मौजूद है.
मुंबई के बोरीवली ठाणे के बीच चली पहली रेलगाड़ी 25 मार्च 1825 को स्पेनसियर्स-मुम्बईश्वर के बीच चलाई थी. वहीं पहली सवारी ट्रेन और 27 दिसंबर 1825 को भाप इंजन के प्रयोग पर जारी रेलवे डाक टिकट भी उनके संग्रह की शोभा बढ़ा रहा है. साथ ही पहले इलेक्ट्रॉनिक ट्रेन के दस्तावेज भी संग्रह में मौजूद है. पहली इलेक्ट्रॉनिक ट्रेन मौर्य एक्सप्रेस से संबंधित सभी रिकार्ड भी संदीप के संग्रह में है. रेल के लिफाफे पर रेल मंत्री, रेल राज्य मंत्री ट्रेन के गार्ड और ड्राइवर के हस्ताक्षर भी साक्ष्य के रूप में मौजूद हैं.
असल में संदीप को विश्व रिकॉर्ड बनाना है. इसलिए भारतीय व अन्य रेल टिकटों का संग्रह कर उन्होंने दावेदारी की इच्छा भी जाहिर की है. अपनी इस जुनून की वजह से संदीप को चाइना में सम्मानित किया जा चुका है. उन्हें जींद के मकाउ में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय डाक टिकट की प्रदर्शनी में बुलाया गया था. इसके बाद संग्रह के लिए उन्हें रजत पदक से सम्मानित किया गया.
परिवार के सदस्य भी कर रहे सहयोग
संदीप चौरसिया बताते हैं कि जब वह ऑफिस या कहीं अन्य जगह पर जाते हैं तो वह कूड़े के ढेर आदि जगहों पर खड़े होकर डाक टिकट और लिफाफे को खोजते हैं. इस दौरान उन्हें कई नायाब डाक टिकट भी मिले हैं. इसलिए वह आज भी यह कार्य कर रहे हैं. जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बना चुके संदीप चौरसिया लगातार अपने इस जुनून को आगे बढ़ा रहे हैं. वहीं इस तकनीकी युग में वह तमाम सोशल साइटों पर भी जाकर डॉक्टरों और लिफाफा को खोजते हैं. संदीप के इस जुनून को देखते हुए अब उनके परिवार के सदस्यों ने भी उनका सहयोग करना शुरू कर दिया है. साथ ही उनके जानने वाले, विदेशों में रहने वाले लोग भी उनकी मदद करते हैं.