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1933 में महात्मा गांधी ने गीताप्रेस को लिखा था पत्र, जानें उससे जुड़ी बातें - आध्यात्म से जुड़ने के लिए गीताप्रेस की स्थापना

गीताप्रेस गोरखपुर का धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन और प्रचार-प्रसार में बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है. साल 1933 में गीताप्रेस के कार्यों के से अभिभूत होकर महात्मा गांधी ने भी प्रेस के लिए एक पत्र लिखा था, जो आज भी गीता प्रेस में संरक्षित है.

गांधी जी का पत्र
गांधी जी का पत्र
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Published : Mar 18, 2021, 12:28 PM IST

Updated : Mar 18, 2021, 2:21 PM IST

गोरखपुरः 1933 में जहां जंगे आजादी के दीवाने अपने खून से सींचकर देश को आजादी दिलाने का कार्य कर रहे थे, वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहिंसा वादी नीतियों से देश में सुख, समृद्धि और धर्म के प्रचार प्रसार में लगे हुए थे. गीताप्रेस प्रकाशन परिवार धर्म, संस्कृति और अध्यात्म से जहां लोगों को जोड़ने का कार्य कर रहा था तो वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गीता प्रेस प्रकाशन परिवार के इस कार्यों की सराहना करते हुए सन 1933 में पत्र भेजकर गीता प्रेस प्रकाशन को उनके कार्य के लिए साधुवाद दिया था और कहा था कि यह कार्य आगे चलकर मील का पत्थर साबित होगा.

1933 में महात्मा गांधी ने गीताप्रेस को लिखा था पत्र.

आध्यात्म से जुड़ने के लिए गीताप्रेस की स्थापना
गीताप्रेस गोरखपुर का इतिहास के प्रचार प्रसार में बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है. जहां सन 1933 में देश को आजाद कराने के लिए आजादी के दीवाने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम रहे थे. हर तरफ ब्रिटिश हुकूमत के आक्रांताओ द्वारा खून खराबा और देश को खंडित करने का कार्य किया जा रहा था, वहीं गीता प्रेस के संस्थापक सदस्य रहे भाई जी स्व. हनुमान प्रसाद पोद्दार ने देश में आपसी समरसता, भाईचारा, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म से जुड़ने के लिए गीता प्रेस की स्थापना की और तेजी के साथ लोगों को गीता प्रेस प्रकाशन की विचारधारा से जोड़ने का कार्य किया.

गांधी जी ने गुजराती में लिखा था पत्र
गीताप्रेस प्रकाशन के इस कार्य को देखते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 8 अक्टूबर 1933 में गीता प्रेस प्रकाशन को पत्र लिखकर उनके इस कार्य के लिए साधुवाद दिया और कहा कि यह कार्य देश में एक अलग क्रांति के साथ मील का पत्थर साबित होगा. पत्र गुजराती में था और इस पत्र में वह संदेश लिखा था, जो लोगों को गीता प्रेस प्रकाशन से सीधे-सीधे जोड़ने का कार्य कर रहा था. इस पत्र को तत्कालीन गीता प्रेस प्रकाशन विभाग द्वारा संरक्षित कर आने वाली पीढ़ी को गांधी जी के विचारों से रूबरू कराने के लिए आज भी गीता प्रेस में रखा गया है. इस अमूल्य धरोहर को यहां आने वाले दर्शक देखते और पढ़ते हैं.

आज भी संरक्षित है अमूल्य धरोहर
पत्र को संरक्षित करने में अपनी अहम भूमिका दे रहे अनिरुद्ध यादव ने बताया कि 8 अक्टूबर 1933 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गीता प्रेस प्रकाशन द्वारा धर्म संस्कृति के प्रचार-प्रसार को देखते हुए इस कार्य से खुश होकर संस्थापक सदस्य महावीर प्रसाद पोद्दार और हनुमान प्रसाद पोद्दार के माध्यम से गीता प्रेस प्रकाशन को यह पत्र सौंपा था. गीता प्रेस प्रकाशन ने इस अमूल्य धरोहर को संरक्षित रखते हुए यहां आने वाले दर्शकों के लिए आज भी इस पत्र को शीशे के जार में पैक कर रखा हुआ है.

यह भी पढ़ेंः-परिणय सूत्र में एक साथ बंधेंगे 3500 जोड़े, सीएम योगी देंगे आशीर्वाद

महात्मा गांधी का गीता प्रेस से जुड़ाव
वहीं गीता प्रेस प्रकाशन प्रभारी लालमणि तिवारी बताते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जुड़ाव शुरू से गीता प्रेस परिवार से रहा है. धर्म, संस्कृति के प्रचार प्रसार के साथ आपसी समरसता बनाए रखने के लिए गीता प्रेस परिवार लगातार कार्यकर्ता रहा है और इसी कार्य को देखते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 8 अक्टूबर 1933 में गीता प्रेस प्रकाशन के संस्थापक सदस्य महावीर प्रसाद पोद्दार और भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार को गुजराती में अपने हाथों से पत्र लिखकर दिया था. यहां आने वाले लोग उस पत्र को पढ़ते हैं देखते हैं और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से अभिभूत होते हैं.

