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गोरखपुर: कबीरदास के 'चरण पादुका मंदिर' पर अतिक्रमण, अनदेखी के चलते मिटने को है इतिहास

पूरे देश में आज (14 जून) महान संत कबीरदास जयंती मनाया जा रहा है. इस मौके पर ईटीवी भारत ने गोरखपुर के ऐसे मंदिर का जिक्र किया है, जिसे जीर्णोद्धार होने की जरूरत है. आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में...

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चरण पादुका मंदिर
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Published : Jun 14, 2022, 10:47 AM IST

Updated : Jun 14, 2022, 11:04 AM IST

गोरखपुर: महान संत कबीरदास की आज (14 जून) जयंती है. जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को कबीर दास का जन्म वाराणसी में हुआ था. गोरखपुर में कबीरदास के मंदिर की दशा बेहद चिंतनीय है. मंदिर की जमीन पर दबंगों ने अतिक्रमण कर रखा है. मंदिर को विकसित करने पर स्थानीय जिला प्रशासन कुछ करता नजर आ रहा है. वहीं, अनुयायी और संत भी मंदिर के विकास को लेकर कोई गंभीर पहल करते नहीं दिख रहे हैं. ऐसे ऐतिहासिक महत्व वाला यह मंदिर पहचान खोता नजर आ रहा है.

गोरखपुर का चरण पादुका मंदिर: गोरखपुर के इस मंदिर को "चरण पादुका मंदिर" के नाम से भी जाना जाता है. कबीर से जुड़े इस ऐतिहासिक महत्व की धरोहर को न तो पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है और न ही यह लोगों की जानकारी का ही विषय बन पा रहा है.

"आईने गोरखपुर" में मंदिर का उल्लेख: गोरखपुर के इतिहास को बताने वाली पुस्तक 'आईने गोरखपुर' में इस बात का साफ उल्लेख है कि कबीर दास जी अपनी मगहर यात्रा के दौरान गोरखपुर में रात्रि प्रवास किया था. ऐसी मान्यता है कि कबीर के आध्यात्मिक प्रभाव की ख्याति सुनकर मगहर के तत्कालीन प्रशासक बिजली खां ने उनसे अपने क्षेत्र में आने का अनुरोध किया था. उन दिनों मगहर में सूखा पड़ा था. बिजली खां को उम्मीद थी कि कबीर दास के आशीर्वाद से यह संकट खत्म हो जाएगा.

गोरखपुर के इतिहास को बताने वाली पुस्तक "आईने गोरखपुर"

मिथक तोड़ने मगहर पहुंचे कबीरदास: उधर, कबीरदास इस मौके का उपयोग एक मिथक को तोड़ने के लिए भी करना चाहते थे. तब यह आम धारणा थी कि मगहर में मरने वाले को गधे का जन्म लेना पड़ता है और इसी भ्रम को तोड़ने के लिए कबीर काशी से चलकर मगहर की यात्रा पर निकले तो उनका मगहर से पहले का जो पड़ाव स्थल बना वह गोरखपुर के घासी कटरा बना. इसी स्थान को आज उनके चरण पादुका मंदिर के रूप में जाना जाता है.

यह भी पढ़ें: गोरखपुर में सीएम योगी की सुरक्षा में लापरवाही, इंस्पेक्टर समेत आठ पुलिसकर्मी सस्पेंड

सत्संग भवन में कबीरदास जी की खड़ाऊं: कहा जाता है कि मगहर यात्रा के दौरान कबीर भक्तों के अनुरोध पर घासी कटरा के सत्संग भवन में रुके और जब सुबह वह मगहर जाने को तैयार हुए तो सत्संग भवन पर उनके अनुयायियों ने उन्हें रोक लिया और न जाने की गुजारिश करने लगे. चूंकि, कबीरदास बिजली खां के बुलावे पर हर एक मिथक को तोड़ने के इरादे से काशी छोड़कर आए थे. इसलिए उन्होंने इस सत्संग भवन पर अपना खड़ाऊं छोड़ दिया, जिसे उनके अनुयायियों और भक्तों ने संभालकर रखा है. यहां बीजक पुस्तक भी है. इस मंदिर की बाहरी दीवारों पर कबीर के दोहे लिखे हैं, लेकिन यह दीवारें और इसका परिसर कबीर की चेतना और उनके सम्मान को रौंदने वाले कब्जाधारियों की गिरफ्त में है.

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चरण पादुका मंदिर की दीवारों पर लिखें दोहे

ऐतिहासिक स्थल से अछूता मंदिर: प्रदेश की योगी सरकार मौजूदा समय में तमाम मंदिरों के जीर्णोद्धार का कार्य कर रही. उन्हें पर्यटन के नक्शे पर विकसित कर रही है. हैरानी की बात यह है कि गोरखपुर में दर्जनों स्थल इस तरह की योजना से लाभान्वित हुए हैं. लेकिन यह ऐतिहासिक स्थल अभी भी अछूता है. इस संबंध में जब ईटीवी भारत ने गोरखपुर क्षेत्र के क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी रविंद्र मिश्रा से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि बहुत जल्द मंदिर को विकसित करने के लिए काम किया जाएगा. लेकिन, इस महत्वपूर्ण स्थान को जीर्णोद्धार और अवैध कब्जे से मुक्त कराया जाएगा.

