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मानदेय का मामलाः गोरखपुर में बच्‍चों के साथ सड़क पर उतरे अनुदेशक

गोरखपुर के इंदिरा तिराहा पर बच्‍चों के साथ अनुदेशकों ने 2000 पोस्‍टकार्ड लिखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश को भेजे हैं. दरअसल, अनुदेशक मानदेय को लेकर लगातार अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं.

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बच्चों के साथ सड़क पर उतरे अनुदेशक.
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Published : Oct 23, 2020, 10:10 AM IST

गोरखपुरः उत्तर प्रदेश सरकार की हठधर्मिता के आगे परीषदीय अनुदेशक झुकने को तैयार नहीं है. कई बार राजधानी में प्रदर्शन के दौरान लाठियां खाने के बाद केन्‍द्र सरकार ने उनके मानदेय को बढ़ाकर 17000 कर दिया. लेकिन, प्रदेश सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है. उल्‍टे अनुदेशकों का मानदेय 8,470 रुपये से घटाकर 7000 रुपये कर दिया गया. इसके अलावा नौ माह की रिकवरी भी किया गया. अब वे न्‍याय की मांग को लेकर 2000 पोस्‍टकार्ड अपने बच्‍चों के हाथों से लिखवाकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश को भेजकर उनका ध्‍यान आकर्षित किया है.

गोरखपुर के इंदिरा तिराहा पर बच्‍चों के साथ अनुदेशकों ने 2000 पोस्‍टकार्ड लिखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश को भेजे हैं. इस दौरान अनुदेशक संघ के प्रदेश अध्‍यक्ष विक्रम सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा परिषद के जूनियर हाई स्‍कूल में 30 हजार अनुदेशक कार्यरत हैं. 15 मई 2017 को भारत सरकार की पीएडी बोर्ड की बैठक में उनके मानदेय को 8,470 से बढ़ाकर 17000 रुपये कर दिया गया.

हाईकोर्ट ने दिया था पूरे भुगतान का आदेश

उन्‍होंने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार की हठधर्मिता के कारण उनका मानदेय बढ़ाया नहीं गया. उत्तर प्रदेश सरकार ने उनका मानदेय बढ़ाने के बजाय घटाकर 7000 कर दिया गया. उन्‍होंने बताया कि नौ महीने की रिकवरी भी की गई. इसके बाद वे लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ बेंच में भी अपील की. हाईकोर्ट ने ये फैसला दिया कि मार्च 2017 से उत्तर प्रदेश के समस्‍त अनुदेशकों का अब तक का 9 प्रतिशत की ब्‍याज दर के साथ भुगतान किया जाए. लेकिन 3.5 वर्ष बीत जाने के बाद भी उनका भुगतान नहीं किया गया है.

मुख्य सचिव को हाईकोर्ट ने किया तलब

इसे लेकर इलाहाबाद और लखनऊ हाईकोर्ट में अवमानना की याचिका 5-5 बार दाखिल की है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 18 सितंबर 2020 को उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्‍य सचिव और राज्‍य परियोजना निदेशक को इस बात के लिए निर्देशित किया है कि 23 नवंबर 2020 तक इनका नौ प्रतिशत की ब्‍याज दर से 17000 का भुगतान कर इस बात को कोर्ट में कहें.

बच्चों ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखा पोस्टकार्ट

उन्‍होंने बताया कि उनके नन्‍हे-मुन्‍ने बच्‍चों ने पोस्‍टकार्ड लिखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस गोविंद माथुर को ये बताने की कोशिश की है कि उनके मम्‍मी-पापा की क्‍या स्थिति है. पूरे प्रदेश से 30 हजार अनुदेशकों ने 50 हजार पोस्‍टकार्ड और गोरखपुर से 500 अनुदेशकों ने 2000 पोस्‍टकार्ड भेजकर उनकी मांगों को पूरा करने का आह्वान किया है. उन्‍होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की है कि वे 17000 रुपये प्रतिमाह की दर से उनके मानदेय का भुगतान करें.

अनुदेशक प्रतिभा त्रिपाठी ने कहा कि वे उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ उनका मानदेय बढ़ाएं. उन्‍होंने कहा कि 17000 के मानदेय का शासनादेश जारी कर दें. उन्‍होंने बताया कि 7000 में घर कैसे चलाएं. 8470 से मानदेय 17000 करने की बजाय घटाकर 7000 कर दिया गया. उन्‍होंने कहा कि उन लोगों ने बच्‍चों के माध्‍यम से चीफ जस्टिस गोविंद माथुर को पोस्‍टकार्ड भेजकर उनका मानदेय दिलाने और अपनी परेशानियों के बारे में बताया गया है.