गोरखपुरः 1933 में जहां जंगे आजादी के दीवाने अपने खून से सींचकर देश को आजादी दिलाने का कार्य कर रहे थे, वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहिंसा वादी नीतियों से देश में सुख, समृद्धि और धर्म के प्रचार प्रसार में लगे हुए थे. गीताप्रेस प्रकाशन परिवार धर्म, संस्कृति और अध्यात्म से जहां लोगों को जोड़ने का कार्य कर रहा था तो वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गीता प्रेस प्रकाशन परिवार के इस कार्यों की सराहना करते हुए सन 1933 में पत्र भेजकर गीता प्रेस प्रकाशन को उनके कार्य के लिए साधुवाद दिया था और कहा था कि यह कार्य आगे चलकर मील का पत्थर साबित होगा.

1933 में महात्मा गांधी ने गीताप्रेस को लिखा था पत्र.

आध्यात्म से जुड़ने के लिए गीताप्रेस की स्थापना
गीताप्रेस गोरखपुर का इतिहास के प्रचार प्रसार में बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है. जहां सन 1933 में देश को आजाद कराने के लिए आजादी के दीवाने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम रहे थे. हर तरफ ब्रिटिश हुकूमत के आक्रांताओ द्वारा खून खराबा और देश को खंडित करने का कार्य किया जा रहा था, वहीं गीता प्रेस के संस्थापक सदस्य रहे भाई जी स्व. हनुमान प्रसाद पोद्दार ने देश में आपसी समरसता, भाईचारा, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म से जुड़ने के लिए गीता प्रेस की स्थापना की और तेजी के साथ लोगों को गीता प्रेस प्रकाशन की विचारधारा से जोड़ने का कार्य किया.

गांधी जी ने गुजराती में लिखा था पत्र
गीताप्रेस प्रकाशन के इस कार्य को देखते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 8 अक्टूबर 1933 में गीता प्रेस प्रकाशन को पत्र लिखकर उनके इस कार्य के लिए साधुवाद दिया और कहा कि यह कार्य देश में एक अलग क्रांति के साथ मील का पत्थर साबित होगा. पत्र गुजराती में था और इस पत्र में वह संदेश लिखा था, जो लोगों को गीता प्रेस प्रकाशन से सीधे-सीधे जोड़ने का कार्य कर रहा था. इस पत्र को तत्कालीन गीता प्रेस प्रकाशन विभाग द्वारा संरक्षित कर आने वाली पीढ़ी को गांधी जी के विचारों से रूबरू कराने के लिए आज भी गीता प्रेस में रखा गया है. इस अमूल्य धरोहर को यहां आने वाले दर्शक देखते और पढ़ते हैं.

आज भी संरक्षित है अमूल्य धरोहर
पत्र को संरक्षित करने में अपनी अहम भूमिका दे रहे अनिरुद्ध यादव ने बताया कि 8 अक्टूबर 1933 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गीता प्रेस प्रकाशन द्वारा धर्म संस्कृति के प्रचार-प्रसार को देखते हुए इस कार्य से खुश होकर संस्थापक सदस्य महावीर प्रसाद पोद्दार और हनुमान प्रसाद पोद्दार के माध्यम से गीता प्रेस प्रकाशन को यह पत्र सौंपा था. गीता प्रेस प्रकाशन ने इस अमूल्य धरोहर को संरक्षित रखते हुए यहां आने वाले दर्शकों के लिए आज भी इस पत्र को शीशे के जार में पैक कर रखा हुआ है.

यह भी पढ़ेंः-परिणय सूत्र में एक साथ बंधेंगे 3500 जोड़े, सीएम योगी देंगे आशीर्वाद

महात्मा गांधी का गीता प्रेस से जुड़ाव
वहीं गीता प्रेस प्रकाशन प्रभारी लालमणि तिवारी बताते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जुड़ाव शुरू से गीता प्रेस परिवार से रहा है. धर्म, संस्कृति के प्रचार प्रसार के साथ आपसी समरसता बनाए रखने के लिए गीता प्रेस परिवार लगातार कार्यकर्ता रहा है और इसी कार्य को देखते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 8 अक्टूबर 1933 में गीता प्रेस प्रकाशन के संस्थापक सदस्य महावीर प्रसाद पोद्दार और भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार को गुजराती में अपने हाथों से पत्र लिखकर दिया था. यहां आने वाले लोग उस पत्र को पढ़ते हैं देखते हैं और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से अभिभूत होते हैं.

Last Updated : Mar 18, 2021, 2:21 PM IST
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