गोरखपुर: थिएटर, टीवी सीरियल और फिल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय से पहचान पहचान बनाने वाली अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी ने कहा है कि कला के क्षेत्र में आज वह जिस मुकाम पर खड़ी हैं. उससे उन्हें संतुष्टि और पहचान सब हासिल है. लेकिन थिएटर के कलाकार की अगर वास्तविक रूप में किसी में जान बसती है तो वह ड्रामा और थिएटर ही है. फिल्मों से कलाकारों को पैसा और बड़ी पहचान मिलती है. लेकिन, असली कलाकार थिएटर में प्रस्तुत किए जाने वाले ड्रामा से ही निकाल कर सामने आता है.
हिमानी शिवपुरी बुधवार को गोरखपुर पहुंची थीं. वह राष्ट्रीय नाट्य मंच के द्वारा आयोजित रंगमंच के कार्यक्रम में जाने माने कलाकार राजेंद्र गुप्ता के साथ "जीना इसी का नाम है" शीर्षक जैसे नाटक की प्रस्तुति देने आईं थीं. जहां उन्होंने अपने कला और कलाकारों के जीवन से जुड़ी बातों को लेकर बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से जीवन में पैसे और पहचान की अहमियत बड़ी है. इसलिए थिएटर का कलाकार भी इस ओर जाने के लिए लालायित रहता ही है.
हिमानी ने कहा कि जब वह अपने किरदार को दिल्ली, मुंबई, देहरादून और बेंगलुरु जैसे शहरों में निभाती हैं. तो उन्हें लगता है कि जैसे वह किरदार को जी रही हैं. लेकिन ऐसा सिर्फ वह महसूस करती हैं. ऐसे मंचन को बार-बार देखा भी नहीं जा सकता है. जबकि फिल्मों में ऐसा नहीं है. अगर कलाकार ने किसी फिल्म में कोई जीवंत अभिनय कर दिया. तो वह हमेशा हमेशा के लिए यादगार बन जाता है. उन्होंने उदाहरण देते हुए जॉनी वाकर का नाम लिया और उनके फिल्मों की चर्चा की.
थिएटर के कलाकार के साथ यही संभव नहीं होता. जिस समय कला का प्रदर्शन होता है उतने समय ही उसकी जीवंतता भी दिखाई देती है. बाद में वह सिर्फ एक याद का विषय रह जाता है. इसीलिए इसका कलाकार बड़ा नहीं बन पाता. उसे बाजार नहीं मिल पाती. लेकिन इसी के जरिए जो कलाकार फिल्मों तक पहुंचे जैसे वह खुद तो, उन्हें एक बड़े कैनवास के माध्यम से पूरे देश स्तर पर अपनी पहचान बनाने, पैसे कमाने, घर चलाने, किराए के लिए रुपए की व्यवस्था करने, जैसे सभी इंतजाम सहज हो गए. लेकिन बावजूद इसके अगर कोई थिएटर का कलाकार है. तो उसके अंदर का वास्तविक कलाकार उसके ड्रामा में ही देखा जा सकता है.
इस दौरान जाने-माने फिल्म और टीवी कलाकार राजेंद्र गुप्ता ने मीडिया से कहा कि वह जिस नाटक का प्ले करने गोरखपुर पहुंचे हैं. नाटक जिंदगी के एक ऐसे मोड़ की कहानी है. जिसमें 50 वर्ष से ऊपर की आयु तय करने के बाद, जब कोई खुद को अकेला महसूस करता है और अपने अकेलेपन की जिंदगी से जूझता और लड़ता है, तब उसके सामने किस-किस तरह की ज़रूरतें और परिस्थितियों आती हैं. उससे वह कैसे निपटता है और लोगों से उसकी क्या अपेक्षा होती है, यह सब इस नाटक में दर्शाया गया है. हिमानी शिवपुरी और वह इस नाटक के प्रमुख किरदार के रूप में है. जिसमें हिमानी शिवपुरी एक अस्पताल में मरीज के रूप में तो आती है. लेकिन उनकी वास्तविक स्थिति मानसिक बीमारी से उन्हें बाहर निकालने की होती है. जिससे उनका और मेरा जुड़ाव होता है. यह जुड़ाव एक ऐसे मुकाम पर आ जाता है, जिसमें दोनो जिंदगी एक हो जाती है.
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