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गोरखपुर में टीबी अभियान को लग रहा झटका, कई मरीज बीच में ही छोड़ दे रहे इलाज

गोरखपुर में टीबी अभियान को झटका लग सकता है. कई मरीज बीच में ही इलाज छोड़ दे रहे हैं, इससे अभियान को झटका लग रहा है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 21, 2023, 9:50 AM IST

गोरखपुर में कई टीबी के मरीज बीच में ही छोड़ रहे रहे इलाज.

गोरखपुर: पीएम मोदी ने वर्ष 2025 तक भारत को टीबी की बीमारी से मुक्त करने का लक्ष्य तय किया है. इसके लिए स्वास्थ्य महकमा प्रयास भी खूब कर रहा है लेकिन गोरखपुर में जो स्थिति बनी है वह इस अभियान पर सवाल खड़ा कर रही है. जिले में मौजूदा समय में टीबी मरीजों की संख्या 9136 है जिसमें इलाज वर्तमान में 8465 मरीजों का ही चल रहा है. करीब 800 मरीज ऐसे हैं जो बीच- बीच में दवा छोड़ दे रहे हैं. यह उनके लिए एक बड़ी लापरवाही है. ऐसी लापरवाही जानलेवा भी हो सकती है. इसमें एमडीआर और एक्सडीआर दो श्रेणी के मरीज होते हैं जिसके मुताबिक इलाज इनका किया जा रहा है.

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लापरवाही कई मरीजों के लिए बन रही घातक.

सरकार से इन्हे प्रोत्साहन भत्ता भी ₹500 प्रति माह का मिलता है. जिले में अब तक 10 करोड़ से ऊपर की धनराशि इस मद में वितरित भी की जा चुकी है लेकिन बचाव और सुरक्षा के तमाम उपायों के बाद भी मरीजों की संख्या क्षय रोग नियंत्रण से जुड़े लोग हों या फिर प्रशासन में बैठे लोग, उनके माथे पर चिंता की लकीर लाती ही है.

जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दुबे कहते हैं कि टीबी के मरीजों का बीच में दवा छोड़ने का जो मामला आया है, उसमें यह पता चला कि कुछ लोग खुद को स्वस्थ महसूस कर ऐसा करते हुए ऐसा कर रहे हैं, जबकि इसका कोर्स पूरा करना होता है तभी टीबी जड़ से समाप्त होती है. यह ऐसी बीमारी है जिसने मानव सभ्यता के साथ जन्म लिया था. उन्होंने कहा कि जिसको दो सप्ताह से अधिक खांसी आए, रात में बुखार या पसीने के साथ बुखार आए, अचानक वजन घटने लगे, भूख न लगना और अत्यधिक कमजोरी का महसूस होना भी टीबी के प्रमुख लक्षणों में से आता है.

वहीं, बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर अश्वनी मिश्रा टीबी एवं चेस्ट रोग विशेषज्ञ कहते हैं कि, एक्सडीआर (एक्सटेंसिव ड्रग रेसिस्टेंट टीबी) की श्रेणी में पहुंचने पर मरीजों के फेफड़े खोखले हो जाते हैं. इसके बाद टीबी की कोई भी दवा मरीज पर असर नहीं करती. यह फेफड़े को इतने कमजोर कर देती हैं कि उन्हें सांस लेने में भी परेशानी होने लगती है. सीएमओ ने कहा कि 370 मरीज ऐसे हैं जो एक्सडीआर श्रेणी में चिह्नित किए गए हैं. एक एक्सडीआर मरीज 20 लोगों को संक्रमित कर सकता है क्योंकि तीसरी श्रेणी में पहुंचने के बाद टीबी के बैक्टीरिया बेहद खतरनाक हो जाते हैं. उन पर दवा का असर कम होता है. ऐसे में अगर एक्सडीआर मरीज से बैक्टीरिया दूसरे के शरीर में गया तो, उसी तरह उनमें संक्रमण का असर भी शरीर में देखने को मिलता है. फिर भी प्रयास संतोषजनक चल रहा है और उम्मीद की जा रही है कि, प्रधानमंत्री के तय किए गए लक्ष्य वर्ष 2025 तक समाज को टीबी के रोग से मुक्त बनाने का प्रयास सफल होगा,

