गोरखपुर: जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है. लेकिन, अपने जीवन काल में अगर कोई व्यक्ति बेहतर कार्य कर जाता है तो उसके कार्य अनंत काल तक जीवित रहते हैं. यह कहना है गोरखपुर के अधिवक्ता शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव का. इनके मकान में रहते हुए सहारा समूह के मलिक सुब्रत राय सहारा ने अपने चिट फंड कारोबार की शुरुआत की थी. सहारा श्री का परिवार शक्ति श्रीवास्तव के मकान में राजघाट थाना क्षेत्र के तुर्कमानपुर मोहल्ले में रहता था. शक्ति कहते हैं कि सहारा श्री के निधन की सूचना के बाद वह टूट गए हैं.
ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने कहा वर्ष 2009 में पिता की मृत्यु के बाद कुछ समय के लिए उन्हें लगा कि वह अकेले हो गए हैं. लेकिन, सुब्रत राय ने उन्हें अपने बेटे की तरह और उनके परिवार की अपने परिवार की तरह देखभाल की. हर जरूरत में साथ खड़े रहे. उन्होंने कहा कि पिता के अधिवक्ता पेशे में जाना चाहते हो या फिर सहारा समूह से जुड़कर कोई नौकरी करना चाहते हो. तो मैंने कहा, नहीं मैं वकालत करना चाहता हूं. पिता के पेशे को अपनाना चाहता हूं. इस पर सहारा श्री ने मेरी पीठ थपथपाई और सहारा समूह के गोरखपुर-फैजाबाद क्षेत्र के कार्यों का लीगल एडवाइजर भी बना दिया, जिसका मुझे वेतन भी मिलता है.
शक्ति कहते हैं कि आज की दुनिया में कौन किराएदार और मकान मालिक को इतना याद करता है. या उसके सुख-दुख का साथी बनता है. लेकिन, सहारा श्री के अंदर जो लोगों की मदद करने, उन्हें आगे बढ़ाने की सोच और ललक थी उसी का नतीजा है कि आज उनका परिवार सहारा श्री के हर फंक्शन में एकदम घर की तरह शामिल होता है. चाहे उस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या देश- विदेश का कोई भी मेहमान शामिल हो रहा हो.
बात करते हुए शक्ति प्रकाश का गला रूध जाता है, आंखें भर आती हैं. वह कहते हैं कि इस मकान में सहारा श्री की यादें बसी हैं. चिट फंड के कारोबार से पहले डिटर्जेंट का काम शुरू किया था. जब चिट फंड के करोबार में उतरे तो हर किसी को पैसे की बचत और उसके महत्व को समझाने में कामयाब हो गए. अपने साथ एक ऐसा कारवां खड़ा कर दिया जो पूरी दुनिया में एक बड़े स्तंभ के रूप में स्थापित हुआ.
शक्ति कहते हैं कि एक बार सहारा श्री का सम्मान समारोह गोरखपुर में होना था. वह भी उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट गए हुए थे. जैसे ही उनसे मुलाकत हुई तो उन्होंने अपनी गाड़ी में बैठा लिए और होटल चले आए. उनकी गाड़ी एयरपोर्ट पर ही छूट गई. वह सोचने लगे इतना बड़ा आदमी अपने शुरुआती दौर के संबंधों को इतनी महानता के साथ जिएगा, सम्मान देगा ऐसी कल्पना नहीं की थी. शक्ति कहते हैं कि सहारा श्री का जाना सहारा समूह से ज्यादा उनके चाहने वालों के लिए पीड़ा का विषय है. सहारा समूह पूरी मजबूती के साथ खड़ा रहेगा. उनके दोनों बेटे भी समर्थ्यवान हैं और उनके हनुमान की भूमिका ओपी श्रीवास्तव निभाते हैं. ऐसे में सहारा सबका सहारा बना रहेगा.
शक्ति कहते हैं कि कार्यक्रम लखनऊ, दिल्ली या मुंबई कहीं भी सहारा श्री के परिवार का आयोजित होता था तो हमारे परिवार को व्यक्तिगत रूप से कार्ड आता था. जब हम समारोह में शिरकत करते थे तो वह अपने बगल में रखते थे और बड़े लोगों से बहुत खुलकर परिचय कराते थे. शक्ति कहते हैं कि वह अपने वकालत के पेशे में अच्छा कमा लेते थे. लेकिन, पैसों की जरूरत उनकी जब बढ़ने लगी तो वह सोचने पर मजबूर हुए कि क्यों न सहारा श्री से अपने वेतन को बढ़ाने की गुजारिश कर लूं. इसी दौरान सहारा श्री का गोरखपुर आना हुआ था.
उन्होंने वेतन बढ़ाने की एक छोटी सी स्लिप सीधे सहारा श्री के हाथों में पकड़ा दी. एक बार उन्हें ऐसा भी लगा कि हो सकता है कार्यक्रम के दौरान वह पर्ची कहीं उनके हाथ से छूट न जाए. लेकिन, अचरज तब हुआ जब देर रात में उनका फोन आया और उन्होंने पूछा कि बेटे तुम्हारी कितनी सैलरी बढ़ा दूं, जिससे तुम्हारा खर्च चल जाए. मैं कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था. उन्होंने रातों रात मेरी सैलरी दुगुनी कर दी. ऐसा मसीहा धरती पर कम ही मिलता है. उन्होंने समाज के हर वर्ग को अपने से जोड़ने का कार्य किया. चाहे वह गांव का गरीब हो या दिल्ली, मुंबई और दुनिया के चकाचौध भरी दुनिया के बड़े-बड़े राजनीतिक, फिल्मी और उद्योगपति सितारे हों. सहारा श्री सबके सहारा रहे. शायद यही वजह थी कि उन्होंने जिन लोगों को सहारा देने की सोची थी, इसीलिए अपने संस्था का नाम उन्होंने सहारा रखा था.
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