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गोरखपुर: सैकड़ों वर्ष पुराने सोने और चांदी के ताजिए का लोग करेंगे दीदार - Mian Sahab Imambara Gorakhpur

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में सोने-चांदी के ताजिए का लोग दीदार करेंगे. नवाब और उनकी बेगम ने सोने-चांदी का ताजिया मरकजी इमामबाड़े को तोहफे में दिया था. हर साल 3 से 10 मुहर्रम की दोपहर तक लोग यहां ताजिए को देखने आते हैं.

सोने-चांदी के ताजिए का दीदार करेंगे लोग.
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Published : Sep 3, 2019, 10:31 PM IST

गोरखपुर: मियां बाजार स्थित मियां साहब इमामबाड़ा स्टेट की ऐतिहासिक इमारत के इतिहास का जीता जागता उदाहरण है. सैकड़ों वर्ष पुराने इस इमामबाड़ा स्टेट में सामाजिक एकता और अकीदत का एक महत्वपूर्ण स्थान है. यह हिंदुस्तान में सुन्नियों का सबसे बड़ा इमामबाड़ा है. इमामबाड़े के दरो दीवार में सोने-चांदी की ताजिया, अवध स्थापत्य कला और कारीगरी बसी नजर आती है.

सोने-चांदी के ताजिए का दीदार करेंगे लोग.

सोने-चांदी के ताजिए का दीदार करेंगे लोग

मियां साहब की ख्याति की वजह से इसको मियां बाजार के नाम से जाना जाता है. उस समय अवध के नवाब आसिफुद्दौला थे. उन्होंने हजरत सैयद अरशद अली शाह को 10 हजार रुपया इमामबाड़ा की विस्तृत इमारत के लिए दिया था. हजरत रोशन अली शाह की इच्छानुसार नवाब आसिफुद्दूला ने 6 एकड़ के इस भू-भाग पर हजरत इमाम हुसैन की याद में मरकजी इमामबाड़ा का निर्माण कराया. करीब 12 साल तक इमारत का काम चलता रहा, जो 1796 ई. में पूरा हो सका. अवध के नवाब आसिफुद्दौला की बेगम ने सोने-चांदी की ताजिया बतौर तोहफे के रूप में इस स्टेट को भेजी थी.

इमामबाड़ा स्टेट के उत्तराधिकारी ने क्या कुछ बताया

इस संबंध में इमामबाड़ा स्टेट के उत्तराधिकारी अदनान फारुख अली शाह मियां साहब ने बताया कि मियां साहब स्टेट के अंदर सोने और चांदी का ताजिया हैं. 6 एकड़ के मरकजी इमामबाड़ा का निर्माण अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने 1796 ई. में कराया था. उन्होंने बताया कि नवाब और उनकी बेगम ने सोने-चांदी का ताजिया तोहफे में दिया, इसे सात दरवाजों और सात तालों में बंद करके रखा जाता है. 3 से 10 मुहर्रम की दोपहर तक लोग यहां ताजिए को देखने आते हैं. अदनान फारुख अली शाह ने बताया कि अवध के नवाब ने करीब 5.50 किलो सोने का ताजिया दिया था.

आपको बता दें कि मोहर्रम का चांद देखने के बाद इमामबाड़े के उत्तराधिकारी सोने-चांदी के ताजिया वाले कमरे में चाबी लेकर पहुंचते हैं, इसके बाद ताजियों को रखे जाने वाले कमरे का दरवाजा खोला जाता है. शहर के सर्राफ को ताजिए की सफाई की जिम्मेदारी दी जाती है, जिसके बाद हर साल 3 मुहर्रम की शाम से सोने-चांदी के ताजिए के दीदार होना शुरु हो जाते हैं.

गोरखपुर: मियां बाजार स्थित मियां साहब इमामबाड़ा स्टेट की ऐतिहासिक इमारत के इतिहास का जीता जागता उदाहरण है. सैकड़ों वर्ष पुराने इस इमामबाड़ा स्टेट में सामाजिक एकता और अकीदत का एक महत्वपूर्ण स्थान है. यह हिंदुस्तान में सुन्नियों का सबसे बड़ा इमामबाड़ा है. इमामबाड़े के दरो दीवार में सोने-चांदी की ताजिया, अवध स्थापत्य कला और कारीगरी बसी नजर आती है.

सोने-चांदी के ताजिए का दीदार करेंगे लोग.

सोने-चांदी के ताजिए का दीदार करेंगे लोग

मियां साहब की ख्याति की वजह से इसको मियां बाजार के नाम से जाना जाता है. उस समय अवध के नवाब आसिफुद्दौला थे. उन्होंने हजरत सैयद अरशद अली शाह को 10 हजार रुपया इमामबाड़ा की विस्तृत इमारत के लिए दिया था. हजरत रोशन अली शाह की इच्छानुसार नवाब आसिफुद्दूला ने 6 एकड़ के इस भू-भाग पर हजरत इमाम हुसैन की याद में मरकजी इमामबाड़ा का निर्माण कराया. करीब 12 साल तक इमारत का काम चलता रहा, जो 1796 ई. में पूरा हो सका. अवध के नवाब आसिफुद्दौला की बेगम ने सोने-चांदी की ताजिया बतौर तोहफे के रूप में इस स्टेट को भेजी थी.

