गोरखपुर: 25 मार्च दिन बुधवार से वासंतिक नवरात्र की शुरुआत हो रही है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से लेकर नवमी तक जो मां दुर्गा का पवित्र काल है, उसे ही वासंती नवरात्र कहते हैं. इस नवरात्र में कलश स्थापना का भी विशेष महत्व है, जिसे 'मत्स्य पुराण' के अनुसार दिन के समय ही स्थापित किया जाना चाहिए. रात्रि काल में कलश स्थापना सर्वथा वर्जित है. दिन के समय भी इसका समय निर्धारित है. नियम और धर्म से किए गए पूजन-पाठ से व्रती और श्रद्धालु को विशेष लाभ प्राप्त होता है.
नवरात्र की नवमी तिथि को होने वाले हवन से वातावरण भी पूरी तरह शुद्ध हो जाता है. गोरखपुर के जाने-माने विद्वान पंडित शरद चंद्र मिश्रा का कहना है कि यह नवरात्र लोगों के साथ देश पर आने वाले संकट को दूर करने वाला होगा. 31 मार्च के बाद से ही असर दिखने लगेगा और 28 अप्रैल के बाद हालात में और भी सुधार होगा. साथ ही कोरोना जैसे संक्रमण से बचाव के लिए शासन के जारी दिशा निर्देश का पालन व्रतियों, श्रद्धालुओं और पंडितों को भी करना चाहिए.
उन्होंने बताया कि नवरात्र के साथ ही हिंदू नव वर्ष भी प्रारंभ हो जाता है, जिसका आरंभ 'पद्म सिंहासन' योग में हो रहा है. यह योग व्रती को पराक्रम और ऐश्वर्य की प्राप्ति कराने वाला है. उन्होंने कहा कि नवरात्र में कलश स्थापना का जो शुभ मुहूर्त है वह सूर्योदय 5:57 से 3:51 मिनट तक किसी भी समय किया जा सकता है. परंतु सर्वोत्तम समय सूर्योदय 5:57 से 6:53 मिनट का है तो फिर 11:26 से 12:40 भी महत्वपूर्ण समय है.
इस दौरान महानवमी 2 अप्रैल दिन गुरुवार को है. इस दिन सूर्योदय 5:51 और नवमी तिथि का समय रात्रि 8:47 तक है. इस दिन सिद्धि नामक योग भी है. व्रत का समापन और हवन आदि कार्य इसी दिन होगा.
नवरात्र में कुवारी कन्या के पूजन का भी विधान है. यह मां के प्रत्यक्ष विग्रह हैं, जिनका स्वरूप नवरात्र के 9 दिनों में विभिन्न रूपों में भी दिखाई देता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवती दुर्गा की समस्त पूजा हो जाने के बाद आरती के पहले कुवारी पूजन करना चाहिए. तभी व्रतियों को सही फल की प्राप्ति और पूजन का महत्व तय होता है. मां भगवती को लाल पुष्प ज्यादा पसंद हैं, इसलिए प्रयास करना चाहिए की नवरात्र के पूजन में लाल पुष्प का प्रयोग अधिकतम हो.