गोरखपुर: कोरोना वायरस जैसी महामारी से निपटने के लिए तरह-तरह के उपाय और शोध किए जा रहे हैं. इसी कड़ी में जिले के एक युवा वैज्ञानिक ने भी अद्भुत कमाल कर दिखाया है. एबीसी पब्लिक स्कूल में कक्षा 12वीं के छात्र ने एक ऑटोमेटिक सैनिटाइजर टर्मिनल बनाया है. सेंसर युक्त इस टर्मिनल से गुजरने वाला व्यक्ति 3 सेकंड में ही सैनिटाइज हो जाता है. मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के 'डिजाइन इनोवेशन एंड इंक्यूबेशन सेंटर' का शोधार्थी छात्र है, जिसने यह कमाल कर दिखाया है.
सैनिटाइजर टंकी का किया अविष्कार
राहुल ने जो सैनिटाइजर टंकी बनाई है, वह 20 लीटर की है. इसमें लगी बैट्री 6 बोल्ट और 2200 एमएच की है. इसे एक बार में 6 घंटे तक चार्ज करना पड़ता है, जिसके बाद यह बैटरी 1 महीने तक चलती है. वहीं इससे पहले भी राहुल ने हर्बल सैनिटाइजर, घास काटने की मशीन, खेत जोतने का ट्रैक्टर, ऑटोमेटिक चार्ज होने वाली बैट्री के साथ चलने वाली साइकिल और कई तरह के प्रयोग किए हैं
सीएम योगी कर चुके हैं सम्मानित
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही केंद्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी मंत्री सदानंद गौड़ा भी राहुल को सम्मानित कर चुके हैं. कई विज्ञान कांग्रेस में भी राहुल को सम्मानित होने का अवसर प्राप्त हुआ है. छात्र ने अपनी यह सैनिटाइजर मशीन मदन मोहन मालवीय तकनीकी विश्वविद्यालय परिसर के कई क्षेत्रों में लगा रखी है. साथ ही उसे बहुत जल्द एम्स परिसर में भी लगाने की अनुमति मिलने की भी उम्मीद है.
सैनिटाइजर मशीन में लगाया गया है थर्मल सेंसर
इस सैनिटाइजर मशीन में थर्मल सेंसर भी लगाया गया है, जिससे इस मशीन के नीचे से होकर गुजरने वाले का बुखार भी पता चल जाएगा. राहुल नाम का यह युवा वैज्ञानिक पहले भी कई शोध प्रोजेक्ट के माध्यम से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुका है.
शोध छात्र राहुल ने दी जानकारी
शोध छात्र राहुल बताते हैं कि जिस मशीन का उन्होंने इस्तेमाल किया है, उसे किसान खेतों में दवा के छिड़काव के काम में लाते हैं. कुछ कबाड़ से निकाले हुए सामान और सेंसर से संबंधित सामान बाजार लाने के बाद एक हाई पावर की सर्किट युक्त बैटरी इसमें लगाई गई है, जिसके चलते आधार पर इसमें भरा हुआ सैनिटाइजर बर्बाद नहीं होता है.
विश्वविद्यालय के गेट पर इसे स्थापित करने का परिणाम यह है कि गेट से गुजरने वाला कोई भी व्यक्ति मात्र 3 सेकंड में पूरी तरह से सैनिटाइज हो जाता है. जहां बड़े-बड़े टनल बनाने में लाखों रुपए का खर्च आ रहा हैं, वही इस यंत्र को बनाने में महज 3 हजार रुपए का खर्च आया है.
राहुल सिंह, शोध छात्रसंकट के जिस दौर में राहुल ने इस प्रयोग को सफलतापूर्वक किया है, वह समय की जरूरत को पूरा करता है. इसमें लगने वाले सेंसर और बैटरी की टेक्नोलॉजी को इस छोटी सी उम्र का बालक कैसे बनाता है, यह जानकर हर कोई हैरान है. राहुल की इस उपलब्धि से एबीसी स्कूल के डायरेक्टर हेमंत मिश्रा भी बेहद खुश हैं.
प्रो. जीउत, कुलसचिव, MMMTU