गोरखपुर: कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने निजी अस्पतालों को कोविड-19 के इलाज के लिए अनुमति प्रदान किया तो यह अस्पताल मरीजों से लूट-खसोट पर आमादा हो गए. मनमानी फीस वसूलते गए और लोगों की जिंदगी भी नहीं बचा पा रहे हैं. ऐसे में सरकार ने गाइडलाइन जारी करके अस्पतालों में भर्ती मरीजों के इलाज का शुल्क निर्धारित कर दिया. फिर भी निजी अस्पताल अपनी मनमानी करते रहे. मामला तब उजागर हुआ जब पीड़ित परिजनों की शिकायतें जिला प्रशासन को मिलनी शुरू हुई. गोरखपुर में ऐसी करीब 25 शिकायतें सामने आई हैं जिसमें अस्पतालों ने मनमानी पैसे वसूले हैं.
फिलहाल जिला प्रशासन ने एक अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उसे सील कर दिया है. बाकी अस्पतालों के खिलाफ जांच चल रही है. हाईकोर्ट के आदेश पर एक अलग 3 सदस्यीय समिति अस्पतालों की जांच कर रही है तो शासन के निर्देश पर कमिश्नर की देखरेख में बनाई गई समिति भी शिकायतों की जांच में जुटी हुई है.
इन अस्पतालों के खिलाफ मिली है अधिक वसूली की शिकायत
गोरखपुर में जिन अस्पतालों के खिलाफ शिकायतें मिली हैं, उसमें शिवा हॉस्पिटल, हरियाणा हॉस्पिटल, बॉम्बे हॉस्पिटल, आरोही हॉस्पिटल, गर्ग हॉस्पिटल, शाही ग्लोबल हॉस्पिटल, डिग्निटी हॉस्पिटल, एवीएस हॉस्पिटल, जीवनदीप हॉस्पिटल, मृत्युंजय हॉस्पिटल, चंद्रिका हॉस्पिटल जैसे बड़े अस्पताल शामिल हैं. इन सभी के खिलाफ शिकायतें आई हैं, जिसमें इलाज के नाम पर 5 हजार रुपये से लेकर तक लाखों की वसूली का मामला शिकायत समिति को पहुंचा है. गोरखपुर के अपर आयुक्त न्यायिक रतिभान ने ईटीवी भारत से कहा है कि जो भी शिकायतें उनकी समिति तक पहुंच रही हैं, उसका समिति में शामिल प्रशासन और डॉक्टरों की टीम परीक्षण कर रही हैं. अस्पतालों को नोटिस भेजने के बाद उनके जवाब और शिकायतकर्ता की शिकायत का मिलान किया जा रहा है और कार्रवाई के लिए कमिश्नर को समिति अपनी सिफारिश भेज रही है.
वहीं जिले में हाईकोर्ट के निर्देश पर अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व राजेश कुमार सिंह के नेतृत्व में दूसरी टीम काम कर रही है, जहां पर स्वच्छता सफाई के साथ वसूली की भी शिकायतें आ रही हैं. उन्होंने बताया कि शिकायतकर्ताओं से उनकी बात हुई है. जांच पुष्ट होने पर एक अस्पताल को सील कर दिया गया है. बाकी के खिलाफ भी जांच में पुष्टि होने पर कार्रवाई हर हाल में की जाएगी.
सरकार ने जो गाइडलाइन जारी किया है उसके अनुसार उच्च सुविधा वाले निजी अस्पतालों में आइसोलेशन बेड का खर्च 11 हजार 200 रुपये, गंभीर मरीज के इलाज का खर्च 17 हजार और अति गंभीर मरीज का खर्च 20 हजार रुपये प्रति दिन निर्धारित किया गया है. इसी प्रकार सामान्य अस्पताल में यह खर्च आइसोलेशन बेड का 9 हजार 200, गंभीर मरीज का 15 हजार और अति गंभीर मरीज का 17 हजार रुपये निर्धारित किया गया है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा. गोरखपुर के शिवा हॉस्पिटल की जो शिकायत हुई, उसमें शिकायत कर्ता रवि श्रीवास्तव की मानें तो गोरखपुर के निजी अस्पताल जिस बेड का एक दिन का 40 हजार रुपये वसूल रहे हैं, उसका दिल्ली- गुड़गांव में मैक्स और फोर्टिस जैसे अस्पताल 20 हजार प्रतिदिन लेते हैं और मरीज को खाना पानी भी फ्री में देते हैं.
