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125 साल पुराना है गोरखपुर में दुर्गा प्रतिमा स्थापना का इतिहास, बंगाल के बाद यहां होती है सबसे अधिक मूर्ति स्थापना - गोरखपुर दुर्गा पंडाल

शहर में दुर्गा पूजा मनाने का इतिहास एक सौ पच्चीस साल पुराना है. जानकार बताते हैं कि बंगाल के बाद पूरे देश में अगर सबसे अधिक दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना कहीं होती है तो वह गोरखपुर शहर ही है. जिला अस्पताल से शुरू हुआ दुर्गा पूजा पंडाल और मां की प्रतिमा की स्थापना का सिलसिला शहर के हर चौराहे और मोहल्लों में चलता है.

गोरखपुर में दुर्गा प्रतिमा स्थापना
गोरखपुर में दुर्गा प्रतिमा स्थापना
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Published : Oct 10, 2021, 2:07 PM IST

गोरखपुर: शहर में दुर्गा पूजा मनाने का इतिहास एक सौ पच्चीस साल पुराना है. जानकार बताते हैं कि बंगाल के बाद पूरे देश में अगर सबसे अधिक दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना कहीं होती है तो वह गोरखपुर शहर ही है. जिला अस्पताल से शुरू हुआ दुर्गा पूजा पंडाल और मां की प्रतिमा की स्थापना का सिलसिला शहर के हर चौराहे और मोहल्लों में चलता है. समय के साथ इसके स्वरूप में भी बड़ा बदलाव आया है. मूर्तियों की बढ़ती मांग से बंगाली कलाकारों के लिए भी यह क्षेत्र रोजगार का बड़ा साधन हुआ है. महीनों पहले आकर मूर्तिकार यहां मिट्टी की मूर्तियों में मां दुर्गा का अक्स उतारने का काम करते हैं, वहीं श्रद्धालु इसे अपने मोहल्लों और कमेटियों में स्थापित करके 10 दिनों तक पूजा-पाठ से माहौल को भक्तिमय बना देते हैं. गोरखपुर शहर में दुर्गा प्रतिमा स्थापना और पंडाल की बात करें तो कोरोना काल को छोड़ दिया जाए तो इसकी संख्या लगभग तीन हजार रही है. गोरखपुर के इतिहास को समेटे आईने गोरखपुर किताब भी इस बात को प्रमाणित करता है.

बंगाली समिति से जुड़े जिला अस्पताल के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. जोगेश्वर रॉय ने करीब 125 वर्ष पूर्व (वर्ष 1886 में) दुर्गा प्रतिमा की स्थापना परिसर के अंदर की थी. 1903 में प्लेग महामारी के प्रकोप में यह बंद रही, लेकिन इसको आगे बढ़ाने का क्रम जारी रहा. जुबली हाई स्कूल के तत्कालीन प्राचार्य अघोरनाथ चट्टोपाध्याय ने स्कूल परिसर में प्रतिमा की स्थापना की. इसका भव्य रूप अब दुर्गाबाड़ी में देखने को मिलता है, जहां पिछले 70 वर्षों से दुर्गा प्रतिमा की स्थापना होती चली आ रही है.

गोरखपुर
गोरखपुर

दुर्गाबाड़ी से 7 दशक से जुड़े हीरक बनर्जी का कहना है कि पहले पूजा-पंडालों में श्रद्धाभाव का दर्शन होता था, लेकिन मौजूदा समय में इसमें दिखावे पर जोर ज्यादा है. पूजा-अर्चना से किसी भी तरह का समझौता इस पर्व के महत्व को कम करता है. इस पर्व को मनाने का मकसद मां की आराधना करना है न कि उसके बहाने मनोरंजन. वह कहते हैं कि इस पर्व में हो रहे तरह-तरह के बदलाव के वह साक्षी हैं, इसलिए उन्हें भटकाव से तकलीफ होती है. वह उत्साही युवाओं को सचेत भी करते हैं और सुझाव भी देते हैं कि दुर्गा पूजा की परंपरा को कायम रखने में अपनी पूरी शक्ति और बल दें.