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गोरखपुर: महान संत कबीरदास की आज (14 जून) जयंती है. जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को कबीर दास का जन्म वाराणसी में हुआ था. गोरखपुर में कबीरदास के मंदिर की दशा बेहद चिंतनीय है. मंदिर की जमीन पर दबंगों ने अतिक्रमण कर रखा है. मंदिर को विकसित करने पर स्थानीय जिला प्रशासन कुछ करता नजर आ रहा है. वहीं, अनुयायी और संत भी मंदिर के विकास को लेकर कोई गंभीर पहल करते नहीं दिख रहे हैं. ऐसे ऐतिहासिक महत्व वाला यह मंदिर पहचान खोता नजर आ रहा है.

गोरखपुर का चरण पादुका मंदिर: गोरखपुर के इस मंदिर को "चरण पादुका मंदिर" के नाम से भी जाना जाता है. कबीर से जुड़े इस ऐतिहासिक महत्व की धरोहर को न तो पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है और न ही यह लोगों की जानकारी का ही विषय बन पा रहा है.

"आईने गोरखपुर" में मंदिर का उल्लेख: गोरखपुर के इतिहास को बताने वाली पुस्तक 'आईने गोरखपुर' में इस बात का साफ उल्लेख है कि कबीर दास जी अपनी मगहर यात्रा के दौरान गोरखपुर में रात्रि प्रवास किया था. ऐसी मान्यता है कि कबीर के आध्यात्मिक प्रभाव की ख्याति सुनकर मगहर के तत्कालीन प्रशासक बिजली खां ने उनसे अपने क्षेत्र में आने का अनुरोध किया था. उन दिनों मगहर में सूखा पड़ा था. बिजली खां को उम्मीद थी कि कबीर दास के आशीर्वाद से यह संकट खत्म हो जाएगा.

गोरखपुर के इतिहास को बताने वाली पुस्तक "आईने गोरखपुर"

मिथक तोड़ने मगहर पहुंचे कबीरदास: उधर, कबीरदास इस मौके का उपयोग एक मिथक को तोड़ने के लिए भी करना चाहते थे. तब यह आम धारणा थी कि मगहर में मरने वाले को गधे का जन्म लेना पड़ता है और इसी भ्रम को तोड़ने के लिए कबीर काशी से चलकर मगहर की यात्रा पर निकले तो उनका मगहर से पहले का जो पड़ाव स्थल बना वह गोरखपुर के घासी कटरा बना. इसी स्थान को आज उनके चरण पादुका मंदिर के रूप में जाना जाता है.

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सत्संग भवन में कबीरदास जी की खड़ाऊं: कहा जाता है कि मगहर यात्रा के दौरान कबीर भक्तों के अनुरोध पर घासी कटरा के सत्संग भवन में रुके और जब सुबह वह मगहर जाने को तैयार हुए तो सत्संग भवन पर उनके अनुयायियों ने उन्हें रोक लिया और न जाने की गुजारिश करने लगे. चूंकि, कबीरदास बिजली खां के बुलावे पर हर एक मिथक को तोड़ने के इरादे से काशी छोड़कर आए थे. इसलिए उन्होंने इस सत्संग भवन पर अपना खड़ाऊं छोड़ दिया, जिसे उनके अनुयायियों और भक्तों ने संभालकर रखा है. यहां बीजक पुस्तक भी है. इस मंदिर की बाहरी दीवारों पर कबीर के दोहे लिखे हैं, लेकिन यह दीवारें और इसका परिसर कबीर की चेतना और उनके सम्मान को रौंदने वाले कब्जाधारियों की गिरफ्त में है.

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चरण पादुका मंदिर की दीवारों पर लिखें दोहे

ऐतिहासिक स्थल से अछूता मंदिर: प्रदेश की योगी सरकार मौजूदा समय में तमाम मंदिरों के जीर्णोद्धार का कार्य कर रही. उन्हें पर्यटन के नक्शे पर विकसित कर रही है. हैरानी की बात यह है कि गोरखपुर में दर्जनों स्थल इस तरह की योजना से लाभान्वित हुए हैं. लेकिन यह ऐतिहासिक स्थल अभी भी अछूता है. इस संबंध में जब ईटीवी भारत ने गोरखपुर क्षेत्र के क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी रविंद्र मिश्रा से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि बहुत जल्द मंदिर को विकसित करने के लिए काम किया जाएगा. लेकिन, इस महत्वपूर्ण स्थान को जीर्णोद्धार और अवैध कब्जे से मुक्त कराया जाएगा.

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Last Updated : Jun 14, 2022, 11:04 AM IST
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