ETV Bharat / state

अंग्रेजी हुकूमत में बना संक्रामक रोग अस्पताल खुद हुआ 'संक्रमित', जानिए पूरी कहानी... - Infectious Disease Hospital Gorakhpur

गोरखपुर में अंग्रेजों के जमाने में बना संक्रामक रोग अस्पताल मौजूदा समय में बदहाल है. इसका भवन पूरी तरह से जर्जर है. वहीं, अस्पताल में पिछले डेढ़ साल से किसी डॉक्टर की भी तैनाती नहीं है. जिससे अस्पताल पूरी तरह बंद हैं.

गोरखपुर का संक्रामक रोग अस्पताल बदहाल
गोरखपुर का संक्रामक रोग अस्पताल बदहाल
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 5, 2023, 9:51 PM IST

गोरखपुर का संक्रामक रोग अस्पताल बदहाल

गोरखपुर: देश जब आजाद नहीं था और अंग्रेजों का शासन था, तब बीमारियों को लेकर तत्कालीन प्रशासन बड़ा ही जागरूक था. संक्रामक रोगों पर नियंत्रण के लिए तो उस दौरान बड़े कदम उठाए गए थे. इसी क्रम में गोरखपुर के जिला अस्पताल परिसर से सटा हुआ संक्रामक रोग अस्पताल बनाया गया था. 4 अप्रैल 1937 को तत्कालीन गोरखपुर कमिश्नर ने स्थानीय वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजसेवी विन्देश्वरि प्रसाद के नाम पर अस्पताल की स्थापना की थी.

विभागीय सूत्रों की माने तो कोरोना काल से यह संक्रामक रोग अस्पताल खुद संक्रमित हो गया है. यहां पर पिछले दो साल से न तो डॉक्टर की तैनाती हो पाई और न ही जरूरी संसाधन दिए गए. जिसकी वजह से संक्रामक रोगों के मरीज जिला अस्पताल और BRD मेडिकल कॉलेज में इलाज करने को लेकर निर्भर हो गए. जब भी डेंगू, मलेरिया या सर्दी जुकाम के मरीज शहर में ज्यादा बढ़ते हैं तो लोग इस अस्पताल में भी इलाज कराने के लिए आते हैं और निराश होकर लौटकर चले जाते हैं.

2 साल से कोई डॉक्टर नहींः बता दें कि नगर निगम की देखरेख में यह संक्रामक चिकित्सालय संचालित होता है. लेकिन डॉक्टर की पोस्टिंग सीएमओ ही यहां करते हैं. नगर निगम इस संक्रामक अस्पताल में डॉक्टर की तैनाती को लेकर इतना लापरवाह बना हुआ है कि वह पिछले डेढ़ से 2 साल में यहां पर डाक्टर तैनात नहीं कर पाया है. ईटीवी भारत ने जब इस संबंध में महापौर डॉक्टर मंगलेश श्रीवास्तव और नगर आयुक्त से सवाल किया तो मुख्य चिकित्सा अधिकारी से यहां डॉक्टर तैनात करने के लिए चिट्ठी पत्री दौड़ने लगी. फिलहाल अभी चिकित्सक की तैनाती यहां नहीं हो पाई है और अस्पताल भी पूरी तरह से जर्जर और अव्यवस्थित पड़ा हुआ है.

कोई दवा भी उपलब्ध नहींः अपर नगर आयुक्त दुर्गेश मिश्रा कहते हैं कि फिलहाल वहां पर एक फार्मासिस्ट और बेड की व्यवस्था कर दी गई है. डॉक्टर की डिमांड सीएमओ ने पूरी करने का आश्वासन दिया है. इसके अलावा नगर निगम अपने स्तर से संक्रामक रोगों से बचाव के लिए शहर को कई जोन में बांटकर एंटी लार्वा के छिड़काव से लेकर, फागिंग आदि पर जोर दे रहा है. जिससे इस बीमारी के रोकथाम पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित किया जा सके. अंग्रेजी शासन में बने इस भवन में कहीं-कहीं पानी टपक रहा है. जिसकी मरम्मत की तत्काल आवश्यकता है. साथ ही संक्रामक रोग चिकित्सालय में इलाज के लिए चिकित्सक की जरूरत है. यहां कोई दवा भी उपलब्ध नहीं है. शहर में डेंगू, मलेरिया जैसे कई संक्रामक रोग फैले हैं. लेकिन, यह अस्पताल इलाज करने में उपयुक्त नहीं है.

अस्पताल में तीन स्टाफ लेकिन काम नहींः कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए जब यहां टीका रखना शुरू हुआ तो संक्रामक रोग अस्पताल में शिविर लगने लगा. यहां कोवैक्सीन का टीका लगाया जाता था, जो फिलहाल अब बंद हो चुका है. बावजूद इसके यहां पर चिकित्सक की तैनाती नहीं होने से जिला अस्पताल की इमरजेंसी के ठीक सामने और मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के बगल में यह अस्पताल बेकार साबित हो रहा है. महापौर डॉक्टर मंगलेश श्रीवास्तव ने भी फिलहाल यहां का दौराकर चिकित्सक की तैनाती की गुजारिश सीएमओ से की है. अस्पताल में तीन स्टाफ मौजूदा समय में तैनात हैं. लेकिन डॉक्टर नहीं होने से अस्पताल पूरी तरह से बंद पड़ा है. यहां इलाज के लिए आने वाले डायरिया के मरीजों को भी जिला अस्पताल भेजा जा रहा है. जब इसकी स्थापना हुई थी तो यहां से मुख्य इलाज डायरिया के मरीजों को मिलता था. समय के साथ कुछ अन्य संक्रामक रोगों का भी यहां इलाज होने लगा. लेकिन मौजूदा समय में सब बंद है.