गोरखपुर
मां के दर्शन के लिए उमड़े भक्त.

जैन समाज के अध्यक्ष शहर में पिछले 40 वर्षों से रामलीला का आयोजन और दीवान बाजार में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना करते चले आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वर्तमान में राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त पुष्पदंत जैन कहते हैं कि जब पूरे शहर में 100 से भी कम प्रतिमाएं बैठती थीं तो एक अद्भुत भक्तिमय माहौल हुआ करता था, लेकिन जैसे-जैसे यह हर मोहल्ले और गलियों तक आयोजन का हिस्सा बन गईं माहौल भक्ति से ज्यादा शोर-शराबे का हो गया. उनकी देख-रेख में दीवान बाजार में स्थापित होने वाली प्रतिमा के साथ आज भी परंपरा कायम रहती है न कि दिखावा.

यह भी पढ़ें: Navratri 2021: मां काली देवी के मंदिर में भक्तों का सैलाब, मन्नत के लिए बांधी जाती है गांठ

शहर में 1896 में उत्सव के रूप में शुरू हुई दुर्गा पूजा कोरोना संक्रमण के समय थोड़ी रुकी थी, लेकिन इस बार फिर प्रोटोकॉल और नियम के तहत इसको स्थापित करके उत्सव मनाने में दुर्गा पूजा कमेटियां जुटी हुई हैं. इस बार प्रतिमा 6 फीट ऊंची होगी और पंडाल में सिर्फ पूजा-अर्चना होगी न कि सांस्कृतिक गतिविधियां. बरसों से रेलवे स्टेशन पर स्थापित होती चली आ रही दुर्गा प्रतिमा इस बार नहीं बैठाई जाएगी. सिर्फ आराधना होगी. दुर्गाबाड़ी में भी 6 फीट की प्रतिमा स्थापित होगी और 40 फीट पहले ही बैरियर लगाया जाएगा, जिससे श्रद्धालु मंडप से दूर रहें. रेलवे बालक इंटर कॉलेज में कई दशकों से स्थापित होती चली आ रही दुर्गा प्रतिमा स्थल पर इस बार साफ-सफाई का विशेष ध्यान दिया जाएगा. हरिद्वार से 200 लीटर गंगाजल लाकर स्थान की पवित्रता स्थापित की जाएगी. यहां पर भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों को टाल दिया गया है.

गोरखपुर: शहर में दुर्गा पूजा मनाने का इतिहास एक सौ पच्चीस साल पुराना है. जानकार बताते हैं कि बंगाल के बाद पूरे देश में अगर सबसे अधिक दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना कहीं होती है तो वह गोरखपुर शहर ही है. जिला अस्पताल से शुरू हुआ दुर्गा पूजा पंडाल और मां की प्रतिमा की स्थापना का सिलसिला शहर के हर चौराहे और मोहल्लों में चलता है. समय के साथ इसके स्वरूप में भी बड़ा बदलाव आया है. मूर्तियों की बढ़ती मांग से बंगाली कलाकारों के लिए भी यह क्षेत्र रोजगार का बड़ा साधन हुआ है. महीनों पहले आकर मूर्तिकार यहां मिट्टी की मूर्तियों में मां दुर्गा का अक्स उतारने का काम करते हैं, वहीं श्रद्धालु इसे अपने मोहल्लों और कमेटियों में स्थापित करके 10 दिनों तक पूजा-पाठ से माहौल को भक्तिमय बना देते हैं. गोरखपुर शहर में दुर्गा प्रतिमा स्थापना और पंडाल की बात करें तो कोरोना काल को छोड़ दिया जाए तो इसकी संख्या लगभग तीन हजार रही है. गोरखपुर के इतिहास को समेटे आईने गोरखपुर किताब भी इस बात को प्रमाणित करता है.