पहली घटना
गोरखपुर में एंबुलेंस चालकों ने भी मनमानी पैसा वसूला है, जिसमें कार्रवाई हुई और चालक को हिरासत में लेकर जेल भी भेज दिया गया. यह घटना 12 मई की है, जिसमें गुलरिहा पुलिस ने एंबुलेंस चालक के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया. एडीजी पुलिस अखिल कुमार के निर्देश पर एंबुलेंस चालकों का किराया निर्धारित कर दिया गया है. गोरखपुर शहर के अंदर यानी कि करीब 20 किलोमीटर की परिधि में आने-जाने का किराया 1500 रुपये होगा. शहर से बाहर किराया 10 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से लिया जाएगा. यही वजह है कि शहर के मरीज से 2 हजार लेने के बाद भी जब एंबुलेंस चालक ने 3 हजार की अतिरिक्त मांग की तो वह इसका शिकार हो गया.
दूसरी घटना
10 मई को सिटी मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में एक टीम ने छापा मारकर करीब 100 जंबो और छोटे ऑक्सीजन सिलेंडर को बरामद किया था जो मजबूर लोगों से फायदा उठाकर 25 से 40 हजार में बेचा जा रहा था. सिटी मजिस्ट्रेट ने कालाबाजारी करने वाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराकर उसे जेल भेज दिया. यह बरामदगी गोरखनाथ थाना क्षेत्र के 10 नंबर बोरिंग के पास मां अंबे नाम की फर्म के संचालक द्वारा अंजाम दी जा रही थी, जिसका नाम दिनेश दुबे था.
तीसरी घटना
गोरखनाथ थाना क्षेत्र के ही धर्मशाला बाजार पुलिस चौकी इंचार्ज के प्रयास से रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वाले प्राइवेट नर्सिंग होम के दो कर्मचारियों को 10 मई को इंजेक्शन के साथ गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. इसमें यह तथ्य सामने आया कि अस्पताल के अंदर मरीजों को रेमडेसिविर की पूरी डोज न देकर यह लोग इंजेक्शन बचा लेते थे. कुछ मरीजों को एक ही इंजेक्शन का आधा-आधा दो बार डोज लगाते थे. इससे भी इंजेक्शन की कालाबाजारी करने में यह लोग सफल हो रहे थे. ये 18 हजार रुपये में इंजेक्शन को बेच रहे थे जबकि इंजेक्शन की कीमत 1299 रुपये थी.
ये भी पढ़ें: ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी कर रहे थे तीन युवक, पुलिस ने किया गिरफ्तार
पकड़े गए दोनों युवकों में से एक का नाम संजीत कुमार गुप्ता है, जोकि फार्मासिस्ट था और गर्ग हॉस्पिटल में काम करता था. वहीं दूसरा युवक पीसी नर्सिंग होम में काम करता था, जिसका नाम दीपक चौरसिया है. यह रंगे हाथ पुलिस और ड्रग इंस्पेक्टर की संयुक्त टीम द्वारा पकड़े गए.
चौथी घटना
शहर की दवा मंडी भालोटिया बाजार में ब्लैक फंगस के इंजेक्शन की कालाबाजारी करने और प्रिंट मूल्य से अधिक पर बिक्री करने की शिकायत सिटी मजिस्ट्रेट को मिली तो उन्होंने 18 मई को छापा मारकर इंजेक्शन बेच रही दवा फर्म और इसमें शामिल दवा की मार्केटिंग से जुड़े एक युवक को मौके से ही गिरफ्तार किया. इन्हें 19 मई को जेल भी भेज दिया गया. ब्लैक फंगस के इंजेक्शन की कीमत 3686 रुपये थी. उसको यह कलाबाजरी करने वाले लोग 19 हजार में बेच रहे थे.
ये भी पढ़ें: कालाबाजारी: इंजेक्शन की कीमत सुनकर भौचक्के रह गए सिटी मजिस्ट्रेट
जिस फर्म पर कार्रवाई हुई, उसका नाम अंशु मेडिकल एजेंसी है. इस मामले में उसके मालिक अमित जायसवाल और नेक्सा वैलनेस कंपनी के एरिया मैनेजर राहुल पांडेय को गिरफ्तार किया गया. सिटी मजिस्ट्रेट अभिनव रंजन श्रीवास्तव ने ड्रग्स विभाग के अधिकारियों को बुलाकर इनके खिलाफ कार्रवाई का निर्देश भी दिया.