इमामबाड़ा स्टेट के उत्तराधिकारी ने क्या कुछ बताया

इस संबंध में इमामबाड़ा स्टेट के उत्तराधिकारी अदनान फारुख अली शाह मियां साहब ने बताया कि मियां साहब स्टेट के अंदर सोने और चांदी का ताजिया हैं. 6 एकड़ के मरकजी इमामबाड़ा का निर्माण अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने 1796 ई. में कराया था. उन्होंने बताया कि नवाब और उनकी बेगम ने सोने-चांदी का ताजिया तोहफे में दिया, इसे सात दरवाजों और सात तालों में बंद करके रखा जाता है. 3 से 10 मुहर्रम की दोपहर तक लोग यहां ताजिए को देखने आते हैं. अदनान फारुख अली शाह ने बताया कि अवध के नवाब ने करीब 5.50 किलो सोने का ताजिया दिया था.

आपको बता दें कि मोहर्रम का चांद देखने के बाद इमामबाड़े के उत्तराधिकारी सोने-चांदी के ताजिया वाले कमरे में चाबी लेकर पहुंचते हैं, इसके बाद ताजियों को रखे जाने वाले कमरे का दरवाजा खोला जाता है. शहर के सर्राफ को ताजिए की सफाई की जिम्मेदारी दी जाती है, जिसके बाद हर साल 3 मुहर्रम की शाम से सोने-चांदी के ताजिए के दीदार होना शुरु हो जाते हैं.

Intro:गोरखपुर। मियां बाजार स्थित मियां साहब इमामबाड़ा स्टेट की ऐतिहासिक इमारत इतिहास का जीवंत जीता जागता उदाहरण है। सैकड़ों वर्ष पुराने इस इमामबाड़ा स्टेट में सामाजिक एकता व अकीदत का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह हिंदुस्तान में सुन्नियों का सबसे बड़ा इमामबाड़ा है, इमामबाड़े के दरो दीवार व सोने-चांदी की ताजिया अवध स्थापत्य कला व कारीगरी रची बसी नजर आती है।


Body:मियां साहब की ख्याति की वजह से इसको मियां बाजार के नाम से जाना जाता है, उस समय अवध के नवाब आसिफुद्दूला थे। जिन्होंने 10 हजार रुपया इमामबाड़ा की विस्तृत तामीर के लिए हजरत सैयद अरशद अली शाह को दिया था। हजरत रोशन अली शाह की इच्छाअनुसार नवाब आसिफुद्दूला ने 6 एकड़ के इस भू-भाग पर हजरत इमाम हुसैन की याद में मरकजी इमामबाड़ा की तामीर करवाई। करीब 12 साल तक तामीर का काम चलता रहा। जो 1796 ईसवी में पूरा हो सका। अवध के नवाब आसिफुद्दूला की बेगम ने सोने चांदी की ताजिया बतौर तोहफे के रूप में इस स्टेट को भेजी।

इस संबंध में इमामबाड़ा स्टेट के गद्दी नशीन अदनान फारुख अली शाह मियां साहब ने बताया कि मिया साहब स्टेट के अंदर सोने और चांदी का ताजिया है। 6 एकड़ के मरकजी इमामबाड़ा की तामीर अवध के नवाब आसिफुद्दूला ने 1796 ईसवी में कराई थी। नवाब व उनकी बेगम ने सोना चांदी का ताजिया दिया, इसे सात दरवाजों व सात तालों में बंद कर रखा जाता है। 3 से 10 मुहर्रम की दोपहर तक लोग यहां ताजिए को देखने आते हैं। अवध के नवाब ने करीब 5.50 किलो सोने का ताजिया दिया था। बुजुर्ग की करामत सुनकर नवाब की बेगम ने इमामबाड़े में चांदी की ताजिया दी थी, मोहर्रम का चांद देखने के बाद इमामबाड़ा के उत्तराधिकारी सोने-चांदी ताजिया वाले कमरे में चाबी लेकर पहुंचते हैं। इसके बाद ताजियों को रखे जाने वाले कमरे का दरवाजा खोला जाता है। शहर के सर्राफ को इसकी सफाई की जिम्मेदारी दी जाती है। हर साल 3 मुहर्रम की शाम से सोने चांदी के ताजिए के देखा जाना शुरु होता है, सोने चांदी का अलम झंडे भी दिखाए जाता है।

बाइट - अदनान फारुख अली शाह मियां साहब



निखिलेश प्रताप
गोरखपुर
9453623738


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