बंगाली समिति से जुड़े जिला अस्पताल के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. जोगेश्वर रॉय ने करीब 125 वर्ष पूर्व (वर्ष 1886 में) दुर्गा प्रतिमा की स्थापना परिसर के अंदर की थी. 1903 में प्लेग महामारी के प्रकोप में यह बंद रही, लेकिन इसको आगे बढ़ाने का क्रम जारी रहा. जुबली हाई स्कूल के तत्कालीन प्राचार्य अघोरनाथ चट्टोपाध्याय ने स्कूल परिसर में प्रतिमा की स्थापना की. इसका भव्य रूप अब दुर्गाबाड़ी में देखने को मिलता है, जहां पिछले 70 वर्षों से दुर्गा प्रतिमा की स्थापना होती चली आ रही है.

गोरखपुर
गोरखपुर

दुर्गाबाड़ी से 7 दशक से जुड़े हीरक बनर्जी का कहना है कि पहले पूजा-पंडालों में श्रद्धाभाव का दर्शन होता था, लेकिन मौजूदा समय में इसमें दिखावे पर जोर ज्यादा है. पूजा-अर्चना से किसी भी तरह का समझौता इस पर्व के महत्व को कम करता है. इस पर्व को मनाने का मकसद मां की आराधना करना है न कि उसके बहाने मनोरंजन. वह कहते हैं कि इस पर्व में हो रहे तरह-तरह के बदलाव के वह साक्षी हैं, इसलिए उन्हें भटकाव से तकलीफ होती है. वह उत्साही युवाओं को सचेत भी करते हैं और सुझाव भी देते हैं कि दुर्गा पूजा की परंपरा को कायम रखने में अपनी पूरी शक्ति और बल दें.

गोरखपुर
मां के दर्शन के लिए उमड़े भक्त.

जैन समाज के अध्यक्ष शहर में पिछले 40 वर्षों से रामलीला का आयोजन और दीवान बाजार में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना करते चले आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वर्तमान में राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त पुष्पदंत जैन कहते हैं कि जब पूरे शहर में 100 से भी कम प्रतिमाएं बैठती थीं तो एक अद्भुत भक्तिमय माहौल हुआ करता था, लेकिन जैसे-जैसे यह हर मोहल्ले और गलियों तक आयोजन का हिस्सा बन गईं माहौल भक्ति से ज्यादा शोर-शराबे का हो गया. उनकी देख-रेख में दीवान बाजार में स्थापित होने वाली प्रतिमा के साथ आज भी परंपरा कायम रहती है न कि दिखावा.

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शहर में 1896 में उत्सव के रूप में शुरू हुई दुर्गा पूजा कोरोना संक्रमण के समय थोड़ी रुकी थी, लेकिन इस बार फिर प्रोटोकॉल और नियम के तहत इसको स्थापित करके उत्सव मनाने में दुर्गा पूजा कमेटियां जुटी हुई हैं. इस बार प्रतिमा 6 फीट ऊंची होगी और पंडाल में सिर्फ पूजा-अर्चना होगी न कि सांस्कृतिक गतिविधियां. बरसों से रेलवे स्टेशन पर स्थापित होती चली आ रही दुर्गा प्रतिमा इस बार नहीं बैठाई जाएगी. सिर्फ आराधना होगी. दुर्गाबाड़ी में भी 6 फीट की प्रतिमा स्थापित होगी और 40 फीट पहले ही बैरियर लगाया जाएगा, जिससे श्रद्धालु मंडप से दूर रहें. रेलवे बालक इंटर कॉलेज में कई दशकों से स्थापित होती चली आ रही दुर्गा प्रतिमा स्थल पर इस बार साफ-सफाई का विशेष ध्यान दिया जाएगा. हरिद्वार से 200 लीटर गंगाजल लाकर स्थान की पवित्रता स्थापित की जाएगी. यहां पर भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों को टाल दिया गया है.

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