गोरखपुर: सावन के महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने और उनकी पूजा पाठ करने के लिए मंदिरों में भीड़ उमड़ रही है. ऐसे में आपको बताते हैं नीलकंठ महादेव के बारे में. जिले से 30 किलोमीटर दूर सरया तिवारी गांव का यह शिव मंदिर मुगलकालीन है. इन्हे झारखंडी नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है. शिवलिंग की अजब और चमत्कारिक कहानी सुनकर कोई भी आश्चर्य करेगा.
इस शिवलिंग को महमूद गजनवी ने तोड़ने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह हार गया. जब वह उत्तर प्रदेश में दाखिल हुआ तो यहां के मंदिरों को देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थीं. मंदिर तोड़ने और लूटने के क्रम में उसे कई जगहों पर चमत्कार का भी सामना करना पड़ा. ऐसी ही एक जगह थी सरया तिवारी, जहां झारखंडी महादेव के शिवलिंग पर जब उसकी नजर पड़ी और उसे पता चला कि यह बहुत ही प्राचीन है, उसने मंदिर को ध्वस्त कर शिवलिंग को भी तोड़ने का प्रयास किया.
मध्यकालीन इतिहास के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ लक्ष्मी शंकर मिश्रा कहते हैं कि जनश्रुति और मान्यताओं के साथ शिवलिंग पर उभरी आकृति को देखने के बाद ऐसी घटना का घटित होने की उम्मीद की जाती है. कहा जाता है कि शिवलिंग पर जहां भी कुदाल आदि चलाई गई तो वहां से खून की धार फूट पड़ी. फिर उसने उस शिवलिंग को भूमि पर से उखाड़ने का प्रयास किया लेकिन वह शिवलिंग भूमि में अंदर तक न मालूम कहां तक था. वह उस प्रयास में भी असफल हो गया तब उसने उस शिवलिंग पर अरबी में 'कलमा' लिखवाया दिया ताकि हिन्दू इस शिवलिंग की पूजा करना छोड़ दें लेकिन वर्तमान में इस शिवलिंग की हिन्दू सहित मुस्लिम भी पूजा करते हैं, क्योंकि इस पर कलमा लिखा हुआ है.
इस चमत्कारिक शिवलिंग पर 'लाइलाहइल्लाह मोहम्मद उर रसूलउल्लाह' लिखा है. महमूद गजनवी ने बगदाद के खलीफा के आदेशानुसार जब भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण करना शुरू किया तो यहां भी पहुंचा. उसे इस शिवलिंग के नीचे खजाना छिपे होने की सूचना मिली थी जिसके क्रम में उसने ही ध्वस्त कराया था. इस मंदिर की मान्यता है कि इसके ऊपर छत नहीं है. यह शिवलिंग खुले आसमान में लोगों के द्वारा पूजा जाता है. जब भी इस पर छत लगाने का प्रयास किया गया छत गिर गई. गांव के प्रधान प्रतिनिधि धरणीधर राम त्रिपाठी और गजेंद्र राम त्रिपाठी कहते हैं कि मंदिर में पहले शिवलिंग के अलावा कुछ नहीं था लेकिन धीरे-धीरे लोगों की आस्था के साथ इसकी मान्यता भी चारों तरफ फैली और लोग पूजन अर्चन के लिए पहुंचने लगे. यह विशाल भव्य रूप तो नहीं ले सका लेकिन विशाल श्रद्धालुओं और अपने भक्तों को अपनी तरफ खींचने में कामयाब रहता है. महाशिवरात्रि और सावन के महीने में तो रात से ही भक्त यहां आने लगते हैं और हर हर महादेव के नारे से मंदिर गुंजायमान हो जाता है जो श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं वह इसकी गाथा और बखान गाने से नहीं चूकते.
वर्तमान समय में इस शिवलिंग की हिन्दू सहित मुस्लिम भी पूजा करते हैं क्योंकि इस पर कलमा लिखा हुआ है. यह मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बना हुआ है. यहां के स्थानीय मुस्लिमों के लिए अब यह शिवलिंग पवित्र है. रमजान में मुस्लिम भाई भी यहां पर आकर अल्लाह की इबादत करते हैं. इस मंदिर के शिवलिंग को नीलकंठ महादेव कहते हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार यह शिवलिंग हजारों वर्षों पुराना है और यह स्वयंभू है. स्वयंभू अर्थात इसे किसी ने स्थापित नहीं किया है और यह स्वयं ही प्रकट हुआ है. यहां दूर-दूर से लोग मन्नत मांगने आते हैं. यहां एक पवित्र जलाशय भी है जिसे 'पोखर' कहा जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर के बगल में स्थित पोखरे के जल को छूने से कुष्ठ रोग से पीड़ित राजा ठीक हो गए थे तभी से अपने चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिए लोग यहां पर 5 मंगलवार और रविवार को स्नान करते हैं.
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