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मन में है श्रद्धा का भाव, पीढ़ियों से बनाते आ रहे रावण के पुतले

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक मुस्लिम परिवार गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल कई सालों से पेश करता आ रहा है. शारदीय नवरात्र के समय यह परिवार रावण का पुतला बनाता है. इस परिवार के सदस्य इस काम को कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं.

रावण का पुतला बना रहा मुस्लिम परिवार
रावण का पुतला बना रहा मुस्लिम परिवार
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Published : Oct 23, 2020, 11:51 PM IST

गोरखपुर: शारदीय नवरात्र में विजयदशमी पर्व की तैयारी में जिले का एक मुस्लिम परिवार सामाजिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश करता है. तीन पीढ़ियों से यह परिवार रावण का पुतला बनाता चला आ रहा है. इनके बनाए पुतले शहर में होने वाली सभी प्रमुख रामलीला में मुख्य आकर्षण होते हैं.

इस वर्ष कोरोना की महामारी के बीच आयोजित हुए रामलीला समारोह के लिए भी यह परिवार शासन की गाइडलाइन के अनुसार रावण के पुतले बना रहा है. सबसे खास बात यह है कि इन पुतलों का निर्माण यह परिवार अपनी कमाई के लिए नहीं, बल्कि आस्था के चलते करता है. इसके बदले पारिश्रमिक के रूप में इन्हें जो भी मिलता है, वह उन्हें सहर्ष स्वीकार होता है.

तीन पीढ़ियों से रावण का पुतला बना रहा है मुन्नू पेंटर का परिवार
शहर के बेनीगंज इलाके में मुन्नू का परिवार कई पीढ़ियों से रह रहा है. वर्तमान में मुन्नू पेंटर और उनका बेटा अपने परिवार की इस परंपरा को निभा रहे हैं. इनके पास पुतला बनाने के लिए कोई सुरक्षित और अस्थाई जगह नहीं है. यहां तक कि इनके पास खुद के रहने के लिए कोई अच्छा ठिकाना नहीं है. आर्थिक रूप से बेहद कमजोर यह परिवार अपनी भावना को बांस की फट्टियों और रंग-बिरंगे कागजों से आकार देकर रावण का पुतला बनाता है, वह अद्भुत होता है. इस काम में इनके परिवार के छोटे-बड़े बच्चे भी हाथ बंटाते हैं.

रावण का पुतला बना रहा मुस्लिम परिवार

इस वर्ष तो यह 7 से 15 फुट का ही रावण बना रहे हैं, लेकिन इन्हें रावण के 40 फीट तक के पुतले बनाने का हुनर मालूम है. मुन्नू पेंटर कहते हैं कि उनके हाथों रावण, मेघनाथ, कुंभकरण सबके पुतले बनाए जाते थे, लेकिन अब सिर्फ रावण की डिमांड रह गई है, जिसे वह पूरा करते हैं.

आर्थिक लाभ नहीं, आस्था से बनाते हैं पुतले
इनके हुनर और व्यवहार की तारीफ रामलीला आयोजन समिति से जुड़े लोग तो करते ही हैं, साथ ही मोहल्ले के लोग भी जमकर प्रशंसा करते हैं. लोग कहते हैं कि यह परिवार हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. सभी धर्मों की कद्र करने वाला है. खास बात यह है कि पास पड़ोस के लोगों से इनका व्यवहार भी बहुत बढ़िया है. मुन्नू पेंटर से पहले उनके अब्बा मरहूम समीउल्लाह और उनके दादा जहूर पूरी शिद्दत से पुतले बनाते थे. हालांकि, यह परिवार गुड़िया बनाया करता था और जब रामलीला में रावण के पुतले की डिमांड हुई तो इन्होंने पुतलों का निर्माण आरंभ कर दिया. इसके बाद शहर में आयोजित होने वाली हर रामलीला के लिए रावण का पुतला इन्हीं के हाथों बनाया जाता है.

गोरखपुर: शारदीय नवरात्र में विजयदशमी पर्व की तैयारी में जिले का एक मुस्लिम परिवार सामाजिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश करता है. तीन पीढ़ियों से यह परिवार रावण का पुतला बनाता चला आ रहा है. इनके बनाए पुतले शहर में होने वाली सभी प्रमुख रामलीला में मुख्य आकर्षण होते हैं.

इस वर्ष कोरोना की महामारी के बीच आयोजित हुए रामलीला समारोह के लिए भी यह परिवार शासन की गाइडलाइन के अनुसार रावण के पुतले बना रहा है. सबसे खास बात यह है कि इन पुतलों का निर्माण यह परिवार अपनी कमाई के लिए नहीं, बल्कि आस्था के चलते करता है. इसके बदले पारिश्रमिक के रूप में इन्हें जो भी मिलता है, वह उन्हें सहर्ष स्वीकार होता है.

तीन पीढ़ियों से रावण का पुतला बना रहा है मुन्नू पेंटर का परिवार
शहर के बेनीगंज इलाके में मुन्नू का परिवार कई पीढ़ियों से रह रहा है. वर्तमान में मुन्नू पेंटर और उनका बेटा अपने परिवार की इस परंपरा को निभा रहे हैं. इनके पास पुतला बनाने के लिए कोई सुरक्षित और अस्थाई जगह नहीं है. यहां तक कि इनके पास खुद के रहने के लिए कोई अच्छा ठिकाना नहीं है. आर्थिक रूप से बेहद कमजोर यह परिवार अपनी भावना को बांस की फट्टियों और रंग-बिरंगे कागजों से आकार देकर रावण का पुतला बनाता है, वह अद्भुत होता है. इस काम में इनके परिवार के छोटे-बड़े बच्चे भी हाथ बंटाते हैं.

रावण का पुतला बना रहा मुस्लिम परिवार

इस वर्ष तो यह 7 से 15 फुट का ही रावण बना रहे हैं, लेकिन इन्हें रावण के 40 फीट तक के पुतले बनाने का हुनर मालूम है. मुन्नू पेंटर कहते हैं कि उनके हाथों रावण, मेघनाथ, कुंभकरण सबके पुतले बनाए जाते थे, लेकिन अब सिर्फ रावण की डिमांड रह गई है, जिसे वह पूरा करते हैं.

आर्थिक लाभ नहीं, आस्था से बनाते हैं पुतले
इनके हुनर और व्यवहार की तारीफ रामलीला आयोजन समिति से जुड़े लोग तो करते ही हैं, साथ ही मोहल्ले के लोग भी जमकर प्रशंसा करते हैं. लोग कहते हैं कि यह परिवार हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. सभी धर्मों की कद्र करने वाला है. खास बात यह है कि पास पड़ोस के लोगों से इनका व्यवहार भी बहुत बढ़िया है. मुन्नू पेंटर से पहले उनके अब्बा मरहूम समीउल्लाह और उनके दादा जहूर पूरी शिद्दत से पुतले बनाते थे. हालांकि, यह परिवार गुड़िया बनाया करता था और जब रामलीला में रावण के पुतले की डिमांड हुई तो इन्होंने पुतलों का निर्माण आरंभ कर दिया. इसके बाद शहर में आयोजित होने वाली हर रामलीला के लिए रावण का पुतला इन्हीं के हाथों बनाया जाता है.

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