सीएमओ डॉ आशुतोष दुबे ने बताया कि जिले में मौजूदा समय में 200 से अधिक मरीज फॉलोअप में हैं. पिपराइच की रहने वाली 25 वर्षीय काल्पनिक नाम अर्चना को काफी दिनों से टीबी की शिकायत थी. इलाज के दौरान में टीबी दवाओं के सेवन की सलाह दी गई, मगर उन्होंने बीच में ही दवा छोड़ दी. अब उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई है. वहीं, बेलघाट की रहने वाले 25 वर्षीय काल्पनिक नाम रमेश विश्वकर्मा को टीबी की शिकायत थी उन्होंने डॉक्टर से संपर्क किया तो टीबी की दवा लेने की सलाह दी गई.

उन्होंने भी कुछ दिन तक दवा ली और फिर छोड़ दिया है जिससे उनकी भी तबियत बिगड़ गई. यह फॉलोअप में चल रहे हैं और इन्हें स्वास्थ्य महकमा उचित इलाज देने में जुटा है. पिछले 5 वर्ष के आंकड़ों की बात करें तो 2018 में 5998 का आंकड़ा सरकारी अस्पताल का है. प्राइवेट अस्पताल में भी 779 मरीज थे. 2019 में सरकारी अस्पताल में 6964 और प्राइवेट में 4499 मरीज, 2020 में 4707 संस्थागत जब की प्राइवेट में 3960, वर्ष 2021 में 6589 संस्थागत जबकि 4751 प्राइवेट अस्पताल मे और 2022 में 8201 संस्थागत जबकि प्राइवेट अस्पताल में 5185 मरीज का आंकड़ा सामने आया था.

ये भी पढे़ंः गोरखपुर में टीबी रोगियों की तलाश के लिए गठित की गई 215 टीमें

ये भी पढ़ेंः अस्पताल से गायब रहते हैं गोरखपुर के 52 डॉक्टर और 205 पैरामेडिकल स्टॉफ, विशेष जांच में पकड़े गए सभी

गोरखपुर में कई टीबी के मरीज बीच में ही छोड़ रहे रहे इलाज.

गोरखपुर: पीएम मोदी ने वर्ष 2025 तक भारत को टीबी की बीमारी से मुक्त करने का लक्ष्य तय किया है. इसके लिए स्वास्थ्य महकमा प्रयास भी खूब कर रहा है लेकिन गोरखपुर में जो स्थिति बनी है वह इस अभियान पर सवाल खड़ा कर रही है. जिले में मौजूदा समय में टीबी मरीजों की संख्या 9136 है जिसमें इलाज वर्तमान में 8465 मरीजों का ही चल रहा है. करीब 800 मरीज ऐसे हैं जो बीच- बीच में दवा छोड़ दे रहे हैं. यह उनके लिए एक बड़ी लापरवाही है. ऐसी लापरवाही जानलेवा भी हो सकती है. इसमें एमडीआर और एक्सडीआर दो श्रेणी के मरीज होते हैं जिसके मुताबिक इलाज इनका किया जा रहा है.

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लापरवाही कई मरीजों के लिए बन रही घातक.

सरकार से इन्हे प्रोत्साहन भत्ता भी ₹500 प्रति माह का मिलता है. जिले में अब तक 10 करोड़ से ऊपर की धनराशि इस मद में वितरित भी की जा चुकी है लेकिन बचाव और सुरक्षा के तमाम उपायों के बाद भी मरीजों की संख्या क्षय रोग नियंत्रण से जुड़े लोग हों या फिर प्रशासन में बैठे लोग, उनके माथे पर चिंता की लकीर लाती ही है.

जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दुबे कहते हैं कि टीबी के मरीजों का बीच में दवा छोड़ने का जो मामला आया है, उसमें यह पता चला कि कुछ लोग खुद को स्वस्थ महसूस कर ऐसा करते हुए ऐसा कर रहे हैं, जबकि इसका कोर्स पूरा करना होता है तभी टीबी जड़ से समाप्त होती है. यह ऐसी बीमारी है जिसने मानव सभ्यता के साथ जन्म लिया था. उन्होंने कहा कि जिसको दो सप्ताह से अधिक खांसी आए, रात में बुखार या पसीने के साथ बुखार आए, अचानक वजन घटने लगे, भूख न लगना और अत्यधिक कमजोरी का महसूस होना भी टीबी के प्रमुख लक्षणों में से आता है.

वहीं, बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर अश्वनी मिश्रा टीबी एवं चेस्ट रोग विशेषज्ञ कहते हैं कि, एक्सडीआर (एक्सटेंसिव ड्रग रेसिस्टेंट टीबी) की श्रेणी में पहुंचने पर मरीजों के फेफड़े खोखले हो जाते हैं. इसके बाद टीबी की कोई भी दवा मरीज पर असर नहीं करती. यह फेफड़े को इतने कमजोर कर देती हैं कि उन्हें सांस लेने में भी परेशानी होने लगती है. सीएमओ ने कहा कि 370 मरीज ऐसे हैं जो एक्सडीआर श्रेणी में चिह्नित किए गए हैं. एक एक्सडीआर मरीज 20 लोगों को संक्रमित कर सकता है क्योंकि तीसरी श्रेणी में पहुंचने के बाद टीबी के बैक्टीरिया बेहद खतरनाक हो जाते हैं. उन पर दवा का असर कम होता है. ऐसे में अगर एक्सडीआर मरीज से बैक्टीरिया दूसरे के शरीर में गया तो, उसी तरह उनमें संक्रमण का असर भी शरीर में देखने को मिलता है. फिर भी प्रयास संतोषजनक चल रहा है और उम्मीद की जा रही है कि, प्रधानमंत्री के तय किए गए लक्ष्य वर्ष 2025 तक समाज को टीबी के रोग से मुक्त बनाने का प्रयास सफल होगा,

सीएमओ डॉ आशुतोष दुबे ने बताया कि जिले में मौजूदा समय में 200 से अधिक मरीज फॉलोअप में हैं. पिपराइच की रहने वाली 25 वर्षीय काल्पनिक नाम अर्चना को काफी दिनों से टीबी की शिकायत थी. इलाज के दौरान में टीबी दवाओं के सेवन की सलाह दी गई, मगर उन्होंने बीच में ही दवा छोड़ दी. अब उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई है. वहीं, बेलघाट की रहने वाले 25 वर्षीय काल्पनिक नाम रमेश विश्वकर्मा को टीबी की शिकायत थी उन्होंने डॉक्टर से संपर्क किया तो टीबी की दवा लेने की सलाह दी गई.

उन्होंने भी कुछ दिन तक दवा ली और फिर छोड़ दिया है जिससे उनकी भी तबियत बिगड़ गई. यह फॉलोअप में चल रहे हैं और इन्हें स्वास्थ्य महकमा उचित इलाज देने में जुटा है. पिछले 5 वर्ष के आंकड़ों की बात करें तो 2018 में 5998 का आंकड़ा सरकारी अस्पताल का है. प्राइवेट अस्पताल में भी 779 मरीज थे. 2019 में सरकारी अस्पताल में 6964 और प्राइवेट में 4499 मरीज, 2020 में 4707 संस्थागत जब की प्राइवेट में 3960, वर्ष 2021 में 6589 संस्थागत जबकि 4751 प्राइवेट अस्पताल मे और 2022 में 8201 संस्थागत जबकि प्राइवेट अस्पताल में 5185 मरीज का आंकड़ा सामने आया था.

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