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गोरखपुर: 'नफरतों को जला दें होली में, प्यार के रंग भरें होली में'

गोरखपुर में कमिश्नरी कोर्ट बार एसोसिएशन के बैनर तले साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ. आयोजन में कवियों ने जहां अपने गीत और रंग से श्रोताओं को भिगोया. वहीं प्यार और मोहब्बत के बीच खड़ी नफरतों की दीवार पर भी व्यंग्य से प्रहार किया.

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Published : Mar 19, 2019, 5:32 PM IST

कविता प्रस्तुत करते कवि आलम खुरैशी.


गोरखपुर: होली का त्योहार करीब है. गोरखपुर के कमिश्नरी कोर्ट बार एसोसिएशन के बैनर तले मंगलवार को 'काव्य और हास्य' के बीच इस त्योहार को मनाने के लिए अधिवक्ताओं ने साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया. इस दौरान जूनियर्स ने सीनियर्स का सम्मान किया और उनका स्वागत किया. इस आयोजन में हास्य-व्यंग्य के कवियों की गीतों पर लोगों ने जमकर आनंद उठाया.

कविता प्रस्तुत करते कवि आलम खुरैशी.


अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए शहर के जाने-माने कवि आलम खुरैशी ने जब 'होली खेलें तो ढंग से खेलें, पूरी मस्ती उमंग से खेलें. 'नफरतों को जला दें होली में, बस मोहब्बत के रंग से खेलें, होली खेलें तो ढंग से खेलें' के बोल जब कवि ने गाए तो सभागार में मौजूद अधिवक्ता अपनी तालियों को रोक नहीं पाए. अधिवक्ताओं ने कवियों का उत्साह बढ़ाया तो माहौल भी होलियाना हो गया.


कमिश्नर कोर्ट के अधिवक्ता हर वर्ष ऐसा आयोजन करते हैं, जिसमें आनंद और मस्ती का माध्यम काव्य और गीत होता है, होली होती है पर उसमें न रंग होता है और न अबीर होती है. फूलों की सुगंध होती है, कस्तूरी चंदन से शीतलता भरी ठंड का एहसास होता है और अपनों का प्यार होता है.


इस आयोजन में कवि ने जहां अपने गीत और रंग से श्रोताओं को भिंगोया, वहीं प्यार और मोहब्बत के बीच खड़ी नफरतों की दीवार पर भी व्यंग्य से प्रहार किया. उन्होंने कहा कि 'गोला बारी और आज हैं दंगे खूब, यह किसकी है चाल लिखूंगा गजलों में'. नफरत की दीवार तोड़ सब निकले जो, उगता सूरज दे जाता है ऊर्जा खूब. इस आयोजन में लोगों ने एक दूसरे को गले मिलकर होली की बधाई दी.


गोरखपुर: होली का त्योहार करीब है. गोरखपुर के कमिश्नरी कोर्ट बार एसोसिएशन के बैनर तले मंगलवार को 'काव्य और हास्य' के बीच इस त्योहार को मनाने के लिए अधिवक्ताओं ने साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया. इस दौरान जूनियर्स ने सीनियर्स का सम्मान किया और उनका स्वागत किया. इस आयोजन में हास्य-व्यंग्य के कवियों की गीतों पर लोगों ने जमकर आनंद उठाया.

कविता प्रस्तुत करते कवि आलम खुरैशी.


अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए शहर के जाने-माने कवि आलम खुरैशी ने जब 'होली खेलें तो ढंग से खेलें, पूरी मस्ती उमंग से खेलें. 'नफरतों को जला दें होली में, बस मोहब्बत के रंग से खेलें, होली खेलें तो ढंग से खेलें' के बोल जब कवि ने गाए तो सभागार में मौजूद अधिवक्ता अपनी तालियों को रोक नहीं पाए. अधिवक्ताओं ने कवियों का उत्साह बढ़ाया तो माहौल भी होलियाना हो गया.


कमिश्नर कोर्ट के अधिवक्ता हर वर्ष ऐसा आयोजन करते हैं, जिसमें आनंद और मस्ती का माध्यम काव्य और गीत होता है, होली होती है पर उसमें न रंग होता है और न अबीर होती है. फूलों की सुगंध होती है, कस्तूरी चंदन से शीतलता भरी ठंड का एहसास होता है और अपनों का प्यार होता है.