यह भी पढ़ें: Gorakhapur Nagar Nigam: कूड़े से बनेगा बायोगैस तो कचरे से तैयार होगा इंटरलॉकिंग ईंट

यह भी पढ़ें: गोरखपुर नगर निगम की अरबों की जमीन पर भू-माफिया और पार्षदों का कब्जा

गोरखपुर का संक्रामक रोग अस्पताल बदहाल

गोरखपुर: देश जब आजाद नहीं था और अंग्रेजों का शासन था, तब बीमारियों को लेकर तत्कालीन प्रशासन बड़ा ही जागरूक था. संक्रामक रोगों पर नियंत्रण के लिए तो उस दौरान बड़े कदम उठाए गए थे. इसी क्रम में गोरखपुर के जिला अस्पताल परिसर से सटा हुआ संक्रामक रोग अस्पताल बनाया गया था. 4 अप्रैल 1937 को तत्कालीन गोरखपुर कमिश्नर ने स्थानीय वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजसेवी विन्देश्वरि प्रसाद के नाम पर अस्पताल की स्थापना की थी.

विभागीय सूत्रों की माने तो कोरोना काल से यह संक्रामक रोग अस्पताल खुद संक्रमित हो गया है. यहां पर पिछले दो साल से न तो डॉक्टर की तैनाती हो पाई और न ही जरूरी संसाधन दिए गए. जिसकी वजह से संक्रामक रोगों के मरीज जिला अस्पताल और BRD मेडिकल कॉलेज में इलाज करने को लेकर निर्भर हो गए. जब भी डेंगू, मलेरिया या सर्दी जुकाम के मरीज शहर में ज्यादा बढ़ते हैं तो लोग इस अस्पताल में भी इलाज कराने के लिए आते हैं और निराश होकर लौटकर चले जाते हैं.

2 साल से कोई डॉक्टर नहींः बता दें कि नगर निगम की देखरेख में यह संक्रामक चिकित्सालय संचालित होता है. लेकिन डॉक्टर की पोस्टिंग सीएमओ ही यहां करते हैं. नगर निगम इस संक्रामक अस्पताल में डॉक्टर की तैनाती को लेकर इतना लापरवाह बना हुआ है कि वह पिछले डेढ़ से 2 साल में यहां पर डाक्टर तैनात नहीं कर पाया है. ईटीवी भारत ने जब इस संबंध में महापौर डॉक्टर मंगलेश श्रीवास्तव और नगर आयुक्त से सवाल किया तो मुख्य चिकित्सा अधिकारी से यहां डॉक्टर तैनात करने के लिए चिट्ठी पत्री दौड़ने लगी. फिलहाल अभी चिकित्सक की तैनाती यहां नहीं हो पाई है और अस्पताल भी पूरी तरह से जर्जर और अव्यवस्थित पड़ा हुआ है.

कोई दवा भी उपलब्ध नहींः अपर नगर आयुक्त दुर्गेश मिश्रा कहते हैं कि फिलहाल वहां पर एक फार्मासिस्ट और बेड की व्यवस्था कर दी गई है. डॉक्टर की डिमांड सीएमओ ने पूरी करने का आश्वासन दिया है. इसके अलावा नगर निगम अपने स्तर से संक्रामक रोगों से बचाव के लिए शहर को कई जोन में बांटकर एंटी लार्वा के छिड़काव से लेकर, फागिंग आदि पर जोर दे रहा है. जिससे इस बीमारी के रोकथाम पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित किया जा सके. अंग्रेजी शासन में बने इस भवन में कहीं-कहीं पानी टपक रहा है. जिसकी मरम्मत की तत्काल आवश्यकता है. साथ ही संक्रामक रोग चिकित्सालय में इलाज के लिए चिकित्सक की जरूरत है. यहां कोई दवा भी उपलब्ध नहीं है. शहर में डेंगू, मलेरिया जैसे कई संक्रामक रोग फैले हैं. लेकिन, यह अस्पताल इलाज करने में उपयुक्त नहीं है.

अस्पताल में तीन स्टाफ लेकिन काम नहींः कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए जब यहां टीका रखना शुरू हुआ तो संक्रामक रोग अस्पताल में शिविर लगने लगा. यहां कोवैक्सीन का टीका लगाया जाता था, जो फिलहाल अब बंद हो चुका है. बावजूद इसके यहां पर चिकित्सक की तैनाती नहीं होने से जिला अस्पताल की इमरजेंसी के ठीक सामने और मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के बगल में यह अस्पताल बेकार साबित हो रहा है. महापौर डॉक्टर मंगलेश श्रीवास्तव ने भी फिलहाल यहां का दौराकर चिकित्सक की तैनाती की गुजारिश सीएमओ से की है. अस्पताल में तीन स्टाफ मौजूदा समय में तैनात हैं. लेकिन डॉक्टर नहीं होने से अस्पताल पूरी तरह से बंद पड़ा है. यहां इलाज के लिए आने वाले डायरिया के मरीजों को भी जिला अस्पताल भेजा जा रहा है. जब इसकी स्थापना हुई थी तो यहां से मुख्य इलाज डायरिया के मरीजों को मिलता था. समय के साथ कुछ अन्य संक्रामक रोगों का भी यहां इलाज होने लगा. लेकिन मौजूदा समय में सब बंद है.

यह भी पढ़ें: Gorakhapur Nagar Nigam: कूड़े से बनेगा बायोगैस तो कचरे से तैयार होगा इंटरलॉकिंग ईंट

यह भी पढ़ें: गोरखपुर नगर निगम की अरबों की जमीन पर भू-माफिया और पार्षदों का कब्जा

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.