गोरखपुरः उत्तर प्रदेश सरकार की हठधर्मिता के आगे परीषदीय अनुदेशक झुकने को तैयार नहीं है. कई बार राजधानी में प्रदर्शन के दौरान लाठियां खाने के बाद केन्‍द्र सरकार ने उनके मानदेय को बढ़ाकर 17000 कर दिया. लेकिन, प्रदेश सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है. उल्‍टे अनुदेशकों का मानदेय 8,470 रुपये से घटाकर 7000 रुपये कर दिया गया. इसके अलावा नौ माह की रिकवरी भी किया गया. अब वे न्‍याय की मांग को लेकर 2000 पोस्‍टकार्ड अपने बच्‍चों के हाथों से लिखवाकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश को भेजकर उनका ध्‍यान आकर्षित किया है.

गोरखपुर के इंदिरा तिराहा पर बच्‍चों के साथ अनुदेशकों ने 2000 पोस्‍टकार्ड लिखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश को भेजे हैं. इस दौरान अनुदेशक संघ के प्रदेश अध्‍यक्ष विक्रम सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा परिषद के जूनियर हाई स्‍कूल में 30 हजार अनुदेशक कार्यरत हैं. 15 मई 2017 को भारत सरकार की पीएडी बोर्ड की बैठक में उनके मानदेय को 8,470 से बढ़ाकर 17000 रुपये कर दिया गया.

हाईकोर्ट ने दिया था पूरे भुगतान का आदेश

उन्‍होंने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार की हठधर्मिता के कारण उनका मानदेय बढ़ाया नहीं गया. उत्तर प्रदेश सरकार ने उनका मानदेय बढ़ाने के बजाय घटाकर 7000 कर दिया गया. उन्‍होंने बताया कि नौ महीने की रिकवरी भी की गई. इसके बाद वे लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ बेंच में भी अपील की. हाईकोर्ट ने ये फैसला दिया कि मार्च 2017 से उत्तर प्रदेश के समस्‍त अनुदेशकों का अब तक का 9 प्रतिशत की ब्‍याज दर के साथ भुगतान किया जाए. लेकिन 3.5 वर्ष बीत जाने के बाद भी उनका भुगतान नहीं किया गया है.

मुख्य सचिव को हाईकोर्ट ने किया तलब

इसे लेकर इलाहाबाद और लखनऊ हाईकोर्ट में अवमानना की याचिका 5-5 बार दाखिल की है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 18 सितंबर 2020 को उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्‍य सचिव और राज्‍य परियोजना निदेशक को इस बात के लिए निर्देशित किया है कि 23 नवंबर 2020 तक इनका नौ प्रतिशत की ब्‍याज दर से 17000 का भुगतान कर इस बात को कोर्ट में कहें.

बच्चों ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखा पोस्टकार्ट

उन्‍होंने बताया कि उनके नन्‍हे-मुन्‍ने बच्‍चों ने पोस्‍टकार्ड लिखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस गोविंद माथुर को ये बताने की कोशिश की है कि उनके मम्‍मी-पापा की क्‍या स्थिति है. पूरे प्रदेश से 30 हजार अनुदेशकों ने 50 हजार पोस्‍टकार्ड और गोरखपुर से 500 अनुदेशकों ने 2000 पोस्‍टकार्ड भेजकर उनकी मांगों को पूरा करने का आह्वान किया है. उन्‍होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की है कि वे 17000 रुपये प्रतिमाह की दर से उनके मानदेय का भुगतान करें.

अनुदेशक प्रतिभा त्रिपाठी ने कहा कि वे उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ उनका मानदेय बढ़ाएं. उन्‍होंने कहा कि 17000 के मानदेय का शासनादेश जारी कर दें. उन्‍होंने बताया कि 7000 में घर कैसे चलाएं. 8470 से मानदेय 17000 करने की बजाय घटाकर 7000 कर दिया गया. उन्‍होंने कहा कि उन लोगों ने बच्‍चों के माध्‍यम से चीफ जस्टिस गोविंद माथुर को पोस्‍टकार्ड भेजकर उनका मानदेय दिलाने और अपनी परेशानियों के बारे में बताया गया है.

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