इस आयोजन में कवि ने जहां अपने गीत और रंग से श्रोताओं को भिंगोया, वहीं प्यार और मोहब्बत के बीच खड़ी नफरतों की दीवार पर भी व्यंग्य से प्रहार किया. उन्होंने कहा कि 'गोला बारी और आज हैं दंगे खूब, यह किसकी है चाल लिखूंगा गजलों में'. नफरत की दीवार तोड़ सब निकले जो, उगता सूरज दे जाता है ऊर्जा खूब. इस आयोजन में लोगों ने एक दूसरे को गले मिलकर होली की बधाई दी.

Intro:गोरखपुर। होली की खुमारी में लोग अब पूरी तरह गोता लगाने को तैयार हैं। त्योहार करीब है। सरकारी कर्मचारी हों या फिर अधिवक्ता और शिक्षक इस त्यौहार में छुट्टी पर जाने से पहले यह लोग अपने समाज के लोगों के साथ पूरी आनंद और मस्ती के साथ इस त्यौहार का भरपूर आनंद ले रहे हैं। गोरखपुर के कमिश्नरी कोर्ट बार एसोसिएशन के बैनरतले आज 'काव्य और हास्य' के बीच इस त्योहार को मनाने अधिवक्ता समूह एकत्रित हुआ। इस दौरान जूनियर्स ने सीनियर्स का सम्मान किया। उनका स्वागत फूल बरसा कर किया तो माथे पर तिलक लगाकर होली का आदर्श रूप भी प्रस्तुत किया। लेकिन इस आयोजन में रंग और आनंद भरा हास्य-व्यंग्य के कवियों ने जिनके गीतों पर लोग जमकर तालियां बजाए।

नोट--डेस्क से अनुरोध, इस खबर में कवि का काव्य पाठ पैकेज में चलाए, दर्शक/श्रोताओं को अच्छा लगेगा।


Body:अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए शहर के जाने-माने कवि आलम खुरैशी ने जब गया कि' होली खेलें तो ढंग से खेलें, पूरी मस्ती उमंग से खेलें, नफरतों को जला दें होली में, बस मोहब्बत के रंग से खेलें, होली खेलें तो ढंग से खेलें' तो सभागार में मौजूद अधिवक्ता लोग अपनी तालियों को रोक नहीं पाए और बजाकर कवि का उत्साह बढ़ाया तो माहौल भी होली का बनाया। कमिश्नर कोर्ट के अधिवक्ता हर वर्ष ऐसा आयोजन करते हैं जिसमें आनंद और मस्ती का माध्यम काव्य और गीत होती है। होली होती है पर उसमें न रंग होता है और न अबीर होती है। फूलों की सुगंध होती है। कस्तूरी चंदन से शीतलता भरी ठंड का एहसास होता है और अपनों के अपनेपन का प्यार होता है। जिसका आयोजन कर आयोजनकर्ता खुद आनंदित होते हैं।

बाइट- आलम खुरैशी, कवि
बाइट-अनिकेत श्रीवास्तव, अध्यक्ष, कमिश्नर बार कोर्ट


Conclusion:इस आयोजन में कवि ने जहां अपने गीत और रंग से श्रोताओं को भिगोया वहीं प्यार और मोहब्बत के बीच खड़ी नफरतों की दीवार पर भी व्यंग से प्रहार किया। उन्होंने कहा कि 'गोला बारी और आज है दंगे खूब, यह किसकी है चाल लिखूंगा गजलों में'। नफरत की दीवार तोड़ सब निकले जो, उगता सूरज दे जाता है ऊर्जा खूब। इस आयोजन के साथ लोगों ने जहां एक दूसरे को होली की गले लगकर बधाई दिया वहीं गुझिया और नमकीन की मिठास के साथ शीतल पेय पदार्थ से गला भी तर किया। कवियों की महफिल हो और राग और तान छिड़ा हो तो लोग आनंद लेने खुद ब खुद खिचें चले आते हैं।

मुकेश पाण्डेय
Etv भारत, गोरखपुर
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